लखनऊ: भारतीय शास्त्रों में वर्णित बैकुंठ कोई कल्पना मात्र नहीं है। ये ठीक वैसे ही एक हकीकत है जैसे भारतीय अंक गणना , आयुर्विज्ञान , शून्य , खगोल शास्त्र , व्याकरण , गणित अथवा अन्य वे सभी तथ्य है जिन्हें दुनिया आज से पहले कोरी कल्पना मानती थी, लेकिन जब पश्चिम के विज्ञान ने उन सभी को प्रमाणित कर दिया तो उसे सभी ने स्वीकार कर लिया।
दरअसल भारतीय वांग्मय में अनगिनत ऐसे तथ्य भरे पड़े है जिनके बारे में दुनिया को अभी तक पता ही नहीं है अथवा उनको समझ सकने योग्य बुद्धि का ही अभी तक विकास नहीं हो सका है। भारत के प्राचीन शास्त्रों में वर्णित हर तथ्य पर आज कल कही न कही काम हो रहा है। योग को पूरी दुनिया स्वीकार कर चुकी है। शून्य से ही सारी दुनिया का संचालन चल रहा है। यहां तक की जो लोग भारतीयता का घनघोर विरोध करते है, उनके धार्मिक ग्रंथों के पृष्ठों पर भी भारत के अंक शास्त्र के ही अंक दर्ज़ दिखते है। यदि भारत के अंक न होते तो वे अपने धर्म शास्त्र के पैन तक नहीं गईं पाते।
बहरहाल , आज यहां में चर्चा उस बैकुंठ की कर रहा हूं जिसे भगवान का परमधाम कहा जाता है। मैं इस परमधाम के अस्तित्व से आपको परिचित कराने की कोशिश कर रहा हूं। इसमें कोई कल्पना नहीं है। यह सब हमारे ऋषियों, मुनियों , महात्माओं और मीमंसकारों द्वारा प्रमाणित और वेदों तथा उपनिषदों में वर्णित तथ्य है। भगवान के निवास यानि परमधाम बैकुंठ की बात केवल कल्पना नहीं है बल्कि ऐसा ही सच है जैसे दिल्ली, बम्बई, कोलकाता जैसी जगहें आप जानते और देखते है।
उस बैकुंठ की अवस्थापना के बारे में बता दूं कि ये अप्राकृत परम धाम हमारे कोटि कोटि ब्रह्मांडों वाली दिख सकने वाली प्रकृति से तीनगुना बड़ा है। इसकी देख रख के लिए भगवान् के ९६ करोड़ पार्षद तैनात है। हमारी प्रकृति से मुक्त होने वाली हर जीवात्मा इसी परमधाम में शंख, चक्र, गदा और पद्म के साथ प्रविष्ट होती है। वहां से वह जीवात्मा फिर कभी भी वापस नहीं होती। इस तथ्य को समझने के लिए यह भी जान लेना आवश्यक है कि यह कोई देवलोक नहीं है। यह केवल परमपिता परमेश्वर का निवास स्थल है जिसमे वह अपनी चार पटरानियों श्रीदेवी , भूदेवी , नीला और महालक्ष्मी के साथ निवास करते है।
बैकुंठ को थोड़ा और गहराई से समझने की आवश्यकता है। हम जिस ब्रह्माण्ड में रहते है ऐसे करोड़ों ब्रह्माण्ड इस सृष्टि में मौजूद है। इन सभी ब्रह्मांडों के अलावा देवलोक , यमलोक , वायुलोक , ब्रह्मलोक , अतल, वितल , पाताल लोक आदि करोड़ों की संख्या में लोक भी अवस्थित है जिनमें अलग अलग प्रकार के देवी देवता , यक्ष , किन्नर , आदि निवास करते है। अमूमन बिना मुक्ति पाए हुए हर जीवात्मा को इन्हीं लोकों में भ्रमण करना पड़ता है। हमारे शास्त्रों में वर्णित ३३ कोटि देवताओं की संख्या भी अनन्त है। ३३ कोटि की संख्या तो केवल उनके प्रकार है। ३३ कोटियो में अनन्त संख्या में देवताओं का अस्तित्व होता है। इन देवताओं के बारे में जानने के लिए वेदांत की मीमांसा की गहराइयों में उतरना पड़ेगा। उस बारे में कभी विस्तार से चर्चा कर ली जायेगी। अभी तो मैं बात कर रहा हूँ सिर्फ उन जीवात्माओं के बारे में जिनको प्रभु की शरणागति के आधार पर वास्तव में मुक्ति मिलती है तो वे कहा जाकर अपने नारायण से किस प्रकार से मिल पाती है।
