सृष्टि प्रकृति पुरुष और स्त्री का समुच्चय है। यह समुच्चयता प्रतिस्पर्धात्मक नहीं है। प्रतियोगी नहीं है। पूरक है। स्त्री और पुरुष एक दूसरे को पूरक होते हैं। हमने इन्हें प्रगति की दौड़ में प्रतिस्पर्धी और प्रतियोगी बना दिया है। इस बदलाव में सृष्टि के रचने की परंपरा के रस कम करने शुरु कर दिए हैं। जब दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं। पूरक बनते हैं तब उनकी अनोन्याश्रितता होती है। एक में दूसरे की छवि समाती है। देखी जा सकती है। पर निरंतर यह बीते दिनों की बात होती जा रही है। यह पिछड़ेपन का प्रतीक बन गया है।
हम भूल गये कि जब दो वस्तुओं में, दो स्थितियों में, दो व्यक्तियों में,प्रतिस्पर्धा होगी तो एक पिछड़ेगा,खत्म होगा, चुकेगा। दुर्भाग्य यह है कि जो चुक रहा है, खत्म हो रहा है वही प्रतियोगिता की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है। यह पृष्ठभूमि उसे अस्पृश्य बना रही है। जातिगत अस्पृश्यता खत्म करने के दावों के बीच प्रकृति, पुरुष और स्त्री के बीच की अस्पृश्यता नया और बड़ा आकार ले रही है।
बीते 7 फरवरी को फिल्म स्टार जीतेंद्र, जिनका असली नाम रवि कपूर है, पर उनकी ममेरी बहन ने 47 साल पहले यौन उत्पीड़न किए जाने का मामला हिमाचल पुलिस में दर्ज कराया है। मामले के मुताबिक आरोप लगाने वाली जितेंद्र की ममेरी बहन जनवरी 1971 में उनके साथ उनकी फिल्म की शूटिंग देखने दिल्ली से शिमला गईं थी। उस समय उनकी उम्र 18 और जितेंद्र की 28 वर्ष थी। उनका आरोप है कि शूटिंग के बाद उन्होने होटल के कमरे में अलग अलग रखे बेड को जोड़ लिया और उनका यौन उत्पीड़न किया।
कानून के मुताबिक इस तरह के मामलों में शिकायत करने के लिए तीन साल की मियाद है। इस मामले में 47 साल बीत चुके हैं। हालांकि महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी इस लक्ष्मण रेखा पार करने की तैयारी में है। उनका मंत्रालय इस बात की कोशिश में है कि यौन उत्पीड़न के किसी भी मामले की शिकायत की मियाद नहीं रहे। दरअसल मेनका गांधी ने 53 साल की भारतीय मूल की कैनेडियन वैज्ञानिक के मामले के बाद यह पहल की है। इन वैज्ञानिक का आरोप है कि उनका बचपन में उनके बड़ों ने यौन उत्पीड़न किया था जिसे वह समझ नहीं सकी थीं। इसके लिए उन्होंने बाकायदा चार्ज डॉट ओरजी नाम की वेबसाइट पर अभियान चलाया और एक लाख से ज्यादा लोगों का समर्थन हासिल किया। वैज्ञानिक ने मेनका गांधी से मुलाकात भी की है। इसके बाद मेनका गांधी ने अपने मंत्रालय को ऐसे बच्चों के यौन उत्पीड़न में शिकायत की मियाद की बाध्यता खत्म करने के लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी दी है। बच्चों को यह अहसास कि उनका बचपन में यौन उत्पीड़न किया गया यह बड़े होकर ही होता है। ऐसे में यह मियाद आरोपियों के लिए ढाल का काम करती है।
