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Video: असली कि नकली, 300 दवाओं पर लगेंगे क्यूआरकोड, डोलो, अलेग्रा, कोरेक्स भी इनमें शामिल

QR Codes on Medicines: पहले चरण में 300 सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं पर क्यूआर कोड लगाया गया है। इन 300 दवाओं का खुदरा बाजार में 50,000 करोड़ रुपये का योगदान है।

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Newstrack Network
Published on: 29 Feb 2024 10:12 AM GMT
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QR Codes on Medicines: दवाओं से आपका या आपके परिवार का सीधा रिश्ता होगा। कोई न कोई किसी न किसी तरह की दवा खा ही रहा होगा। पर शायद आप को यह जानकार आश्चर्य होगा कि असली से ज़्यादा बड़ा बाज़ार नक़ली दवाओं का तैयार हो गया है। इसलिए दवा ख़रीदते समय आप बहुत गौर से दवाओं पर लिखे हुए इंस्ट्रक्शन पढ़ लें। हालाँकि सरकार ने इसे रोकने की दिशा में क्यू आर कोड की पहल की है।

‘ट्रैक एंड ट्रेस’ सिस्टम के तहत सरकार ने 300 महत्वपूर्ण दवाओं की पैकेजिंग और क्यूआर कोड के माध्यम से उनके असली और नक़ली पहचान के साथ-साथ उनके बिक्री के आँकड़ों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है। यह व्यवस्था एक अगस्त से लागू हुई है। हो सकता है दुकानों तक इस तरह की दवाओं को पहुँचने में थोड़ा समय लगे। पर कुछ समय बाद अगर आप दवा ख़रीदने जाते हैं तो क्यूआर कोड देखे, पढे, जाँचे, परखें। यह दावा किया जा रहा है कि ऐसा करने से असली और नक़ली दवाओं के बीच के अंतर को आसानी से समझा जा सकता है।

- क्यूआर कोड को स्कैन करने पर विनिर्माण लाइसेंस और बैच नंबर जैसी आवश्यक जानकारी से दवा के प्रमाणीकरण में आसानी होगी।

- पहले चरण में 300 सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं पर क्यूआर कोड लगाया गया है। इन 300 दवाओं का खुदरा बाजार में 50,000 करोड़ रुपये का योगदान है।

- सरकार के इस कदम से डोलो (माइक्रो लैब्स), एलेग्रा (सनोफी), एस्थलिन (सिप्ला), अनवांटेड 72 (मैनकाइंड फार्मा), सेरिडॉन (बायर फार्मास्यूटिकल्स), लिम्सी (एबट), कैलपोल (जीएसके), कोरेक्स ( फाइजर), कैलपोल, कॉम्बिफ्लेम से लेकर एज़िथ्रल, ऑगमेंटिन, सेफ्टम जैसी एंटीबायोटिक्स और यहां तक कि एंटी-एलर्जी दवा एलेग्रा से लेकर थायरॉयड की दवा थायरोनॉर्म तक में क्यूआर कोड होंगे। इन कोड में दवाओं के बारे में बुनियादी जानकारी शामिल होगी, भले ही वे देश में कहीं भी निर्मित या खरीदी गई हों। इस बदलाव की मसौदा अधिसूचना पिछले साल नवंबर में जारी की गई थी। अनुसूची एच2 में निर्दिष्ट दवाओं के लिए, अपर्याप्त स्थान के मामले में, उनके प्राथमिक पैकेजिंग लेबल या द्वितीयक पैकेजिंग पर बारकोड या क्विक रिस्पांस (क्यूआर) कोड को प्रिंट या चिपका देना चाहिए।

- मार्च में स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवा उद्योग को यह कहा था कि वे उन दवाओं की छटनी करके उसे बतायें, जिन पर क्यूआर कोड जल्दी लगाना अनिवार्य हो। हालाँकि आम तौर पर सरकार के इस तरह के हर कदम का विरोध किया जाता है।

- पर बड़ी दवा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन ने यह कहा कि दवा उद्योग इस बदलाव के लिए तैयार है।

पर अगर आप उपभोक्ता के लिहाज से सरकार की इस तैयारी को देखें तो इसका पैसा आपके जेब से जायेगा। यानी दवाओं की क़ीमत में 5 से 7 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा तय है। इसी के साथ दवाओं के बैच की तैयारी में देरी भी आप को बर्दाश्त करनी पड़ सकती है। पहले ही राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) से मिल कर अपनी चिंताओं को व्यक्त कर चुका है। चूंकि ये सारी बहुत ज्यादा बिकने वाली दवाएं हैं । इनमें से ज्यादातर दवाएं बड़ी ब्रांड कंपनियों द्वारा बनाई जाती हैं।

बहरहाल, इस कदम की परिकल्पना एक दशक पहले की गई थी। लेकिन इन्हें न जाने किन कारणों से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।कहा तो यह जाता है कि उस समय की सरकार घरेलू खुदरा दवा विक्रेताओं और निर्माता को तैयार करने में कामयाब नहीं हो पाई थी।यही नहीं, अपेक्षित सॉफ्टवेयर और प्रौद्योगिकी प्रणालियों की कमी भी आड़े आई थी। लेकिन अब सब ख़त्म हो गया है। सरकार का फ़ैसला लागू हो गया है। आप के हाथ क्यूआर कोड की दवाएँ जल्दी लगने वाली है। तब आप ख़रीदते समय इसका ख़्याल रखें। सरकार ने जो अधिकार आप को दिया है, उस अधिकार का लाभ उठायें।

Admin 2

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