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छत्तीसगढ का 'कुतुल बाजार' फिर हुआ गुलजार, बन गया था नक्सलियों का गढ़

छ्त्तीसगढ़ का बस्तर नक्सलियों का गढ़ है, तो वहीं दूसरी तरफ प्रकृति का सौदर्य भी अपने में समाए हुए है। बस्तर भोले-भाले आदिवासियों की लोक संस्कृति, संघर्ष, जिजिविषा और परंपराओं वाला है। इसी में से एक है बस्तर का कुतुल बाजार।

Dharmendra kumar
Published on: 23 Dec 2018 10:44 AM GMT
छत्तीसगढ का कुतुल बाजार फिर हुआ गुलजार, बन गया था नक्सलियों का गढ़
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बस्तर: छ्त्तीसगढ़ का बस्तर नक्सलियों का गढ़ है, तो वहीं दूसरी तरफ प्रकृति का सौदर्य भी अपने में समाए हुए है। बस्तर भोले-भाले आदिवासियों की लोक संस्कृति, संघर्ष, जिजिविषा और परंपराओं वाला है। इसी में से एक है बस्तर का कुतुल बाजार।

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दो साल पहले प्रशासन ने बंद करा दिया था बाजार

नक्सलियों का गढ़ बनने की वजह से दो साल पहले प्रशासन ने कुतुल बाजार को बंद करा दिया था। कुतुल बाजार के बंद होने जाने की वजह से करीब 50 गावों के ग्रामीणों की अतिरिक्त आमदनी बंद हो गई। ग्रामीणों को छोटे-छोटे सामाने के लिए भी बाजार काफी दूर हो गया। लेकिन प्रशासन ने उनके परेशानियों को समझा और 7 दिसंबर से यह बाजार एक बार फिर रौनक हो गया।

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बाजार खुलने से लोगों चेहरे पर झलक रही थी चमक

बाजार में पहले दिन ज्यादा भीड़ नहीं रही और ज्यादा दुकानें लगीं, लेकिन बाजार खुलने से लोगों के चेहरे पर चमक साफ झलक रही थी। लोगों ने बाजार में अपनी जरूरतों के सामान खरीदे। व्यापारियों ने ग्रामीणों के लाए अनाज को खरीदा। सबसे बड़ी बात यह है कि यह कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था और यहां उनरी रंगशालाएं होती थी, लेकिन अब बंद है। यहां पर यह ग्रामीणों की इच्छाशक्ति की जीत है।

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23 किमी पैदल जाकर लोगों ने किया मतदान

कुतुल पंचायत के ग्रामीण सरकारी सुविधाओं के मोहताज हैं, लेकिन इन्होंने चुनाव में जमकर मतदान किया। यहां के लोगों में लोकतंत्र के प्रति इतना विश्वास है कि इन्होंने 23 किलोमीटर पैदल चलकर कोहकामेटा जाकर मतदान किया। नक्सलियों गढ़ में हुए भारी मतदान के पीछे यहां के लोगों की सरकार से ढेर सारी उम्मीदें हैं। ग्रामीण कुतुब बाजार को खोलने के लिए प्रशासन से बार-बार निवेदन कर रहे थे, इसी का नतीजा है कि पुलिस अधीक्षक जितेंद्र शुक्ला ने कुतुल बाजार को फिर बहाल करने की अनुमति दे दी।

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Dharmendra kumar

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