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जानें भारत सरकार ने विश्व बैंक की व्यावसायिक रैंकिंग के लिए कैसे किया खेल!
हफ पोस्ट इंडिया द्वारा भारत में आर्थिक सुधारों के लेकर हुई बैठकों के मिनटों, आधिकारिक पत्राचार और मुख्य भूमिका अदा करने वालों की समीक्षा में यह खुलासा हुआ कि बीजेपी सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान किस तरह से विश्व बैंक के रैंकिंग सुधार एजेंडे का अपहरण कर लिया गया था।
नई दिल्लीः केंद्र की भाजपा सरकार ने भारत की रैंकिंग के लिए मीटिंग मिनट और आधिकारिक पत्राचार को आधार बनाकर प्रतिस्पर्धी परीक्षा रणनीति अपनाई। केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधार के एक साहसिक एजेंडे पर वायदे के बजाय, रैंकिंग प्रणाली के खेल के लिए मामूली संस्थागत और प्रक्रियात्मक बदलावों को प्राथमिकता दी।
हफ पोस्ट इंडिया द्वारा भारत में आर्थिक सुधारों के लेकर हुई बैठकों के मिनटों, आधिकारिक पत्राचार और मुख्य भूमिका अदा करने वालों की समीक्षा में यह खुलासा हुआ कि बीजेपी सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान किस तरह से विश्व बैंक के रैंकिंग सुधार एजेंडे का अपहरण कर लिया गया था।
दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्र सरकार ने भारत के लिए बेहतर रैंक को दर्शाने के लिए अपनी पद्धति को बदलने के लिए विश्व बैंक को लॉबी करने की मांग की थी। जब उसमें कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिली, तो सरकार ने वादा किए गए आर्थिक सुधार के एक साहसिक एजेंडे पर उतरने के बजाय रैंकिंग प्रणाली के खेल के लिए मामूली संस्थागत और प्रक्रियात्मक बदलावों को प्राथमिकता दी।
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अर्थशास्त्री कहते हैं कि विश्व बैंक ने भारत की आर्थिक सुधार प्रक्रिया में असमान प्रभाव दिया है, जिसने रैंकिंग में भारत को शीर्ष 50 देशों में शामिल करने पर एकांगी फोकस किया। इससे इस बात को बल मिलता है कि मोदी सरकार ने वास्तविक शासन और सुधार के बजाय अपनी ऊर्जा को रैंकिंग पर केंद्रित करना पसंद किया है।
अर्थशास्त्री और इंडिकस फाउंडेशन के निदेशक लवीश भंडारी ने कहा, "आप अपनी प्राथमिकताओं का क्या अर्थ रखते हैं। इस पर फोकस करने के बजाय रेटिंग के लिए सबसे आसान चीजों बदलाव के लिए ढूंढते रहते हैं, तो आप विश्व बैंक की रेटिंग को महत्व दे रहे हैं। आप किस तरह के बदलाव चाहते हैं, यह तय करना महत्वपूर्ण है।" लवीश ने इन चिंताओं को रेखांकित करते हुए इंडियन एक्सप्रेस के लिए एक स्तंभ भी लिखा था।
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रैंकिंग में भारत की नाटकीय वृद्धि के तुरंत बाद प्रकाशित रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 142 से 77 पर महज चार साल में आना महत्वपूर्ण है। लेकिन यह उपलब्धि पहले से दी गई सूचनाओं पर निर्भर है। सूचना के अधिकार के माध्यम से मिली जानकारी से यह स्पष्ट होता है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली और प्रधान मंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने कैसे "प्रतिस्पर्धी परीक्षा" पद्धति को अपनाया। यह उन भारतीयों के लिए एक झटका है जो इस प्रतिस्पर्धी सेटिंग में अपनी रैंक को बेहतर बनाने के लिए उत्सुक हैं।
31 अक्टूबर को अपने गुणगान के लिए बुलाई गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जेटली ने कहा, "आपने सचमुच धारणा को तोड़ने का काम किया है, जिस दिन नवीनतम रैंकिंग में भारत ने पिछले साल 100 से 77 वें स्थान पर बढ़ोतरी की। जबकि भारत की रैंकिंग को उठाने की प्रक्रिया में शामिल पूर्व नौकरशाहों का कहना है कि यह अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर हो यह जरूरी नहीं है, जैसे कि बोर्ड परीक्षाओं में कीर्तिमान बनाने का यह मतलब नहीं है कि आपने वास्तविक रूप से कितनी पढ़ाई की है।
केंद्र सरकार में कुछ माह तक वित्त सचिव के रूप में काम करने वाले अरविंद मायाराम कहते हैं कि जब आपकी रैंक में सुधार हुआ है तो हमें अधिक इंवेस्टमेंट क्यों नहीं मिल रहा है। मायाराम को बाद में पर्यटन मंत्रालय में भेज दिया गया था। उनका कहना है कि 2011 में यदि निवेश कुल विकास दर का 38 फीसद था तो 2018 में बढ़ना चाहिए था जबकि यह गिरकर 27 फीसद पर आ गया। हालांकि नीति आयोग के चेयरमैन अमिताभ कांत इसे खारिज करते हुए कहते हैं कि पिछले चार साल में बहुत कुछ हुआ है जिसका असर रैंकिंग पर पड़ा है।
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