Charlie Chaplin Biography: सबको हंसाने वाली चार्ली चेपलीन की कैसी थी जिंदगी , जानते हैं पूरी दासता

Charlie Chaplin Interesting Facts: चार्ली चैपलिन का जन्म 16 अप्रैल,1889 को लंदन के वॉलवर्थ में हुआ था। उनका पूरा नाम चार्ल्स स्पेंसर चैपलिन था। उनका बचपन बेहद कठिनाई और गरीबी में बीता।

Written By :  AKshita Pidiha
Update:2024-12-14 16:40 IST

Famous Comedian Charlie Chaplin Biography

Charlie Chaplin Wikipedia in Hindi: चार्ली चैपलिन, सिनेमा जगत के सबसे महान हास्य कलाकारों में से एक, का जीवन संघर्ष, प्रतिभा, और अपार सफलता का अनूठा मिश्रण था। उनकी कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सदी के आरंभिक दौर की सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों की भी झलक देती है।

शुरुआती जीवन: संघर्ष और गरीबी

चार्ली चैपलिन का जन्म 16 अप्रैल,1889 को लंदन के वॉलवर्थ में हुआ था। उनका पूरा नाम चार्ल्स स्पेंसर चैपलिन था। उनका बचपन बेहद कठिनाई और गरीबी में बीता। उनके माता-पिता, चार्ल्स चैपलिन सीनियर और हन्ना चैपलिन, दोनों ही मनोरंजन उद्योग से जुड़े थे। उनके पिता एक गायक थे।


लेकिन शराब की लत ने उनकी ज़िंदगी तबाह कर दी और चार्ली के जन्म के कुछ ही साल बाद उनका निधन हो गया।उनकी माँ, हन्ना, एक अभिनेत्री और गायिका थीं। लेकिन मानसिक बीमारी के कारण वे लंबे समय तक काम नहीं कर पाईं। चार्ली और उनके भाई सिडनी को कई बार अनाथालय और गरीबी से जूझना पड़ा। बचपन में चार्ली ने माँ की देखभाल के लिए बहुत संघर्ष किया। लेकिन उनके कठिन हालात ने उन्हें आत्मनिर्भर और दृढ़ बना दिया।

रंगमंच पर पहला कदम

चार्ली ने बहुत कम उम्र में रंगमंच की दुनिया में कदम रखा। सात साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां की जगह मंच पर गाना गाकर दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्होंने 9 साल की उम्र में एक नाट्य मंडली में शामिल होकर मूकाभिनय (mime) और हास्य कला में महारत हासिल करना शुरू किया।


1910 के दशक की शुरुआत में, चार्ली अमेरिका गए और वहां की वाडेविल मंडली (vaudeville troupe) के साथ काम किया। उनकी प्रतिभा ने उन्हें जल्दी ही एक अनुबंध दिला दिया और वे जल्द ही फिल्मों की दुनिया में कदम रखने वाले थे।

फिल्मों में पहला ब्रेक

चार्ली चैपलिन ने 1914 में मूक फिल्मों में अपना करियर शुरू किया। उनकी पहली फिल्म थी ‘मेकिंग अ लिविंग’, जिसमें उनके अभिनय ने आलोचकों का ध्यान खींचा। लेकिन उनकी दूसरी फिल्म, ‘किड ऑटो रेस एट वेनिस’, ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई।यही वह फिल्म थी, जिसमें उन्होंने पहली बार ‘द ट्रैम्प’ का किरदार निभाया।


यह किरदार उनकी पहचान बन गया: एक छोटा आदमी, बड़ा कोट, तंग पैंट, बड़ी जूती, और छोटी टोपी, जो अपनी चालाकी और मासूमियत से दिल जीत लेता है।

अपार सफलता और प्रसिद्धि

1915 तक चार्ली चैपलिन मूक फिल्मों के सुपरस्टार बन चुके थे। उनकी हास्य शैली ने उन्हें न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध बना दिया। उनकी फिल्मों में हास्य के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य भी होता था, जो दर्शकों को हंसाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर करता था।


1919 में, चार्ली ने डगलस फेयरबैंक्स, मैरी पिकफोर्ड, और डी. डब्ल्यू. ग्रिफ़िथ के साथ मिलकर ‘यूनाइटेड आर्टिस्ट्स’ कंपनी की स्थापना की, ताकि वे अपनी फिल्मों पर पूरा नियंत्रण रख सकें।

