पटना: पटना उच्च न्यायालय ने बिहार में जनता दल (युनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन सरकार के गठन को चुनौती देने वाली दो याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं।
पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन की खंडपीठ ने बिहार में नवगठित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के गठन की प्रक्रिया के खिलाफ दर्ज याचिका खारिज कर दी।
सरकारी वकील ने बताया कि न्यायालय ने याचिकाओं को इस आधार पर खारिज कर दिया कि नई सरकार का गठन संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुरूप हुआ है।
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न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत हासिल किया है। अदालत ने कहा कि वह इस स्थिति में कुछ नहीं कर सकती।
बिहार के महाधिवक्ता ललित किशोर ने बताया कि अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने सदन में बहुमत साबित कर दिया है, ऐसे में अदालत ऐसे मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अदालत ने यह भी कहा कि अगर आपके पास बहुमत था, तो इसे सदन में साबित करना चाहिए था। केवल यह कहना कि हम सबसे ज्यादा विधायकों की पार्टी हैं, पर्याप्त नहीं है।
अदालत ने शुक्रवार को मामले की संक्षिप्त सुनवाई के बाद मामला सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया था।
दोनों याचिकाओं में से एक जीतेंद्र कुमार और दूसरी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) विधायकों सरोज यादव और चंदन कुमार वर्मा ने दायर की थीं।
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याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ नीतीश कुमार के नेतृत्व में जनता-दल (युनाइटेड), राजद और कांग्रेस के महागठबंधन को जनादेश मिला था और इस सरकार को पांच साल सरकार चलाना था।
याचिकाकर्ताओं ने साथ ही कहा कि राजद के विधानसभा में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होने के बाद नई सरकार बनाने के लिए उन्हें आमंत्रित नहीं किया।
याचिकाओं में कहा गया था कि यह संविधान के विरुद्ध है और अदालत को हस्तक्षेप करके नवगठित जद (यू)-भाजपा गठबंधन सरकार को बर्खास्त कर देनी चाहिए।