लखनऊ: मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में किसानों के चल रहे आंदोलन की आग उत्तर प्रदेश की लगाई हुई है। राजनीतिक नेता चुनाव जीतने के लिए भारी भरकम वादे तो कर देते हैं और उसी वादे के आधार पर चुनाव जीत भी जाते हैं, लेकिन जब उसे पूरा करने की बारी आती है तो हाथ-पैर फूलने लगते हैं।
मामला किसानों की कर्ज माफी का है। यूपी विधानसभा चुनाव के पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने कई जगहों पर अपने भाषण में किसानों की कर्ज माफी का वादा किया। उन्होंने तो यहां तक कहा कि राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट बैठक में ही किसानों की कर्ज माफी का एलान होगा। चूंकि वादा पीएम का था इसलिए चुनाव जीतने और सरकार बनने के 15 दिन बाद पहली कैबिनेट बैठक हुई और उसमें किसानों के एक लाख रुपए तक के कर्ज को माफ कर देने की घोषणा कर दी गई।
तमिलनाडु, पंजाब, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के किसान फसलों का उचित दाम और कर्ज माफी को लेकर पहले से ही आंदोलनरत थे, लेकिन यूपी में किसानों की कर्ज माफी के ऐलान के बाद उनके आंदोलन में तेजी आ गई। यूपी में किसानों की कर्ज माफी के ऐलान के बाद से ही अन्य राज्यों खासकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में आंदोलन तेज हो गया। तमिलनाडु के किसानों ने तो दिल्ली के जंतर-मंतर पर नग्न होकर प्रदर्शन भी किया।
महाराष्ट्र में किसानों ने अपनी फसलों और दूध को सड़कों पर बहाया तो मध्यप्रदेश में हिंसक प्रदर्शन के बाद पुलिस की गोलियां चलीं, जिसमें 5 किसान मारे गए। मध्यप्रदेश की स्थिति अन्य राज्यों से अलग है। वहां खेती की उत्पादकता में 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मध्यप्रदेश को इसके लिए चार बार अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।
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चूंकि देश की खेती वर्षा पर निर्भर है, इसलिए अक्सर सूखा और बाढ़ के कारण फसलें बर्बाद हो जाया करती हैं। फसलों की बर्बादी किसानों को कर्ज के लिए बैंक और साहूकारों की चौखट पर ले जाती हैं। कर्ज से मुक्ति का अस्थाई समाधान तो यही होता कि उनके कर्ज माफ कर दिए जाएं। राजनीतिक फायदे के लिए यह होता भी है।
किसानों के आंदोलन से हलकान और परेशान महाराष्ट्र सरकार ने भी आगामी अगस्त में कर्ज माफी की घोषणा कर दी है, क्योंकि वहां किसानों के आंदोलन को विपक्षी पार्टियों के अलावा सरकार में सहयोगी शिवसेना का भी समर्थन मिला हुआ है।
यूपी में जब किसानों की कर्ज माफी की चर्चा जोर से चल रही थी तब वित्त मंत्री अरूण जेटली ने इसे व्यावहारिक नहीं बताते हुए कहा था कि ये बाढ़ के लिए दरवाजे खोलने जैसा है। रिर्जव बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने भी कहा था कि किसानों की कर्ज माफी से महंगाई तेजी से बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ेगा। इससे राज्यों की
अर्थव्यवस्था भी गड़बड़ा सकती है, क्योंकि कर्ज माफी में केंद्र का हिस्सा कम होगा और राज्य सरकार को इसके लिए अपनी जेब ज्यादा खाली करनी होगी।
कर्ज माफी से नुकसान ये होगा कि केंद्र या राज्य सरकारें सिंचाई सा आधारभूत संरचना को बनाने में पैसे की कमी कर देंगी जिसका नुकसान अंतत: किसानों को ही उठाना होगा। किसानों के कर्ज पहले भी हुए हैं। ये कोई पहली बार नहीं है और किसानों ने इसका नुकसान भी झेला है कि आजादी के 70 साल बाद भी सिंचाई की व्यवस्था बेहतर नहीं हो पाई है।