प्रमुख फिल्में और योगदान

साल 1940 में चार्ली ने तानाशाह हिटलर पर एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम था 'द ग्रेट डिक्टेटर', जिसमें उन्होंने हिटलर का किरदार निभाया। फिल्म में चार्ली का हिटलर को कॉमिक कैरेक्टर के रूप में पेश करना फैंस को काफी पसंद आया। इसके बाद उन्होंने लगातार कई सुपरहिट फिल्में और एक महान कलाकार बनने के रास्ते पर चल पड़े थे।चार्ली चैपलिन ने कई यादगार फिल्में दीं, जो आज भी क्लासिक मानी जाती हैं। इनमें शामिल हैं:

‘द किड’ (1921): एक गरीब आदमी और एक अनाथ बच्चे की दिल छू लेने वाली कहानी।


‘सिटी लाइट्स’ ( 1931): एक अंधी लड़की के प्रति ट्रैम्प के प्यार की भावनात्मक कहानी।

मॉडर्न टाइम्स’ (1936): औद्योगिकीकरण और पूंजीवाद पर व्यंग्य करती एक शानदार फिल्म।

द ग्रेट डिक्टेटर’ (1940): एडॉल्फ हिटलर और फासीवाद पर व्यंग्य। यह उनकी पहली "साउंड फिल्म" थी।

व्यक्तिगत जीवन और विवाद

चार्ली का व्यक्तिगत जीवन उतना ही नाटकीय था जितनी की उनकी फिल्में। उनकी चार शादियां हुईं और कुल 11 बच्चे थे। उनका निजी जीवन अक्सर विवादों में घिरा रहा, जिसमें उनकी पत्नियों के साथ तलाक और विवाद शामिल थे।इसके अलावा, उनके वामपंथी विचारों और समाजवाद के प्रति झुकाव के कारण, उन्हें अमेरिका में ‘कम्युनिस्ट’ मानकर निशाना बनाया गया। 1952 में, उन्हें अमेरिका छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया, और वे स्विट्जरलैंड में बस गए।

पत्नियों से तलाक पर विवाद

1942 में चार्ली चैपलिन की जिंदगी में बड़ा विवाद उस समय शुरू हुआ जब अभिनेत्री जोन बैरी ने दावा किया कि वह चार्ली के बच्चे की मां बनने वाली हैं। चार्ली ने इस रिश्ते से साफ इनकार कर दिया। इस इनकार के बाद जोन का व्यवहार काफी विचित्र हो गया, जिसके कारण उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा। जेल से बाहर आने के बाद जोन ने चार्ली के खिलाफ पितृत्व (पेटर्निटी) का मुकदमा दायर कर दिया। यह मामला मीडिया में जोर-शोर से उछला और इससे चार्ली की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा।

इस विवाद ने एफबीआई के डायरेक्टर जे. एडगर हूवर को चार्ली के खिलाफ जांच शुरू करने का मौका दिया। हूवर पहले से ही चार्ली की राजनीतिक विचारधाराओं से असंतुष्ट थे और इस प्रकरण ने उनके लिए बदले का आधार तैयार कर दिया।


1943 में, जोन बैरी ने एक बेटे, केरॉल, को जन्म दिया। जब मामला कोर्ट में पहुंचा, तो ब्लड टेस्ट के जरिए यह प्रमाणित हो गया कि केरॉल वास्तव में चार्ली का बेटा है। कोर्ट ने चार्ली को आदेश दिया कि वह केरॉल की परवरिश का खर्च 21 साल की उम्र तक उठाएं और उसे कानूनी रूप से पिता का नाम प्रदान करें।

इस विवाद के चलते चार्ली लगातार सुर्खियों में रहे। लेकिन यह विवाद और भी बढ़ गया जब मुकदमे के ठीक दो सप्ताह बाद यह खबर आई कि 54 वर्षीय चार्ली ने 18 साल की पुर्तगाली अभिनेत्री ओना ओ'नील से शादी कर ली। यह शादी चार्ली की जिंदगी का एक नया और सुखद अध्याय लेकर आई। उनकी आत्मकथा के अनुसार, यह रिश्ता उनके जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा था। चार्ली और ओना ने 18 साल की शादीशुदा जिंदगी में आठ बच्चों को जन्म दिया और यह संबंध चार्ली की बाकी जिंदगी में स्थिरता और खुशी का स्रोत बना।

