वर्षा जल संचयन पर विशेष: जल संकट का कारगर उपाय रेन वॉटर हार्वेस्टिंग
जल हमारी बुनियादी ज़रूरत है, इसे मानवाधिकार का दर्जा भी दिया जाता है। इसके बावजूद दुनिया भर में लगभग 100 करोड़ लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं होता।
लखनऊ : "रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून..." आज आम इंसान को पानी की कीमत का अंदाजा हो या न हो, लेकिन चार सौ साल पहले रहीम ने अपने दोहे के माध्यम से जो यह अनमोल बात कही, उसे हम सबको आज के संदर्भ में बहुत अच्छे से समझने की जरूरत है। हम सभी जानते हैं कि जल हमारी बुनियादी ज़रूरत है, इसे मानवाधिकार का दर्जा भी दिया जाता है। इसके बावजूद दुनिया भर में लगभग 100 करोड़ लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं होता।
माना जा रहा है कि सन् 2025 तक दुनिया की 50 फीसदी आबादी भयंकर जल संकट झेलने को मजबूर होगी। कंक्रीट के बढ़ते जंगलों और पानी के बढ़ते उपभोग के कारण पानी का संकट निरंतर विकराल रूप लेता जा रहा है। तेजी से बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूमिगत जल के भी जरूरत से ज़्यादा दोहन से भूमि भी सिकुड़ रही है और हम जल संग्रहण के सबसे सस्ते प्राकृतिक पात्र से भी हाथ धोते जा रहे हैं।
आज हालात यह है कि एक तरफ तो नदियों में बाढ़ आ रही है और दूसरी तरफ भूमि का जलस्तर लगातार घट रहा है। ऐसे में इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले पचास-सौ सालों में धरती का भूमिगत जल खत्म हो जाए। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी का जलस्तर औसतन तीन से चार फुट प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा है।ऐसे में इस संकट को दूर करने का सबसे कारगर व प्रभावी उपाय है वर्षा जल संचयन यानी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग । वृक्षारोपण व वर्षा जल के संचय से ही भूजल को संरक्षित व सुरक्षित रखा जा सकता है।
वर्षा जल संरक्षण राष्ट्रीय जल मिशन के प्रमुख उद्देश्यों में एक है और यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के अंतर्गत आठ राष्ट्रीय मिशनों में शुमार है। इसके अंतर्गत एकीकृत जल संसाधन विकास और प्रबंधन के द्वारा राज्यों और राज्यों से बाहर भी संरक्षण, नुकसान को कम करना और सभी के बीच समान वितरण की परिकल्पना की गई है।
इस संदर्भ में जल संरक्षण की आवश्यकता न सिर्फ तेजी से खत्म हो रहे देश के पर्यावरण प्रणाली को बचाने के लिए जरूरी है बल्कि निकट भविष्य में पीने और घरेलू उपयोग के लिए पानी की अपरिहार्य आपात कमी को दूर करने के लिए भी महत्वपूर्ण है। वर्तमान समय में अत्यधिक तेजी से हो रहे औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के साथ-साथ प्रति व्यक्ति पेयजल की लगातार गिरती मात्रा के कारण देश में उपलब्ध जल-संसाधनों पर दबाव बढता जा रहा है।
देश में विभिन्न प्रयोगों के लिए जल की आवश्यकता और उपलब्धता के आकलन के लिए बनी स्थायी उप-समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश में विभिन्न भागों के लिए जल की उपलब्धता और इसकी मांग के बीच बढते अंतर को देखते हुए वर्षा जल संरक्षण की आवश्यकता पूरी शिद्दत महसूस की जा सकती है।
