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आपसी बातचीत से अयोध्या विवाद हल होने की संभावनाएं हैं बहुत ज्यादा

राम जन्मभूमि मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर जाकर एक बार फिर अटक गया है। कहां तो पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर थीं, सब को उम्मीद थी कि अदालत के फैसले से लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद को कोई दिशा मिल जाएगी। हिन्दूवादी संगठन मंदिर निर्माण शुरू करने को पहले से ही बेताब हैं।

Dharmendra kumar
Published on: 7 March 2019 1:36 PM GMT
आपसी बातचीत से अयोध्या विवाद हल होने की संभावनाएं हैं बहुत ज्यादा
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रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: राम जन्मभूमि मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर जाकर एक बार फिर अटक गया है। कहां तो पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर थीं, सब को उम्मीद थी कि अदालत के फैसले से लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद को कोई दिशा मिल जाएगी। हिन्दूवादी संगठन मंदिर निर्माण शुरू करने को पहले से ही बेताब हैं। वह तो यह भी मानकर चल रहे थे कि कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में ही आएगा। यानी कोर्ट की हरी झंडी मिलते ही मंदिर निर्माण का बिगुल बज जाना था लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत के मध्यस्थता के फैसले पर पहुंचने से मामला एक बार फिर कई दशक पीछे पहुंच गया है।

अदालत ने संबंधित पक्षों से मध्यस्थता के लिए नाम भी मांगे ताकि जल्द से जल्द अदालत अपनी निगरानी में मध्यस्थता कराने पर फैसला सुना सके। इस संवेदनशील मामले पर अदालत यह चाहती है कि सभी पक्षों की सहमति से अदालत के बाहर ही कोई हल निकल आए तो सर्वोत्तम है और इसकी सीमा यह है कि अगर एक प्रतिशत भी हल निकलने की संभावना है तो प्रयास होने चाहिए। इसका नतीजा यह होगा कि अदालत का फैसला पक्ष या विपक्ष के लिए न होकर दोनो पक्षों के राजी राजी आपसी सहमति से निकला फैसला होगा जिसे सब लोग सहज भाव से स्वीकार कर लेंगे।

फिलहाल तो छह मार्च को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षकारों से मध्यस्थता पैनल के लिए नाम देने के लिए कहा ताकि जल्द ही काम शुरू किया जा सके। खैर सुप्रीम कोर्ट को नाम मिल भी गए हैं। अब सिर्फ फैसला आना शेष है। इसके बाद मध्यस्थ अपना काम शुरू कर देंगे लेकिन अब तक मध्यस्थता के जो प्रयास हुए हैं इस बार के प्रयास उससे अलग होंगे। इस बार मध्यस्थता के प्रयासों की रिपोर्टिंग पर रोक तो नहीं लगी है लेकिन अदालत ने मीडिया को इससे बचने की सलाह जरूर दे दी है।

इससे पहले 26 फरवरी को हुई सुनवाई में भी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में मध्यस्थ के जरिए विवाद का समाधान निकालने पर सहमति जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि एक फीसदी गुंजाइश होने पर भी मध्यस्थ के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए। अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट को 3 नाम सुझाए हैं। इसमें पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जेएस खेहर और पूर्व जस्टिस एके पटनायक के नाम दिए गए हैं। बाकी लोगों की तरफ से अभी नाम दिये जाने बाकी हैं।

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अयोध्या विवाद के समझौते की पहली कोशिश पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के समय में हुई थी। उन्होंने इस मामले के समधान के लिए दोनों पक्षकारों से बातचीत के सिलसिले शुरू कराए थे। मामले के समझौते तक पहुंचने पर इसका ऑर्डिनेंस लाया जा रहा था। लेकिन तभी सियासत ने ऐसी करवट ली कि उन्हें ऑर्डिनेंस को वापस लेना पड़ा और बाद में उनकी सरकार जाने के साथ ऑर्डिनेंस भी गर्त में चला गया और सारे प्रयास भी खत्म हो गए।

