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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: मौलाना आजाद है शिक्षा और संस्कृति के समन्वयक

suman
Published on: 11 Nov 2016 5:35 AM GMT
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: मौलाना आजाद है शिक्षा और संस्कृति के समन्वयक
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पूनम नेगी पूनम नेगी

लखनऊ: अरब देश के पवित्र मक्का में एक भारतीय पिता और अरबी माता के घर 11 नवंबर 1888 को जन्मे मोहिउद्दीन अहमद, जो आगे चलकर 'मौलाना अबुल कलाम आज़ाद' के नाम से प्रसिद्ध हुए। आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री थे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर देश के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी करने वाले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद भारत के बंटवारे के घोर विरोधी और हिन्दू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े पैरोकारों में थे। उन्होंने सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का प्रबल विरोध किया था। उर्दू के बेहद काबिल साहित्यकार और पत्रकार होने के बावजूद शिक्षामंत्री बनने के बाद उन्होंने उर्दू की जगह अंग्रेज़ी को तरजीह दी, ताकि भारत पश्चिम से कदमताल मिलाकर चल सके।

मौलाना आजाद पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना के घोर विरोधी थे और उन्होंने अपनी किताब इंडिया 'विन्स फ्रीडम' में आजादी के बारे में कुछ विवादित हिस्सों को भी छुआ है। 1958 में आखिरी सांस लेने तक वह भारत के शिक्षा मंत्री बने रहे। मौलाना आजाद को 1992 में मरणोपरांत भारत के सबसे बड़े सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया। आजाद भारत में शिक्षा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के सम्मान में भारत सरकार द्वारा उनकी जयन्ती 11 नवम्बर को प्रत्येक वर्ष "राष्ट्रीय शिक्षा दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

सर्व शिक्षा अभियान

बताते चलें कि केंद्र सरकार ने 11 नवम्बर सन 2002 को छह से 14 वर्ष की उम्र के देश के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए पूरे देश में सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान के तहत शिक्षकों के विशेष प्रशिक्षण के साथ ही सभी धर्मों-जातियों-वर्गों के स्वस्थ व अपंग बच्चों 6 से 14 वर्ष को शिक्षित करने का प्रावधान किया गया। साथ ही इस योजना के तहत देश के अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों के लिए कई विशेष योजनाओं को लागू भी किया गया। इस अभियान के तहत अपंग समावेशक शिक्षा योजना को भी लाया गया और देश के सभी अपंग बच्चों को स्वस्थ व सामान्य बच्चों के साथ-साथ समान शिक्षा प्रदान करने का अधिकार दिया गया। इसके तहत देश के सभी शिक्षकों को अनिवार्य रूप से कंप्यूटर की बेसिक ट्रेनिंग भी दी गयी।

अनिवार्य व मुफ्त प्राथमिक शिक्षा अधिकार का कानून

सर्व शिक्षा अभियान की सफलता के साथ-साथ केंद्र सरकार को महसूस हुआ कि अभी भी समाज में कई दबे-कुचले वर्ग ऐसे हैं जिनके बच्चे पढ़ने के बजाय अपने मां-बाप के साथ उनके काम में हाथ बंटाते हैं। सरकार को यह भी पता चला कि कई लापरवाह माता-पिता ऐसे हैं जो अपने बच्चों को पढ़ाना ही नहीं चाहते। जब केंद्र सरकार को लगा कि पूरे देश के 6 से 14 वर्ष उम्र वाले बच्चों को कक्षा 1 से 8 वीं में से आज भी लाखों बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से वंचित रहना पड़ रहा है तो वर्ष 2009 में अनिवार्य व मुफ्त प्राथमिक शिक्षा अधिकार का कानून-2009 (राईट टू एजुकेशन एक्ट) लाया गया। इस कानून के तहत पूरे देश में 6 से 14 वर्ष उम्र वाले सभी बच्चों को अनिवार्य व मुफ्त शिक्षा का अवसर उपलब्ध कराया गया। इसके तहत सभी प्राथमिक स्कूलों के प्राध्यापकों को किसी भी अनपढ़ बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार वाली कक्षा में पूरे साल सीधे प्रवेश देने और उसे पढ़ा कर सक्षम बनाने का अधिकार और निर्देश दिया गया।

अभी भी शिक्षा से वंचित हैं कई बच्चे

एनबीटी के सर्वेक्षण में सामने आया है कि अभी भी राह चलते समाज के कई वर्ग के ऐसे बच्चे दिख जाते हैं जो स्कूल नहीं जाते। इसमें कचरा बीनने वाले बच्चे प्रमुख रूप से शामिल हैं। शहरी क्षेत्र में यह भी देखने में आया है कि अतंत लघु स्तर पर व्यापार करने वाले कई परिवार ऐसे हैं जो अपने बच्चों को साथ लेकर ही चलते हैं और उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। इसमें सड़क किनारे मोची का काम करने वाले, इमारतों में झाडू मारने वाले, छोटी चाय-नास्ते की दुकान चलाने वाले, पान टपरी चलाने वाले, घरों में कुटीर उद्योग (अगरबत्ती, बिंदी, पापड़, नकली मोती के दाने गूंथने वाले, कपड़ों की सिलाई करने वाले आदि) सड़कों-मुहल्लों में घूमकर कचरा बीनने वाले, भीख मांगने वाले तथा रेलों-बसों में घूमकर या फिर रेल व बस अड्डों पर कोई न कोई सामान बेचने वाले बच्चे शामिल हैं।

शिक्षा में मौलाना आज़ाद का योगदान

मौलाना आज़ाद का मानना था कि अंग्रेज़ों के ज़माने में भारत की पढ़ाई में संस्कृति को अच्छे ढंग से शामिल नहीं किया गया। इसीलिए 1947 में आज़ादी के बाद भारत के प्रथम शिक्षामंत्री बनने पर उन्होंने शिक्षा और संस्कृति के मेल पर विशेष ध्यान दिया। मौलाना आज़ाद की अगुवाई में 1950 के शुरुआती दशक में 'संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और 'ललित कला अकादमी' का गठन हुआ। इससे पहले वह 1950 में ही 'भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद' बना चुके थे। वे भारत के 'केंद्रीय शिक्षा बोर्ड' के चेयरमैन भी थे, जिसका काम केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर शिक्षा का प्रसार करना था। उन्होंने सख्ती से वकालत की कि भारत में धर्म, जाति और लिंग से ऊपर उठ कर 14 साल तक सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जानी चाहिए।

मौलाना आज़ाद महिला शिक्षा के खास हिमायती थे। उनकी पहल पर ही भारत में 1956 में 'यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन' की स्थापना हुई थी। आज़ाद जी एक दूरदर्शी विद्वान थे। उन्होंने 1950 के दशक में ही सूचना और तकनीक के क्षेत्र में शिक्षा पर ध्यान देना शु डिग्री कर दिया था। शिक्षामंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में ही भारत में "इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी" का गठन किया गया था।

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