अभी तक 50 प्रतिशत से ज्यादा किसान सिंचाई सुविधा नहीं ले पा रहे हैं या यों कहें कि उनको ये उपलब्ध नहीं है।
यदि ये हो जाता तो किसानों को बैंक या साहूकार से कर्ज लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती। पहले की सरकारों ने भी सिंचाई व्यवस्था को बेहतर करने के लिए कोई ठोस काम नहीं किया। नतीजा ये हुआ कि किसान बद से बदतर होता चला गया । हर साल उस पर नए कर्ज का बोझ बढ़ता गया।
बैंक से तो माफी संभव भी है, लेकिन साहूकार का कर्ज? ये तो किसानों को मौत के दरवाजे तक ले जाता है। महाराष्ट्र के विदर्भ और यूपी में बुंदेलखंड के किसान आत्महत्या को मजबूर होते हैं। साल दर साल आत्महत्या का आंकड़ा बढ़ता ही जाता है । रोज किसी न किसी किसान की बीवी बेबा होता है और बच्चे अनाथ। किसान माफी के बाद कर्ज से तो मुक्ति पा जाता है लेकिन उसकी दुश्वारियां जस की तस होती हैं।
देश में 85 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनकी संख्या दस करोड़ से ज्यादा है। लगभग हर छोटा किसान कर्ज में डूबा है। चाहे कर्ज बैंक का हो या साहूकार का। इसके अलावा फसलों का सही दाम एक अलग समस्या है। भारत एक ऐसा अभागा देश है जहां किसानों के फसलों के दाम सरकार तय करती है। देश में प्लास्टिक की डिबिया बनाने वाला कोई छोटा उत्पादनकर्ता अपने उत्पाद के दाम खुद तय करता है, लेकिन किसानों को ये हक हासिल नहीं।
किसानों को अच्छे बीज नहीं मिलते और न उन्हें आधुनिक खेती की सुविधा मिलती है। इससे किसानों को अच्छी राहत मिल सकती है। किसानों को फसल के सही दाम के लिए एक उदाहरण काफी है। दो साल पहले देश में अरहर दाल का उत्पादन काफी कम हुआ था, जिसका नतीजा ये हुआ कि खुले बाजार में इसकी कीमत 200 रुपए किलो तक पहुंच गए थे। देश में महाराष्ट्र,तेलंगाना,गुजरात और कर्नाटक अरहर दाल उत्पादन में सबसे आगे हैं।
इस साल और पिछले साल अरहर का उत्पादन अच्छा हुआ लिहाजा नतीजा ये हुआ कि इसकी कीमतें 65 से 70 प्रतिशत तक गिर गई। केंद्र और राज्य सरकारों को किसानों की तकलीफ या कर्ज से उबारने का कोई स्थाई समाधान खोजना होगा ,क्योंकि कर्ज माफी और फिर से नया कर्ज उनकी स्थिति को जस का तस रखे हुए हैं।
किसानों का आंदोलन और राजनीतिक दुकान
किसानों का आंदोलन किसी भी राज्य में हो। राजनीति की दुकान फटाफट खुल जाती है। मध्यप्रदेश में भी यही हुआ। पुलिस फायरिंग में मारे गए किसानों के परिवार वालों से मिलने के लिए राज नेताओं ने कैसे-कैसे जतन किए। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी चार्टर जहाज से पहले राजस्थान के उदयपुर गए।
फिर कार से मध्यप्रदेश में दाखिल हुए और ट्रैफिक नियमों को ताक पर रख मोटरसाइकिल से नीमच गए और कहा नरेंद्र मोदी उद्योगपतियों का डेढ लाख करोड़ कर्ज माफ कर देते हैं, लेकिन किसानों पर गोलियां चलवाते हैं। राहुल गांधी अपनी पार्टी के 10 साल के कार्यकाल को भूल गए, जिसमें हर साल उद्योगपतियों के लाखों करोड़ बैंक के कर्ज माफ कर दिए जाते थे।
मध्यप्रदेश में बिना जनाधार वाली आम आदमी पार्टी भी अपना प्रतिनिधिमंडल मृत किसानों के परिवार वालों से मिलने भेजने जा रही है। कोई भी राजनेता कर्ज के कारण आत्महत्या करने वाले किसानों से मिलने नहीं जाता । इसमें भी सच में समाज सेवा करने वाले ही आगे रहते हैं । उदाहरण के तौर पर फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर का नाम लिया जा सकता है।