लखनऊ: अमेरिकी किसान भी मंदी की मार झेल रहें है ये चौकाने वाली खबर हो सकती है क्यों कि अभी तक तो हम लोग खेती किसानी में विकसित देशों को अग्रणी मानते रहें है।अमेरिका जैसे देश के किसान भला क्यों मंदी की मार झेलेंगे, लेकिन वो इस नयी चुनौती से दो चार हो रहें है। यहां तक तो ठीक है पर इसके आगे वाली बात विल्कुल हतप्रभ कर देने वाली है। कुछ वर्ष पूर्व वहां पूर्व सैनिकों के आत्महत्या की दर सबसे अधिक थी,लेकिन अब उस स्थान को किसानों ने ले लिया है।
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दरअसल विभिन्न देशों के पत्रकारों का एक दल अमेरिका में 'कैलिफोनिया वॉलनट कमीशन' के बुलावे पर अखरोट की खेती का वास्तविक अनुभव लेने के लिए उन स्थानों भमण किया जहां आधुनिक तकनीक से अखरोट की खेती की जाती है। किसानों ने पत्रकारों से अपने अनुभव साझा किए। अमेरिका में अखरोट की खेती करने वाले किसानों की संख्या पांच हजार से भी कम है। लेकिन वह तो अखरोट उत्पादन में चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। वहां अखरोट सिंचाई , अखरोट तोड़ने उनके संग्रह और फिर बचा काम पैकेजिगं का तो वो काम भी मशीनों के जरिए निपटा दिया जाता है।
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जब मशीनों के जरिए उत्पादन के क्षेत्र में अमेरिका दूसरे देशों को चुनौती दे रहा है तो प्रमुख कारण क्या हो सकते जा ये किसान मंदी की मार झोल रहें है।अंतराष्ट्रीय बाजार में करीब करीब दुग्ध उत्पादों और प्रमुख फसलों के दामों में गिरावट अमेरिकी किसानों की कमर तोड़ रहा है। किसान संगठनों की पहल पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 12 अरब डालर का पैकेज उन किसानों को दिया था जो इस मंदी की चपेट झेल रहें है।ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा दिए। ट्रंप प्रशासन के द्वारा उठासे गए इस कदत से किसानों की आमदनी में कमी होना तय तमानी जा रही है।
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इसके अलावा ये किसान खेती की लगात में बृद्धिए मौसम की प्रतिकूलताए और अन्य रोजमर्रा की समस्याओं से जूझ रहें है। अमेरिका में किसानों की आर्थिक मानसिक समस्याओं का निदान करने वाले संगठनों और अन्य किसान हितैषी समूहों के पास परेशान हाल किसानों के फोन आने की संख्यातेजी से बढत्र रही है।