वर्षा का पानी भूजल को बढ़ाने और संरक्षित रखने की सबसे कम खर्चीला, किफायती, दीर्घकालीन एवं विश्वसनीय स्रोत है। यह भूजल के प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह बैक्टीरिया रहित होता है। सूखे के प्रभाव को प्रभाव कम करता है। सूखाग्रस्त व अर्ध सूखाग्रस्त क्षेत्रों में यही पानी कृषकें के लिए सिंचाई का आधार बनता है। शुष्क मौसम में यही जल नदियों के जल प्रवाह का स्रोत बनता है।
पहले गाँवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें स्वाभाविक रूप में मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही, अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियां और मेंढक आदि साफ करते रहते थे और जल पूरे गांव के और पशुओं आदि के काम में आता था। विभिन्न उद्देश्यों के लिये पानी की मांग को सतह का जल पूरा नहीं कर सकता है। वनों की कटाई, तेजी से बढ़ता शहरीकरण, नीचे की मिट्टी से बारिश का पानी रिसना आदि के कारण लगातार भूमि जलस्तर घट रहा है।
प्राकृतिक जल संसाधनों में जल के स्तर को बारिश के पानी का संग्रहण बनाये रखता है। साथ ही बारिश का पानी मिट्टी के घिसावट के खतरे को कम करता है साथ ही जल की गुणवत्ता को सुधारता है। ऐसे में बेहद जरूरी हो गया है कि गांवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर और शहरां में भवनों के ऊपर जल संरक्षण संयत्र लगाकर वर्षाजल का संरक्षण किया जा सकता है। घर की छत पर वर्षा जल एकत्र करने के लिए एक या दो टंकी बनाकर उन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढका जाए तो जल संरक्षण किया जा सकेगा। इस पानी को नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी गड्ढे बना कर एकत्र कर विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
हालांकि सरकारी नीतियों की खामियां, उदासीनता व लापरवाही के कारण हर साल हम कुदरत के इस नायाब तोहफे को यूं ही बर्बाद कर देते हैं। दिल्ली व मुम्बई जैसे महानगर हों या लखनऊ- कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, बरेली, गुड़गांव जैसे बड़े -छोटे शहर या देश के अन्य राज्यों के तमाम इलाके; मानसून आते ही जलभराव की खबरें सभी चैनलों व अखबारों की सुर्खियां बन जाती हैं।
गौरतलब हो कि दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन (डीएमआरसी) अपने एलिवेटेड मेट्रो स्टेशनों के निर्माण में वर्षा जल संचयन की समुचित व्यवस्था तो कर रखी है, लेकिन पिछले दिनों एक दिन की बारिश ने ही डीएमआरसी की जल संचलन की तैयारियों की पोल खोल दी। बीते दिनों कई मेट्रो स्टेशन और इसके खंभों की मरम्मत न होने से संचित बारिश का पानी भूजल रिचार्ज में जाने के बजाए सड़कों सड़कों से होता हुआ नालों में बहता दिखा। यानी मेट्रो प्रशासन ने भले ही वर्षा जल संचयन की व्यवस्था तो कर दी हो लेकिन बारिश का पानी वास्तव में संचयित हो रहा है या नहीं, इसकी किसी को फिक्र नहीं है।
मेट्रो के एलिवेटेड निर्माणों की अगर ठीक से मरम्मत की गयी होती तो बेकार जा रहे बारिश के पानी को दोबारा इस्तेमाल में लाये जा सकने की मेट्रो की भूजल रिचार्ज की मुहिम सफल हो सकती थी। दरअसल मेट्रो ने जल संरक्षण पर जोर देते हुए फेज-2 और 3 की परियोजनाओं में मेट्रो पुलों और खंभों के जरिए पिट से वर्षा जल ले जाकर भूजल रिचार्ज करने की व्यवस्था बनाई है, लेकिन मानसून से पहले एलिवेटेड निर्माणों की मरम्मत नहीं किए जाने से एलिवेटेड मेट्रो निर्माणों के कई स्थानों पर वर्षा का जल बेकार बह जाता है।
वर्षा जल संचयन के सरकारी कदम
