यूपी निकाय चुनाव- खिला कमल, लौटा हाथी, साइकिल पंचर, बेदम कांग्रेस

Update:2017-12-01 18:37 IST

अनुराग शुक्ला

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में राम के सहारे, योगी का पहला रिपोर्ट कार्ड भाजपा को खुश कर गया। उत्तर प्रदेश ने एक बार फिर 16 नगर निगमों में से 14 पर कोमल खिला दिया है। साथ ही 2 जगहों अलीगढ और मेरठ में हाथी के हाथ शहर की सरकार सौंप कर संकेत यह दिया हाथी को लोगों का साथ फिर से मिलने लगा है। सियासी रेस में बैठ चुका हाथी अब फिर से ट्रैक पर आ गया है। भाजपा को योगी के नेतृत्व पर ठप्पा लगाने की संजीवनी मिल गयी है तो समाजवादी पार्टी टैक्टिकल वोटिंग का शिकार कुछ उसी तरह हुई जैसे लोकसभा में बसपा हुई थी। कांग्रेस एक बार फिर अपनी पतली हालत से उबरने में नाकाम रही है।

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दरअसल निकाय हमेशा से ही भाजपा का मजबूत किला रहे है। ऐसे में जहां भाजपा अपना पूरा दमखम झोंक दिया था। मुख्यमंत्री योगी को यह पता था कि उत्तर प्रदेश में में निकाय चुनाव उनकी सरकार की ताकत, सियासी पकड़ और विरोधियों के उनके पैराशूट से उतरने का जवाब बन सकते है। यही वजह है कि उन्होंने इस चुनावों को महज शहर की सरकार के लिहाज से नहीं देखा। मुख्यमंत्री ने इन पूरे चुनावों में 40 सभाएं की ।चरण वार वाररूम बनाकर भाजपा ने इसे अंजाम दिया। नतीजा यह कि इस के परिणाम पिछले दशक में सबसे बेहतर आए हैं। वहीं नए नगर निगमों में अयोध्या, मथुरा, सहारनपुर और फिरोजाबाद में हर जगह कमल खिला है। (देखें बाक्स 1)

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सीएम योगी आदित्यनाथ या ये कहें कि यूपी बीजेपी ये बात अच्छे से जानती है कि भगवान राम का मुद्दा हर चुनाव की तरह आगामी और वर्तमान चुनाव में कितना संवेदशील है। सबसे अहम है कि योगी खुद इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ चुके हैं। यह चुनाव पार्टी के साथ ही उनके राजनैतिक दक्षता का प्रमाण भी पेश करेगा। दरअसल, विधानसभा चुनाव में 325 प्लस का प्रचंड बहुमत पाने के बाद पहली बार बीजेपी जनता के बीच जा रही है।

ये चुनाव जीएसटी, व्यापारियों के गुस्से, योगी के काम काज की स्टाइल, सबका लिटमस टेस्ट था। गौरतलब है कि इस निकाय चुनाव से पहले अब तक कोई भी उपचुनाव नहीं हुए। सरकार को 8 महीने भी हो चुके हैं। ऐसे में योगी के फैसले चाहे वह अवैध स्लॉटर हाउस की बंदी, एंटी रोमियो स्क्वाड, गोरक्षा, जीएसटी से व्यापारियों की नाराजगी के होने का यह लिटमस टेस्ट भी था।

बीजेपी की सफलता की कहानी ने योगी आदित्यनाथ के जननेता होने के सवालों पर विराम लगेगा। यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव में न सिर्फ व्यक्तिगत रुचि ली थी बल्कि इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया। इससे पहले किसी बीजेपी के सीएम ने इस तरह निकाय चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। इस जीत के बाद योगी आदित्यनाथ का कद पार्टी में भी और बढ गया है। वह एक प्रशासक के तौर पर स्थापित ए हैं और सरकार के कामकाज को जनता की हरी झंडी के तौर पर दिखाया जाएगा। योगी के खिलाफ उठ कई आवाजों की हिम्मत टूटी है और उन्होंने उस छवि को तोड़ दिया है जिसमें पोस्टर बॉय के तौर पर लोकसभा 2014 के बाद हुए उपचुनावों में असफल नायक का कलंक छिपा था।

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लेकिन चिराग तले अंधेरा

ये चुनाव जहां हर दल के लिए सियासी संदेश लेकर आए वहीं हर दल को आइना भी दिखा गए। कांग्रेस अमेठी लोकसभा के गौरीगंज में चौथे नंबर पर रही तो भाजपा ने इसे मुद्दा बना दिया। हालांकि सच्चाई यह भी है कि लोकसभा के अलावा गौरीगंज विधानसभा भी कभी कांग्रेस का गढ नहीं रहा है। कभी वह जीतती है तो कभी हार जाती है। वहीं कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने खुद चुनाव लड़ा और वह पहले दो स्थान पर भी नहीं रहे।

इस जीत में भाजपा को अपने मैनेजमेंट पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने जहां वोट डाला था वहां के वार्ड में भी भाजपा हार गयी और गोरक्षपीठ के आस पास के 4 वार्ड भी भाजपा हार गयी। इसी तरह कौशांबी में पूरे जिले में 6 नगर पंचायत भी भाजपा हार गयी गौरतलब है कि यह उपमुख्यमंत्री के प्रभाव की सीट है।

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लौट आया हाथी

सियासी तौर पर बीमार चल रहे हाथी को इन निकाय चुनावों ने संजीवनी दे दी है। बसपा ने जहां शुरुआती रुझानों में 6 सीटों पर बढत बनाकर सियासी गणित के उलटफेट की कहानी लिखी थी वहीं अंत में सीटें जीत कर यह साबित कर दिया कि हाथी न तो मरा है न ही 9 लाख का हुआ है वह अब भी सियसी तौर पर पूरी तरह से सियासी दंगल में किसी को भी पटखनी दे सकता है।