चार्ली चैपलिन और महात्मा गांधी का साथ

1931 में महात्मा गांधी इंग्लैंड में थे। उस समय गांधीजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख नेता थे और लंदन में उन्होंने भारतीय स्वराज के पक्ष में अपनी बात रखने के लिए कई लोगों से मुलाकात की। उसी दौरान चार्ली चैपलिन ने उनसे मिलने की इच्छा जताई।


चार्ली चैपलिन, जो अपनी फिल्मों के जरिए पूंजीवाद, आर्थिक असमानता और सामाजिक अन्याय पर व्यंग्य करते थे, गांधीजी के स्वदेशी आंदोलन और खादी पहनने के विचार से बेहद प्रभावित थे। दोनों ने लंदन में मिलकर विचार-विमर्श किया। इस मुलाकात के दौरान गांधीजी ने चार्ली से अपने आंदोलन और औद्योगिकीकरण के प्रति अपने दृष्टिकोण पर चर्चा की।

औद्योगिकीकरण और गांधीजी का संदेश

महात्मा गांधी ने चार्ली चैपलिन को बताया कि उनका विरोध मशीनों के उपयोग से नहीं है, बल्कि उस औद्योगिकीकरण से है, जो श्रमिकों का शोषण करता है और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा करता है। गांधीजी के अनुसार, औद्योगिकीकरण को मानवता के लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए, न कि सिर्फ पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए।

यह विचार चार्ली चैपलिन के अपने विचारों के समान था, जिन्हें उन्होंने अपनी फिल्म ‘मॉडर्न टाइम्स’ ( 1936) में व्यक्त किया। यह फिल्म पूंजीवाद और औद्योगिक युग में इंसानों के संघर्ष और मशीनों के बीच उलझन को दर्शाती है। गांधीजी से मुलाकात ने इस फिल्म की कहानी और चार्ली के दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव डाला।

भारत के साथ चार्ली चैपलिन का रिश्ता

चार्ली चैपलिन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय समाज में हो रहे बदलावों को हमेशा सराहा। वे भारतीय स्वतंत्रता के पक्षधर थे और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ गांधीजी के अहिंसक आंदोलन के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते थे।


चैपलिन को भारतीय संस्कृति और गांधीजी के सिद्धांतों से गहरी प्रेरणा मिली। गांधीजी का सादगीपूर्ण जीवन, सत्य और अहिंसा का आदर्श, चार्ली के दिल के करीब था।

चार्ली चैपलिन पर गांधीजी का प्रभाव

महात्मा गांधी और चार्ली चैपलिन के बीच विचारों का आदान-प्रदान उनके कार्यों में स्पष्ट दिखाई देता है। चार्ली की फिल्मों में दिखाए गए सामाजिक मुद्दे, जैसे आर्थिक असमानता और मानवता की दुर्दशा, गांधीजी के विचारों के प्रभाव का उदाहरण हैं।

‘मॉडर्न टाइम्स’ में मशीनों और श्रमिकों के बीच संघर्ष, ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ में तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाना, यह सब गांधीजी के सिद्धांतों की छाया प्रतीत होते हैं।


गांधी और चैपलिन दोनों ही समाज में सुधार लाने के पक्षधर थे।दोनों ने अपनी कला और जीवन शैली के माध्यम से गरीबों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।सादगी और मानवीय मूल्यों का प्रचार-प्रसार दोनों की प्राथमिकता थी।गांधी जी ने राजनीतिक माध्यम से समाज में बदलाव लाने की कोशिश की, जबकि चार्ली ने अपने हास्य और सिनेमा के जरिए सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला।गांधीजी का जीवन सत्य और अहिंसा के प्रति समर्पित था, जबकि चार्ली ने हास्य के माध्यम से सामाजिक समस्याओं को व्यंग्यात्मक तरीके से पेश किया।

गांधीजी और चैपलिन के विचारों की प्रासंगिकता

चार्ली चैपलिन और महात्मा गांधी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। गांधीजी के सिद्धांत में अहिंसा, सादगी, और स्वदेशी को आधुनिक समय में भी नैतिक और सामाजिक आदर्श माना जाता है।चैपलिन की कला मानवता, समानता, और स्वतंत्रता की बात करती है।दोनों ने दिखाया कि कला और राजनीति, दोनों ही समाज को जागरूक करने और बदलने के माध्यम हो सकते हैं।

चार्ली चैपलिन और महात्मा गांधी का रिश्ता एक प्रतीक है कि भले ही दो व्यक्ति अलग-अलग पृष्ठभूमि और माध्यम से आते हो। लेकिन उनके विचार और लक्ष्य उन्हें एक साझा मंच पर ला सकते हैं। दोनों ने अपने-अपने तरीके से दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश की और मानवता के लिए प्रेरणा के स्रोत बने।

