नई दिल्लीः माल व सेवा कर कानून (जीएसटी) के संविधान संशोधन विधेयक को करीब 21 राज्यों की विधानसभाओं से औपचारिक स्वीकृति व राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद भी अभी इसे निर्णायक कानूनी जामा पहनाने के लिए कई तरह के उतार-चढावों से गुजरना है। सरकार की मंशा है कि इन सभी बाधाओं को दूर करने के बाद देश में एक समान कर प्रणाली की क्रांतिकारी व्यवस्था को अगले साल 1 अप्रैल 2017 से लागू कर दिया जाए। लेकिन इसके लिए इसे पांच बड़ी सीढ़ियां पार करनी होंगी।
राह में हैं पांच बड़ी सीढ़ियां
वित्त मंत्रालय का मानना है कि जीएसटी को मूर्तरूप देने के लिए इसे अभी पांच बड़ी सीढ़ियां पार करनी है। अधिकारियों के मुताबिक अगले सप्ताह जीएसटी से जुड़ी आगे की तैयारियां आरंभ कर दी जाएंगी। वित्त मंत्रालय जीएसटी कांउसिल के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दे देगा। सरकार को इसके साथ ही नवंबर में संसद के शीतकालीन सत्र के लिए जीएसटी को लागू करने के लिए अहम तीन संशोधन विधेयकों को भी मंजूरी दिलानी है। इसमें केंद्रीय सरकार, एकीकृत और तीसरा सभी राज्यों से संबंधित विधेयक होंगे। इनके मसौदे पर कामकाज करना है। इसी तरह समानांतर तरीके से सभी राज्य विधानसभाओं को अपने-अपने राज्य का विधेयक भी पारित करवाना है।
टैक्स सीमा पर खींचतान
टैक्स को सीमित रखने के बारे में अभी व्यावहारिक तौर पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच खींचतान और मतभेद हैं। जो ज्यादा माल और सामान निर्माण करने वाले राज्य हैं, वे अपनी टैक्स आमदनी घटने की आशंका से चिंतित हैं। इस मामले में टैक्स सीमा को लेकर 15.5 से लेकर 26 फीसदी का विकल्प खुला रखने को लेकर कांग्रेस विरोध कर रही है। उसकी यही मांग रही है कि नए टैक्स दायरे को 18 फीसदी से ज्यादा न बढ़ाया जाए और सरकारों को थोड़ा-थोड़ा करके टैक्स लादने की अनुमति न दी जाए।
ऐसा क्यों चाहती है कांग्रेस?
कांग्रेस का संसद के भीतर-बाहर यही रुख रहा है कि यदि जीएसटी के तौर पर देश में एक समान कर प्रणाली लागू किए जाने के बाद भी सत्ता में बैठे लोगों को मनमाने तरीके से जनता पर किसी न किसी बहाने टैक्स लादने की छूट जारी रखी गई तो इससे जीएसटी कानून लाने का मकसद ही बेमतलब हो जाएगा। दिल्ली समेत देश के कई प्रदेशों के व्यापरियों को वित्त मंत्रालय के इस दावे पर भरोसा नहीं हो रहा कि ज्यादातर वस्तुओं पर टैक्स कम होने से उन्हें लाभ होगा।