इस पूरी जीत में यह साफ है कि बसपा को एक बार फिर मुस्लिमों का साथ मिला है। वह भी सपा और कांग्रेस की कीमत पर। यही वजह है कि सपा और कांग्रेस का खाता नहीं खुला और बसपा ने ही सियासी तौर भाजपा को टक्कर दी है। वह भी तब जब मायावती पूरी तरह सक्रिय नहीं थी जब चुनाव शबाब पर थे तो मायावती भोपाल में रैली कर रही थी और लखनऊ में उन्होंने तो अपना वोट तक नहीं ड़ाला था।

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सपा टैक्टिकल वोटिंग का शिकार

सपा निकाय चुनाव में उसी तरह से टैक्टिकल वोटिंग का शिकार हुई जैसे लोकसभा में बसपा हुई थी। नतीजा भी वही हुआ सपा का खाता नहीं खुला। भले ही सपा का खाता न खुला हो पर ज्यादातर जगहों पर वह नंबर पर थी। मेयर यानी नगर निगम के अलावा पार्टी को नगर पालिका और नगर पंचायत में जिस तरह की सफलता मिली उसमें सिर्फ टैक्टिकल वोटिंग की कमी दिखी वरना वोट के लिहाज से बसपा से बेहतर दिख रही है समाजवादी पार्टी।

दरअसल समाजवादी पार्टी बीजेपी की सियासी दुश्मन नंबर एक होने का दवा कर रही है। पर उसका सबसे बडा चेहरा अखिलेश यादव प्रचार से गायब रहे। उन्होंने कई मौकों पर कहा था कि उनके कार्यकर्ता ही इस चुनाव को लडने में सक्षम है। यानी या तो वह इन चुनावों को अहमियत नहीं दे रहे थे या फिर कुछ ज्यादा ही आसान समझ रहे हैं। या फिर इन चुनावों में उन्होने अपनी पार्टी का हश्र का पता लगा लिया था। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के यूथ आइकान हैं और अपनी पार्टी के सबसे बड़े स्टार है पर उनका प्रचार से गायब होना रणनीति के लिहाज से भी लोगों को समझ नहीं आ ही है।

फिर टूटी कांग्रेस की उम्मीद

कांग्रेस का अमेठी में हारना और उनके पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य का दूसरे स्थान पर भी न होना इस बात का संकेत है कि प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अब भी दयनीय ही है। राजधानी में मेयर के प्रत्याशी को लेकर ही कांग्रेस के तीन दावेदार हो गये थे। प्रदेश स्तर के नेता राष्ट्रीय हो चुके हैं और प्रदेश में नेता बचे नहीं ऐसे में निकाय चुनाव किससे भरोसे लडे कांग्रेस के सिपाही ये बड़ा सवाल है।

वैसे जमीन पर कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर ने फैजाबाद, आगरा, और अम्बेडकरनगर में रोड शो किया। पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने भी कानपुर में प्रचार किया। पार्टी के राष्ट्रीय सचिव शकील अहमद शामली के कान्धला, झिंझाना और कैराना जैसे अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में प्रचार में जुटे रहे। सांसद संजय सिंह और प्रमोद तिवारी भी जनसभाए करते रहे पर जनता ने उनके हाथ को अपना साथ नहीं दिया।

एडवांटेज बीजेपी

निकाय चुनाव में 14 मेयर पद जीतने वाली बीजेपी को इसका फायदा गुजरात चुनाव में भी मिलेगा। दरअसल, यूपी निकाय चुनाव के रिजल्ट की टाइमिंग भी जबरदस्त हैं गुजरात विधानसभा चुनाव में 9 दिसंबर को पहले चरण की वोटिंग होनी है। इस परिणाम ने व्यापारियों के गुस्से की बात को खारिज करने में बीजेपी को असली हथियार दिया है। गुजरात में इस चुनाव की गूंज होगी इसका उदाहरण भाजपा नेताओँ बोल से दिख रहा है।

अमेठी में कांग्रेस चौथे स्थान पर आने पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी पर निशाना साधा कि जो अपना निकाय नहीं जीत सकता वो क्या बात करता है वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी राहुल पर निशाना साधने से नहीं चूके, कहा, “ये चुनाव सबकी आंख खोलने वाले हैं जो लोग गुजरात के बारे में बड़ी बड़ी बात करते हैं उनका सफाया हो गया यहां तक कि अमेठी में भी उनका सूपड़ा साफ हो गया। उन्होंने कहा कि ये मोदी के विकास और विजन की जीत है। ”

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अब नहीं होगा महागठबंधन

दरअसल इन नतीजों ने न सिर्फ शहर की सरकार की तस्वीर साफ की है बल्कि प्रदेश के सियासत की दिशा भी दिखा दी है। बसपा को मिली सफलता के बाद अब प्रदेश में बिहार की तर्ज पर महागठबंधन की स्थिति अब बीच रास्ते दम तोड़ने लगी है। मायावती की सियासत समझने वाले जानते हैं कि मायावती कभी भी तब तक गठबंधन नहीं करती जब तक वह उसकी लीडर न हो। ऐसा कोई भी गठबंधन नहीं चला जिसमें मायावती को सेकेंड इन कमांड की भूमिका दी गयी है। लोकसभा में खाता न खोल पाने और विधानसभा में सिमट जाने के बाद भी मायावती ने महागठबंधन को तरजीह नहीं दी थी। अब निकाय चुनाव में उन्हें अपने काडर के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला है ऐसे में वह अब हर हाल में अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी करेंगी।

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