इतिहास में सबसे बड़ी स्टैंडिंग ओवेशन दो गई

चार्ली चैपलिन ने 1960 और 1970 के दशकों में फिल्मों से दूर रहना शुरू कर दिया। लेकिन उनकी कला को दुनियाभर में मान्यता मिली। 1972 में, उन्हें ऑस्कर का ‘ऑनरेरी अवार्ड’ दिया गया। यह उस देश से उनके प्रति सम्मान का प्रतीक था, जिसने उन्हें एक समय खारिज कर दिया था।


20 साल बाद यूएस लौटे चार्ली को सेरेमनी में लोगों ने 12 मिनट की स्टैंडिंग ओवेशन दी, जो आज भी ऑस्कर सेरेमनी के इतिहास में सबसे बड़ी स्टैंडिंग ओवेशन है।

क्रिसमस के दिन मौत और लाश का चोरी होना

चार्ली चैपलिन की जिंदगी का अंत भी एक अद्भुत किस्से से जुड़ा हुआ है। अक्टूबर 1977 में उनकी तबीयत तेजी से बिगड़ने लगी। उनकी उम्र 88 साल थी और 25 दिसंबर, क्रिसमस के दिन, चार्ली नींद से कभी नहीं उठे। सोते समय उन्हें स्ट्रोक आया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। दो दिन बाद, 27 दिसंबर 1977 को, एक निजी समारोह में उनका अंतिम संस्कार हुआ।

चार्ली की मौत के कुछ समय बाद, एक ऐसा वाकया हुआ जिसने दुनिया को चौंका दिया। 1 मार्च 1978 को, उनकी कब्र से उनकी लाश चोरी हो गई। इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैला दी। कुछ समय बाद, उनकी पत्नी ओना को दो चोरों का फोन आया, जिन्होंने लाश को वापस करने के बदले 6 लाख डॉलर की मांग की। हालांकि, ओना ने उनकी मांग को ठुकरा दिया और यह कहते हुए रकम देने से इनकार कर दिया कि, "चार्ली हमारे दिलों और स्वर्ग में हैं, उनकी लाश की कोई जरूरत नहीं है।"

इस घटना के बाद, पुलिस ने एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया। दो महीने की जांच और प्रयासों के बाद, रोमन वार्दाज और गैंचो गानेव नामक चोरों को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में चोरों ने खुलासा किया कि उन्होंने चार्ली की बॉडी स्विट्जरलैंड के नोवाइल नामक गांव के पास दफना दी थी। पुलिस ने बॉडी को वहां से बरामद किया और उसे फिर से उसी स्थान पर दफनाया गया जहां वह मूल रूप से दफनाई गई थी।


इस घटना ने चार्ली चैपलिन की मृत्यु को भी एक असाधारण कथा का हिस्सा बना दिया, जैसे उनकी जिंदगी और उनके किरदार असाधारण थे। उनका जीवन, उनकी कला, और यहां तक कि उनकी मृत्यु के बाद की घटनाएं भी लोगों के बीच गहरी रुचि और चर्चा का विषय बनीं।

चार्ली चैपलिन का निधन 25 दिसंबर, 1977 को स्विट्जरलैंड में हुआ। उन्होंने अपनी अंतिम सांस अपने परिवार के बीच ली। उनकी मौत के बाद भी, उनकी विरासत जीवित रही।

चार्ली चैपलिन केवल एक अभिनेता नहीं थे; वे एक फिल्म निर्माता, लेखक, संगीतकार, और सामाजिक विचारक भी थे। उनकी फिल्में आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि उन्होंने मानवीय भावनाओं, हास्य, और सामाजिक मुद्दों को बेहद खूबसूरती से पेश किया।उनकी कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जिसने गरीबी और संघर्षों से उठकर सिनेमा की दुनिया में अपना नाम अमर कर दिया। चार्ली चैपलिन ने दुनिया को हंसाया, रुलाया, और यह सिखाया कि कला केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का आईना भी हो सकती है।

चार्ली चैपलिन और महात्मा गांधी के बीच का रिश्ता अद्वितीय और प्रेरणादायक है, जिसमें राजनीति, समाज, और विचारों की अद्भुत संगम की झलक मिलती है। यह कहानी केवल दो महान हस्तियों के मिलने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके विचारों और उनके जीवन के प्रति दृष्टिकोण को भी दर्शाती है।

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