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2019 लोकसभा चुनाव: एक बार फिर यूपी की कमान गुजराती नेता के हाथ

अगले लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उत्तर प्रदेश की कमान गुजराती नेता के हाथ में होगी। यह बात बीते दिनों भारतीय जनता पार्टी की ओर से जारी प्रभारियों की नई सूची से साफ हो गई है।

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Published on: 29 Dec 2018 12:12 PM GMT
2019 लोकसभा चुनाव: एक बार फिर यूपी की कमान गुजराती नेता के हाथ
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योगेश मिश्र योगेश मिश्र

अगले लोकसभा चुनाव में एक बार फिर उत्तर प्रदेश की कमान गुजराती नेता के हाथ में होगी। यह बात बीते दिनों भारतीय जनता पार्टी की ओर से जारी प्रभारियों की नई सूची से साफ हो गई है। पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेजा गया था।

इस बार जब गोर्धन झड़ाफिया उत्तर प्रदेश के प्रभारी घोषित हुए तब यह संदेश मिलने लगा कि इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है। यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि पिछली बार प्रभारी बने अमित शाह, नरेंद्र मोदी के खास थे। इस बार प्रभारी बने झड़ाफिया अमित शाह के खास हैं। कभी अमित शाह ने झड़ाफिया की जगह पर गुजरात के गृह राज्यमंत्री की कुर्सी पाई थी। आज वही झड़ाफिया अमित शाह के नाते उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनकर मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में वापसी करने में कामयाब हुए हैं।

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साल 2002 के गुजरात दंगों के समय झड़ाफिया मोदी कैबिनेट में गृह राज्यमंत्री थे। उनकी भूमिका की भी जांच दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी ने की थी। एसआईटी के हाथ कुछ लगा नहीं था। बावजूद इसके उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा था। उसी के बाद अमित शाह गृह राज्यमंत्री बने थे।

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जब एसआईटी के हाथ झड़ाफिया के खिलाफ कुछ नहीं लगा तो उन्हें मंत्रिमंडल में दोबारा वापस लेने की कवायद तो चली। लेकिन झड़ाफिया ने खुद ही वापसी से इनकार कर दिया। विश्व हिंदू परिषद से अपनी राजनीतिक जिंदगी शुरू करने वाले झड़ाफिया के अच्छे रिश्ते प्रवीण तोगडिय़ा से माने जाते हैं। लेउवा पटेल समाज के झड़ाफिया हीरा उद्योग से भी जुड़े हैं। पाटीदार आंदोलन के आर्किटेक्ट झड़ाफिया माने जाते हैं।

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वह मुखर वक्ता माने जाते हैं। विश्व हिंदू परिषद से जुडऩे के नाते प्रखर हिंदुत्व के अलंबरदारों में उनका नाम शुमार होता है। वह किसी भी नीति को ठीक ढंग से लागू करने वाले नेताओं में शुमार हैं। उन्हें एक अच्छा एम्प्लीमेंटर कहा जा सकता है। सांगठनिक दक्षता भी उनमें गजब की है।

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यही वजह है कि अपने समाज के कई संगठनों के वे शीर्ष पदों पर रखे जाते हैं। वह आते तो हैं पटेल बिरादरी से। इस बिरादरी के राष्ट्रीय संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। गुजरात में पटेल अगड़ों की श्रेणी में आते हैं। लेकिन राजस्थान और उत्तर प्रदेश में यह पिछड़े माने जाते हैं। गुजरात में जो पटेल होते हैं, राजस्थान में उन्हें गुर्जर मानते हैं। उत्तर प्रदेश में वे कुर्मी कहे जाते हैं। झड़ाफिया गुर्जर और कुर्मी दोनों जातियों में पैठ रखते हैं।

उत्तर प्रदेश में उनकी मौजूदगी इन दोनों जातियों को आकर्षित करने में कामयाब होगी। १९९५ में पहली बार एमएलए बने झड़ाफिया के रिश्ते गुजरात मे रहते समय नरेंद्र मोदी से खराब हो गये थे। नतीजतन, उन्होंने भाजपा से निकल कर महा गुजरात जनता पार्टी बना ली थी। बाद में उसे केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी में विलय कर दिया था।

उन्होंने नरेंद्र मोदी विरोधी कई बयान भी दिये। २०१४ में गुजरात परिवर्तन पार्टी का भाजपा में विलय हो गया। वापसी के बाद भी झड़ाफिया को कोई विशेष जगह नहीं मिली। लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभार देकर उनकी अहमियत का अंदाज अमित शाह ने करा दिया है।

झड़ाफिया के राजनीतिक तौर-तरीकों को जानने वालों का कहना है कि लोकसभा चुनाव में अमित शाह की जो मंशा होगी उसे लागू करने के लिए झड़ाफिया सबसे माकूल आदमी हैं। कभी नरेंद्र मोदी के खास रहे झड़ाफिया अब अमित शाह के लेफ्टीनेंट माने जाते हैं। उनके साथ सह-प्रभारी बनाये गये नरोत्तम मिश्र और दुष्यंत गौतम हैं।

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