मराठों को मिल सकती है खुशखबरी: इस रिपोर्ट के आने के बाद आरक्षण का रास्ता साफ
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की राजनीतिक मुश्किल का हल लगभग हो गया है। महाराष्ट्र राज्य पिछड़े आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मराठों को राज्य में पिछड़ा माना है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मराठों को आरक्षण मिलने का रास्ता अब साफ हो गया है।
पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट में मराठा समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ा माना गया है। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो रिपोर्ट आने के बाद मराठों को राज्य में शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जा सकता है।
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आरक्षण देने के लिए बिल लाएंगे और विधानसभा से कानून पारित करवाएंगे: मंत्री
आयोग के सचिव इस रिपोर्ट को आज राज्य के मुख्य सचिव डीके जैन को सौंप सकते हैं। इधर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री का कहना है कि इस रिपोर्ट को बॉम्बे हाईकोर्ट को नहीं सौंपा जाएगा। उन्होंने कहा, 'हम इस रिपोर्ट पर कैबिनेट मीटिंग में चर्चा करेंगे। हम मराठों को आरक्षण देने के लिए बिल लाएंगे और विधानसभा से कानून पारित करवाएंगे। अगर कोई इस कानून को कोर्ट में चुनौती देगा तो ही हम यह रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेंगे।'
बता दें कि मराठों के आरक्षण की मांग 1980 के दशक से लंबित पड़ी है। राज्य पिछड़ा आयोग के सूत्रों के मुताबिक 25 विभिन्न मानकों पर मराठों के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक आधार पर पिछड़ा होने की जांच की। इसमें से सभी मानकों पर मराठों की स्थिति दयनीय पाई गई। इस दौरान किए गए सर्वे में 43 हजार मराठा परिवारों की स्थिति जानी गई। इसके अलावा जन सुनवाइयों में मिले करीब 2 करोड़ ज्ञापनों का भी अध्ययन किया गया।
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बता दें कि मराठा 16 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे थे, लेकिन मंत्री का कहना है कि इस समुदाय को 8 से 10 फीसदी तक कोटा दिया जा सकता है। इस समय सीएम फडणवीस सूखाग्रस्त क्षेत्र अकोला के दौरे पर हैं। वहां उन्होंने इस रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर सहर्ष उत्तर दिया कि सरकार इस रिपोर्ट पर दो हफ्तों में जरूरी कदम उठा लेगी।
1980 से अब तक क्या हुआ इस आरक्षण की मांग में
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में 1980 के दशक से ही मराठा आरक्षण की मांग उठने लगी थी। तब मराठा कर्मचारियों के नेता अन्नासाहेब पाटिल ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस मांग को लेकर भूख हड़ताल के दौरान उनकी जान चली गई थी। इसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
2009 से 2014 तक
यह मामला एक बार फिर से 2009 में विधानसभा चुनावों में फिर से उठा था। 2014 तक इस मांग ने काफी जोर पकड़ लिया था। तब कांग्रेस-एनसीपी सरकार के मुखिया सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठों को 16 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी। हालांकि, इस फैसले को बॉम्बे हाई कोर्ट ने पलट दिया था।
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इसी दौरान राज्य की कमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने संभाली थी। उनके कार्यकाल में अहमदनगर जिले में मराठा समुदाय की एक नाबालिग लड़की का गैंगरेप और मर्डर हो गया था। इसके बाद यह समुदाय फिर से भड़क गया था। इस मामले के दोषियों को सजा देने की मांग को लेकर शुरू हुआ विरोध मराठा समुदाय के आंदोलन में बदल गया।
2016 से अब तक
2016 से लेकर इस मामले में पूरे राज्य में 58 मार्च निकाले गए। यह मामला कोर्ट के सामने लंबित होने से सरकार ने पिछड़े आयोग को मराठा समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति जानने की जिम्मेदारी दी थी।
फडणवीस सरकार के लिए मुसीबत तब और बढ़ गई जब राज्य के एक ओबीसी धड़े ने कहा कि मराठा समुदाय को 27 फीसदी कोटे से अलग आरक्षण दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, औरंगाबाद जिले में काकासाहेब शिंदे ने आरक्षण की मांग को लेकर एक नहर में कूदकर जान दे दी थी। मराठा समुदाय को आरक्षण की मांग को लेकर ही राज्य में नौ लोगों ने आत्महत्या कर ली थी।
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माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट के आने के बाद महाराष्ट्र के ब्राह्मण मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल की सबसे बड़ी चुनौती का हल निकल आएगा।