अयोध्या विवाद के समाधान की दूसरी पहल तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के दौर में हुई थी। कहा यह भी जाता है कि वह समाधान के करीब थे लेकिन दुर्भाग्य था कि उनकी सरकार चली गई। इस बात का जिक्र एनसीपी अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने अपनी आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' में भी किया है। पवार के अनुसार चंद्रशेखर सरकार ने रामजन्मभूमि विवाद सुलझाने के गंभीरता से प्रयास किये थे। संभव है नई पीढ़ी को इन दोनो प्रयासों की जानकारी न हो लेकिन गुंजाइश न होती तो ये दोनो पहल परवान न चढ़तीं। गौरतलब यह भी है कि चंद्रशेखर ने विवाद को बातचीत के जरिये हल करने का प्रयास भाजपा के उदारवादी नेता कहे जाने वाले भैरोसिंह शेखावत को विश्वास में लेकर किया था। क्योंकि दोनो नेताओं में गहरी मित्रता थी।

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चंद्रशेखर ने इस पहल में शरद पवार और शेखावत दोनो को लगाया था शेखावत को बाबरी कमेटी के लोगों से एकांत में बात करने को कहा था और पवार से हिंदू संगठनों से। दोनो नेताओं ने दोनो पक्षों से कई बैठकें अलग अलग कीं। पवार के अनुसार दोनो पक्षों की संयुक्त बैठक कराने में शेखावत ने अहम भूमिका निभाई थी।

शरद पवार के अनुसार उस समय जो सहमति बन रही थी उसमें इस सुझाव पर जोर दिया गया था कि इस विवादित ढांचे को स्मारक के रूप में रखा जाए और हिंदुओं तथा मुसलमानों, दोनों को अलग-अलग मंदिर और मस्जिद निर्माण करने और अपने-अपने धार्मिक कार्यों के लिए भूमि आवंटन कर दी जाए। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और राम जन्मभूमि न्यास, दोनों पक्षों के नेता इस सुझाव पर सहमत हो गए थे। इसके बाद बस इस बात को आगे बढ़ाना था ताकि लंबी अवधि से उलझा यह मुद्दा हल हो सके। लेकिन इसी बीच कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई। इस सरकार के गिर जाने के बाद अवरुद्ध हुई प्रक्रिया को दोबारा शुरू नहीं किया जा सका।

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इसके बाद बातचीत से मसले के हल का तीसरा प्रयास नरसिम्हाराव की सरकार में भी हुआ लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला

अटल बिहारी वाजयेपी के सत्ता में आने के बाद ये मामला एक बार फिर सुगबुगाने लगा। वाजपेयी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में अयोध्या विभाग का गठन किया। वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को दोनों पक्षों से बातचीत के लिए नियुक्त किया। लेकिन वो भी नतीजे तक नहीं पहुंच सके।

इसके बाद श्री श्री रविशंकर ने अपने स्तर पर मध्यस्थता के प्रयास किये लेकिन वह भी फलीभूत नहीं हुए।

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यानी अयोध्या मामले के बातचीत से समाधान की पहल होती रही हैं संबंधित पक्ष इस मसले पर बैठते भी रहे हैं इससे एक बात तो तय है कि बातचीत से समाधान की गुंजाइश है। अब तक बातचीत से समाधान नहीं होने का मतलब यह भी नहीं है कि बातचीत से हल निकल ही नहीं सकता। इसलिए सुप्रीम कोर्ट यदि अपनी निगरानी में मध्यस्थता या बातचीत कराने का आदेश देता है तो कोई आश्चर्य नहीं कि समाधान निकल आए। क्योंकि इस समाधान में राजनीति के शामिल होने का प्रतिशत शून्य रहेगा। इसलिए सरकार जाने के साथ बातचीत के रास्ते भी बंद नहीं होंगे। तब मसले के हल तक पहुंचना आसान हो जाएगा।

Dharmendra kumar

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