5 सवाल JNU बवाल पर: क्या है किसी के पास इसका जवाब?

ऐसे कई सवाल हैं जो अभी तक सुलझ नहीं सकें हैं। एक ओर इस हिंसा के पीछे का मकसद, तो दूसरी ओर नकाबपोश आरोपियों की पहचान के बारे में हर कोई जानना चाहता है। वहीं दिल्ली पुलिस की लेटलतीफी और यूनिवर्सिटी में सुरक्षा के इंतजाम पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।

Update:2020-01-07 12:09 IST
Five Unsolved question on JNU Violence

दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रविवार देर शाम हुई हिंसा को लेकर देश भर में प्रदर्शन शुरू हो गया है, वहीं राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है लेकिन इस मामले में ऐसे कई सवाल हैं जो अभी तक सुलझ नहीं सकें हैं। एक ओर इस हिंसा के पीछे का मकसद, तो दूसरी ओर नकाबपोश आरोपियों की पहचान के बारे में हर कोई जानना चाहता है। वहीं दिल्ली पुलिस की लेटलतीफी और यूनिवर्सिटी में सुरक्षा के इंतजाम पर भी सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।

जेएनयू बवाल से जुड़े पांच सवाल:

नकाबपोश हमलावर कौन थे?

सबसे पहला सवाल जो हर किसी के जहन में हैं वो ये कि आखिर यूनिवर्सिटी परिसर में घुस कर छात्रों पर हमला करने वाले नकाबपोश कौन हैं। पुलिस ने भले ही अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है और पहचान शुरू कर दी लेकिन नकाबपोश कौन थे और उनकी असली मंशा क्या थी, ये अब तक सवाल ही बना हुआ है।

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हालाँकि हिंदू रक्षा दल ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए ये कहा कि उनके संगठन के कार्यकर्ताओं ने परिसर में झगड़ा किया था लेकिन पुलिस ने अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया। माना जा रहा है कि पब्लिसिटी स्टंट के तौर पर संगठन ने इस हिंसा की जिम्मेदारी ली है।

नकाबपोश हमलावरों ने कैसे की परिसर में एंट्री:

नकाबपोश हमले के उद्देश से परिसर में घुसे थे लेकिन सवाल है कि इस दौरान उनपर किसी की नजर नहीं गयी या उन्हें अनदेखा कर दिया गया। क्योंकी मारपीट की घटना शाम लगभग 5 बजे हुई। यानी नकाबपोश गुंडे इससे पहले ही कैंपस में आ चुके थे। सवाल उठता है कि जब ये लोग कैंपस में घुस रहे थे तो उन्हें किसी ने देखा कैसे नहीं? वहीं जेएनयू में प्रवेश के लिए सबसे पहले एक रजिस्टर पर अपना नाम दर्ज करना होता है, तो क्या इस दौरान भी उनके मंसूबों का पता सुरक्षाकर्मी भांप नहीं सके थे?

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यूनिवर्सिटी की सिक्योरिटी उस वक्त कहां थी?

हमलावर कैंपस में घुसे, छात्रों और शिक्षकों को बेरहमी से पीटते रहे और फिर वारदात को अंजाम देकर बेफिक्री से वापस चले गये। इस दौरान यूनिवर्सिटी की सिक्योरिटी कहां थी? कहा गया कि हमलावरों ने सुरक्षाकर्मियों को भी पीटा, ऐसे में सवाल सुरक्षाकर्मियों की काबलियत पर भी उठता है। यूनिवर्सिटी ने इन लोगो के भरोसे सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़ी थी, वो 50 गुंडों के सामने कमजोर पड़ गये। वहीं कैंपस में लगे सीसीटीवी भी बेमाने साबित हुए।

पुलिस की लेटलतीफी की क्या थी वजह?

इस हिंसा के बाद सबसे ज्यादा बवाल इस बात पर हुआ कि दिल्ली पुलिस कैंपस गेट पर थी लेकिन फिर भी मौके पर नहीं पहुंची। ऐसे में सवाल उठता है कि पुलिस की लेटलतीफी की वजह क्या थी?

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बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद जेएनयू के प्रशासनिक भवन के पास पुलिस की तैनाती होती है। आरोप है कि जब हमलावरों ने साबरमती हॉस्टल, कोयना हॉस्टल और ढाबे में मौजूद छात्रों को पीटना शुरू कर दिया तो उन्होंने तुरंत पुलिस को इसकी जानकारी दी। 100 नंबर पर धंड़ाधड़ कॉल किए गए। इस दौरान पुलिस गेट तक पहुंची और वहीं रुक गई। आखिर क्यों?

हालाँकि पुलिस कि दलील है कि उनके पास अंदर जाने का आदेश नहीं था। वहीं लगभग 7 बजे शाम को जेएनयू प्रशासन ने दिल्ली पुलिस को प्रवेश करने की लिखित इजाजत दी।इसके बाद लगभग 7.45 बजे दिल्ली पुलिस कैंपस में घुसी। लेकिन तब तक हमलावर भाग चुके थे।

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जेएनयू प्रशासन की भूमिका?

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल जेएनयू प्रशासन की भूमिका पर उठ रहा है। हिंसा के बाद व्हाट्सचैट वायरल हुआ था ,जिसमे हिंसा की प्लानिंग हो रही है। इस दौरान कहा गया कि कुलपति अपना है। हालाँकि इस चैट की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन फिर भी मामले के बाद वाइस चांसलर एम जगदीश कुमार के इस्तीफे की मांग उठी है। आरोप है कि कुलपति ने घायल छात्रों की हाल खबर तक नहीं पूछी।

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