तुलसीदास पुण्यतिथि : जब प्रेत ने गोस्वामी जी को कराया था भगवान राम के साक्षात् दर्शन
लखनऊ: राम चरित मानस के रचयिता महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी का आज ही के दिन 1623 में निधन हो गया था। उन्होंने काशी में अंतिम सांस ली थी। उन्हें हिंदी साहित्य का प्रथम कवि माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उन्हें एक प्रेत ने भगवान हनुमान का पता बताया था। बाद में प्रेत और हनुमान जी के सहयोग से ही तुलसीदास जी को भगवान राम के साक्षात् दर्शन हो पाए थे।
newstrack.com आज आपको तुलसीदास जी की पुण्यतिथि के मौके पर अनटोल्ड स्टोरी के बारे में बता रहा है।
जन्म के समय मुंह में थे 32 दांत
तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास का जन्म मूल नक्षत्र में एक ब्राह्राण परिवार में हुआ था।
ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में 12 महीने तक रहने के कारण काफी हष्ट-पुष्ट थे। जन्म के समय में इनके मुख में 32 दांत थे।
ऐसे पड़ा था रामबोला नाम
ऐसा कहा जाता है कि जन्म लेने के साथ इन्होंने राम शब्द का उच्चारण किया था जिससे इनका नाम रामबोला पड़ गया था। बचपन से ही तुलसीदास जी का मन पूजा पाठ में ज्यादा लगता है।
इनकी छोटी उम्र को देख तब उनके घर में किसी को भी इस बात का तनिक भी आभास होता था कि कि एक दिन वे भगवान राम के बहुत बड़े भक्त बनेंगे। उम्र बढ़ने के साथ ही राम के प्रति उनकी आस्था बढ़ती गई।
जब पत्नी ने लगाई थी फटकार
तुलसीदास जी ने अपने बाल्यकाल में से ही अनेक दुख उठाए। जब वे युवा हुए तो उनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ, अपनी पत्नी रत्नावली से इन्हें अत्यधिक प्रेम था लेकिन अपने इसी प्रेम के कारण उन्हें एक बार अपनी पत्नी रत्नावली की फटकार भी सुननी पड़ी थी। रत्नावली ने उन्हें फटकारते हुए कहा था कि
"लाज न आई आपको दौरे आए हु नाथ" अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता।।
रत्नावली के इन शब्दों ने तुलसीदास जी के जीवन की दिशा ही बदल दी और तुलसी जी, राम जी की भक्ति में ऐसे डूबे कि उनके अनन्य भक्त बन गए।
बाबा नरहरिदास से ली थी दीक्षा
कुछ दिन बाद इन्होंने फिर गुरु बाबा नरहरिदास जी से दीक्षा प्राप्त की। तुलसीदास जी का अधिकांश जीवन चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ। तुलसी दास जी अनेक स्थानों पर भ्रमण करते रहे उन्होंने अनेक कृतियों की रचना की है।
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जब प्रेत ने कराया भगवान राम के दर्शन
ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास को हनुमान, भगवान राम-लक्ष्मण और शिव-पार्वतीजी के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए थे। अपनी यात्रा के समय तुलसीदास जी को काशी में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। हनुमानजी के दर्शन करने के बाद तुलसीदास ने भगवान राम के दर्शन कराने की प्रार्थना की।
इसके बाद उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए लेकिन वह भगवान को पहचान नहीं सके। इसके बाद फिर मौनी अमावस्या के दिन पुन: भगवान श्रीराम के दर्शन हुए उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-"बाबा!
हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?"
हनुमान जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण कर दोहे में बोलकर इशारा किया।
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसीदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गए। भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गए।
गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया।
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वाल्मीकि की 'रामायण को आधार मानकर की राम कथा की रचना
वाल्मीकि जी की रचना 'रामायण' को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में राम कथा की रचना की। तुलसीदास जी संस्कृत भाषा के भी विद्वान थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस को बहुत भक्तिभाव से पढ़ा जाता है, रामचरितमानस जिसमें तुलसीदास जी ने भगवान राम के चरित्र का अत्यंत मनोहर एवं भक्तिपूर्ण चित्रण किया है।
रचनाओं से किया कुरीतियों को दूर करने का प्रयास
तुलसीदास जी ने उस समय में समाज में फैली अनेक प्रकार की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने विधर्मी बातों, पंथवाद और सामाज में उत्पन्न बुराईयों की आलोचना की उन्होंने साकार उपासना, गो-ब्राह्मण रक्षा, सगुणवाद एवं प्राचीन संस्कृति के सम्मान को ऊपर उठाने का प्रयास किया वह रामराज्य की परिकल्पना करते थे।
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