यौन उत्पीड़न पर पिछले साल 15 अक्टूबर को सामाजिक कार्यकर्ता सोशल मीडिया क्मयूनिटी आर्गनाइजर ताराना बुर्के ने ‘‘मी टू’’ नाम का अभियान चलाया था। ‘‘मी टू’’ दरअसल सोशल मीडिया पर तब चला जब 13 साल की बच्ची ने बुर्के को अपने साथ हुई यौन उत्पीडन की घटना बयां की थी। इस अभियान ने तेजी पकड़ी जब हालीवुड अभिनेत्री एलायसा मिलानो ने ट्वीट कर इसे सामाजिक जागरुकता से जोड़ दिया। उन्होंनें ट्वीट किया कि अगर इस तरह की शिकार सारी महिलाएँ अपने ट्वीट में ‘‘मी टू’’ जोड़कर लिखें तो हम इस समस्या की गंभीरता और विकरालता का एहसास सबको दिला सकेंगे। इस ट्वीट के होने की रात तक ही 2 लाख लोगों ने इसे अपना लिया। इतना ही नहीं 24 घंटे में ही 5 लाख लोग इस ‘‘मी टू’’ के साथ ट्वीट कर चुके थे। फेसबुक पर पहले 24 घंटे में ही ‘‘मी टू’’ हैशटैग का इस्तेमाल 47 लाख लोगों ने किया था जबकि 1 करोड़ 20 लाख पोस्ट भी पहले 24 घंटे में ही इस ‘‘मी टू’’ का इस्तेमाल कर की जा चुकी थी। इससे मामले की गंभीरता का पता लगता है।
नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने पिछले दिनों यौन उत्पीड़न के शिकार कुछ बच्चों की मुलाकात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से करवाई। पूर्वोत्तर की एक बच्ची की आपबीती सुन राष्ट्रपति की आंखें नम हो गयीं। लेकिन इस भयावहता से निपटने का रास्ता कानून को खींचकर लंबा करना नहीं है। नहीं हो सकता है। समय सीमा बढाया जाना इसलिए भी जायज नही माना जाएगा क्योंकि उतने लंबे समय तक उस बच्चे को यौन उत्पीड़न के दंश के एहसास को तो जीना ही पडेगा। इसलिए जरुरी है कि हम बच्चों को इतना साहसी बनाएं। इतना समझदार बनाएं जब भी उन्हें एहसास हो कि उनक साथ कुछ गलत हुआ तब वे मजबूती से खड़े हो सकें। सोशल मीडिया के ‘‘मी टू’’ प्लेटफार्म पर 24 घंटे में ही लोगों की बेतहाशा बढ़ी हुई तादाद यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अगर कोई बच्चा यौन उत्पीडन के खिलाफ खड़ा होगा तो समर्थन की कमी नहीं होगी। समर्थकों की कमी नहीं होगी।
फिल्म स्टार जितेंद्र के मामले को देखने और समझने के बाद और कैनेडियन वैज्ञानिक के शिकायत इस बात की तरफ भी इशारा कर रही है कि दोनों प्रकरणों में भले ही कारण अलग हों पीडित को समय का इंतजार था। यह समय का इंतजार नीयत पर भी सवाल खड़ा करता है।
रामगोपाल वर्मा की सोशल मीडिया पर रिलीज एक शार्ट फिल्म है-मैं सनी लियोन बनना चाहती हूं। इसमें एक लड़की अपनी मां से कहती है कि तुम पिता के साथ जो कुछ देकर रह रही हो उससे तुम्हें सिर्फ दो जून की रोटी और एक छत मिलती है। सनी लियोन के करोड़ो प्रशंसक हैं। दीपिका पादुकोण के अभिनीत एक वीडियो माइच्वाइस वीडियो में वह कहती हैं कि मैं ‘कुछ भी’ करूं मेरी मर्जी। इस वीडियो को 50 हजार लोगों ने नापसंद और 89 हजार लोगों ने पसंद किया है। महिला हित संरक्षण कानून में एक प्रावधान यह भी है कि 10 सेकेंड से अधिक किसी महिला को एक टक नहीं देख सकते हैं। यौन उत्पीड़न के मामले में ‘‘मी टू’’ अभियान में करोड़ों लोग ऐसे अत्याचारों को खिलाफ खड़े होने का साहस दिखाते हैं। मेनका गांधी की मंशा और किसी नए कानून की जरुरत यह बताती है कि आप महिलाओं को स्पृश्य बनाने की साजिश का हिस्सा बन रहे हैं। यह अस्पृश्यता इसलिए भारी पड़ सकती है क्योंकि स्त्री-पुरुष के बीच के विश्वास दरक जाएंगे। विश्वास का दरकना परिवार और समाज दोनों को खोखला करेगा, दोनों को अकेला करेगा। दोनों मिलकर संसार रचते हैं अगर कानून ने एक दूसरे को प्रतिस्पर्धी बना दिया तो संसार के रचने की प्रक्रिया के साथ नैसर्गिक न्याय नहीं हो सकेगा