मुंबई : मुंबई के पॉश कोलाबा इलाके में रक्षा मंत्रालय की जमीन पर बनी आदर्श हाउसिग सोसायटी की 31 मंजिला इमारत जिसका निर्माण इस मकसद से किया गया था कि 1999 में कारगिल युद्ध के विजेताओं और विधवाओं को आश्रय प्रदान किया जा सके। आदर्श हाउसिग सोसयाटी संवेदनशील तटीय इलाके हैं और कई रक्षा प्रतिष्ठानों के निकट स्थित है। इस इमारत में बने फ्लैटों को या तो नौकरशाहों को आवंटित किया गया या फिर राजनेताओं के करीबी रिश्तेदारों को।
यह मुद्दा सबसे पहले 2003 में एक समाचार पत्र की खबर में सामने आया था लेकिन सेना और सीबीआई द्वारा 2010 में अलग-अलग की गई जांच की रिपोर्टो में दर्शाया गया कि यह फ्लैट नौकरशाहों, राजनेताओं और उन सैनिकों को दिए गए जिनका कारगिल युद्ध से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था।
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भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की 2011 में आई एक रिपोर्ट में कहा गया था, "आदर्श को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के इस अध्याय का खुलासा तब हुआ जब कुछ चुनिंदा अधिकारियों के एक समूह ने निजी लाभ के लिए एक विशेष सरकारी जमीन को हथियाने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया।" ये अधिकारी उस दौरान मुख्य पदों पर आसीन थे।
इमारत को भी कई नियमों को ताक पर रखकर बनाया गया था। रिपोर्ट में सामने आया कि नौसेना ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी किए गए व्यवसाय प्रमाण पत्र का भी विरोध किया था। नौसेना ने इमारत को लेकर 'गंभीर सुरक्षा चिंता' का हवाला दिया था। नौसेना ने कहा था कि यह इमारत लगभग 100 मीटर लंबी है, और यह एक प्रस्तावित हेलीपैड और सैन्य प्रतिष्ठानों के बगल में स्थित है।
इसके अलावा कई पर्यावरण कानूनों का भी उल्लंघन हुआ था। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि सोसायटी ने पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी प्रमाण पत्र भी नहीं लिया था। साथ ही केवल छह मंजिल इमारत बनाने की मंजूरी मांगी गई थी।
इसका फायदा उठाने वालों में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण के रिश्तेदार हैं। साथ ही चव्हाण की सास ने इमारत में तीन फ्लैट खरीदे थे। चव्हाण ने नवंबर 2010 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
महाराष्ट्र सरकार ने जनवरी 2011 में मामले की जांच के लिए दो सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था। आयोग की अध्यक्षता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. ए. पाटिल कर रहे थे और उनके साथ एन.एन. कुम्भर सदस्य सचिव का कार्यभर संभाल रहे थे। दो साल से अधिक समय में 182 गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट अप्रैल 2013 में महाराष्ट्र सरकार को सौंपी थी।
रिपोर्ट में दर्शाया गया कि 25 फ्लैटों का गैरकानूनी तरीके से आवंटन किया गया था, जिसमें से 22 प्रतिनिधियों द्वारा खरीदे गए थे। रिपोर्ट में चार मुख्यमंत्रियों पर भी आरोप लगाए गए थे। जिनमें अशोक चव्हाण, विलासराव देशमुख, सुशीलकुमार शिंदे और शिवाजी राव निलांगेकर पाटिल शामिल हैं। साथ ही दो शहरी विकास मंत्रियों राजेश टोप और सुनील ततकरे पर भी आरोप लगाए गए हैं। इसके अलावा इस रिपोर्ट में 12 नौकरशाहों को विभिन्न गैरकानूनी कार्य के लिए भी नामित किया गया था।