लखनऊ: संभवतः बेटी ईश्वर द्वारा मानव को प्रदत्त सर्वोत्तम कृति है। बेटे-पोते से भरा घर नि:संदेह खुबसूरत होता है, लेकिन बेटी का आगमन उस घर को सुगंधित कर देता है, और उसके चहक से घर गुंजायमान हो जाता है। मैंने किसी भी घर को या यूं कहें कि मानव जीवन को बेटी के बिना अधूरा पाया। बेटी की करुणा, बेटी का प्यार, बेटी का अपनापन, बेटी के अरमान ये सब अपने आप में बेमिसाल है।
बेटी की किशोरावस्था से ही एक मां का उसमें अपनी छवि देखना और पिता को एक बार फिर से अपनी मां की तरह ध्यान रखने वाली दोस्त का मिलना वास्तव में अद्भुत और अनुपम परिदृश्य उत्पन्न करता है।
इसलिए आप सभी से मेरा अनुरोध है कि बेटी को अपनाइए, अच्छी शिक्षा और संस्कार दीजिए, यकीन मानिए बेटी आपकी सबसे सच्ची हितैषी है और हां याद रहे बेटियों के ही त्याग से तो यह सृष्टि भी चलायमान है।
जैसे सरिता सागर से मिल सरगम का राग सुनाता है
जैसे तारों से सजा हुआ यह अंबर ठुमरी गाता है
जैसे पतझर के बाद हमेशा किसलय नूतन आता है
जैसे पावस की प्रथम बूंद अवनि की प्यास बुझाता है
जैसे ही घर के चौखट पर बेटी की आहट होती है
वह धरा धन्य हो जाती है आंगन मधुबन बन जाता है
बेटी करुणा का जीवित रुप
बेटी अगहन की खिली धूप
बेटी अगहन श्रीष्टि जंगम है
बेटी खुशियों का संगम है
बेटी रूपी खुशबू से मन मंदिर पावन बन जाता है
बेटी है सीपी में मोती
बेटी है लोचन की ज्योति
बेटी का दिल आकाश है
बेटी तम में प्रकाश है
बेटी की चाहत जब मानव के मन में घर कर जाता है
वह धरा धन्य हो जाती है आंगन धुबन बन जाता है
बेटी जीवन का मधुर गीत
बेटी पापा की सारस मीत
बेटी मां की तरुणाई है
बेटी तुलसी की चौपाई है
बेटी की त्याग तपस्या से यह दुनिया हर्ष मनाता है
वह धरा धन्य हो जाती है आंगन मधुबन बन जाती है।।