जो जीवात्मा वास्तव में अपनी शरणागति यानि प्रभु में लीं होकर धरती से विदा होती है उनको विदा करने के लिए समय के देवता, प्रहार के देवता , दिवस के देवता , रात्रि के देवता , दिन के देवता , ग्रहों के देवता , नक्षत्रों के देवता , मॉस के देवता , मौसम के देवता , पक्ष के देवता , उत्तरायण के देवता , दक्षिणायन के देवता सभी तलो के देवता सभी ३३ कोटियों के देवता पहले तो विरोध करते है की यह बैकुंठ न जाने पाये, लेकिन नारायण की शरणागति के कारण उस जीवात्मा को विदा करने के लिए एकपाद विभूति के अंतिम सीमा तक जाते है और त्रिपाद विभूति के बाहर प्रवाहित होने वाली बिरजा नदी के तट पर छोड़ देते है।
इसी एकपाद विभूति में हमारे करोड़ों ब्रह्माण्ड और सारे लोक अवस्थित है। इस एकपाद विभूति की सीमा के बाद शुरू होता है बैकुंठ धाम। बैकुंठ धाम और एकपाद विभूति के मध्य एक नदी बहती है जिसका नाम है बिराज। बिरजा नदी से ही त्रिपाद विभूति शुरू होती है जो बैकुंठ है। इसी त्रिपाद विभूति में भगवान् अपनी चार पटरानियों और ९६ करोड़ पार्षदों के साथ निवास करते है। मुक्त होने वाली जीवात्मा को जब सभी देवता बिराज नदी तक छोड़ कर जाते है तब वह जीवात्मा नदी मर डुबकी लगाती है और नदी के पार चली जाती है जहां उसका शख चक्र गदा पद्मयुक्त स्वरुप हो चुका होता है। वह से पार्षदगण उसको सीधे नारायण के पास ले जाते है। ऐसी जीवात्मा को नारायण अपनी गॉड में बिठा कर अतिशय प्रेम करते है और इस प्रकार त्रिपाद विभहूति में ही वह जीवात्मा सदा के लिए स्थापित हो जाती है। यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि एकपाद विभूति में , जिसमे करोडो ब्रह्माण्ड और सारे लोक अवस्थित है , इसकी तीन गुना क्षेत्रफल में परमपिता परमेश्वर का परमधाम स्थित है।
आधुनिक पश्चिमी विज्ञानं पढ़ने वालों को इस बात में शायद केवल कल्पना ही नज़र आएगी , लेकिन इसका हमें कोई गम नहीं है। यह तो भारत की महान ज्ञान परम्परा है जिसमे करोड़ों साल पहले ही परमपिता का निवास तक खोज कर बता दिया गया है। अभी तो एकपाद विभूति के एक तुक्ष अंश पृथ्वी के ही चन्द्रमा और मंगल की यात्रा कर पाने वाला कुछ सौ सालो की उम्र वाला पश्चिमी विज्ञान भला भगवान् के त्रिपाद विभूति की कल्पना भी कैसे कर पाएगा।मुक्त जीवात्मा जब भगवान तक पहुंच जाती है तब वह गाती है........पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते
हमारे शास्त्र कहते है कि जीव की इस महायात्रा का स्मरण प्रति दिन प्रातः उठते ही करना चाहिए।
सदा पश्यन्ति सूरयः
यही है शुद्ध , तत्वमय परमात्मा का देश।