इस साल अच्छे मानसून की संभावनाओं के मद्देनजर दिल्ली जल बोर्ड ने भवनों पर वर्षा जल संचयन यंत्र लगाने की को बढ़ावा देने के लिए पुन: पानी के बिल पर छूट का प्रावधान किया है। 2015 में जल बोर्ड ने वर्षा जल संचयन पहले 2000 वर्ग मीटर और उससे बड़े भूखंडों की संपत्तियों में वर्षा जल संचयन करने पर पानी के बिल में 10 फीसद छूट का प्रावधान था, लेकिन पिछले साल इस नियम के दायरे में 100 वर्ग मीटर के भूखंडों को भी ला दिया गया। साथ ही 500 वर्ग मीटर तक के भूखंडों में वर्षा जल संचयन यंत्र नहीं होने पर जुर्माने का प्रावधान कर दिया गया है।
इसके अलावा जल बोर्ड ने वर्षा जल संचयन यंत्र का आसान मॉडल तैयार किया, जिसे लगाना आसान है। हालांकि, जल बोर्ड इस मामले में सख्ती दिखाने के मूड में नहीं दिख रहा है। जल बोर्ड का कहना है कि यह प्रस्ताव आया था कि समुदाय में वर्षा जल संचयन यंत्र लगाने की अनुमति दी जाए। ताकि पांच-सात लोग मिलकर एक साथ वर्षा जल संचयन यंत्र लगा सकें, लेकिन व्यावहारिक रूप में अनेक खामियों की वजह से समुदायिक जल संचयन यंत्र लगाने की स्वीकृति नहीं दी जा सकी। हालांकि बोर्ड द्वारा मकानों में वर्षा जल संचयन यंत्र लगाने पर पानी के बिल में छूट की बात कही गयी है।
इसी क्रम में नाबार्ड द्वारा भी वर्षा जल संचयन के प्रति जागरूकता के कई कदम उठाये जा रहे हैं। इसके तहत गांवों में वर्षा जल को बचाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम बनाये गये हैं। नाबार्ड ने जलदूतों को तैयार किया हैं। इस परियोजना के माध्यम से उत्तर प्रदेश के 12 जिलों ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, कौशाम्बी, मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, झांसी, बाँदा, चित्रकूट, बहराइच और बस्ती के पांच हजार ग्रामों को केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा चयनित किया गया है।
इस कार्य के संपादन के लिया नाबार्ड द्वारा एक करोड़ स्र्पए की कुल परियोजना स्वीकृत की गयी है। इसे हर जिले में अलग-अलग कार्यदायी संस्था के माध्यम से सम्पादित किया जाएगा। नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक ए.के. पंडा ने कहा कि वर्षा जल कुदरत की सबसे बड़ी नेमत है, हर किसी को उसकी कीमत समझनी होगी। किसानों के सामने पानी की बड़ी समस्या है। ऐसे में अब जल संचयन बहुत ही आवश्यक है।
तकनीक वर्षा जल को संजोने की
दरअसल, वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा जल रोकने और एकत्र करने की विधि है जिसका उपयोग भूजल भंडार को भरने के लिए भी किया जाता है। कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल इस तकनीक के द्वारा पानी की प्रत्येक बूंद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को न सिर्फ रेहड़ों, तालाबों, नलकूपों, गड्ढों और कुंओं में एकत्र किया जाता है वरन इस तकनीक के द्वारा घर की छतों, स्थानीय कार्यालयों की छतों या फिर विशेष रूप से बनाये गये संग्रहण क्षेत्र में वर्षा का जल एकत्रित किया जाता है। रूफटॉप हार्वेस्टिंग तकनीक के अन्तर्गत बारिश के पानी को संचित करने के लिए दो तरह के गड्ढे बनाए जाते हैं।
एक गड्ढा जिसमें दैनिक प्रयोग के लिए जल संचय किया जाता है और दूसरे का सिंचाई के काम में प्रयोग किया जाता है। दैनिक प्रयोग के लिए पक्के गड्ढे को सीमेंट व ईंट से निर्माण करते हैं और इसकी गहराई सात से दस फुट व लंबाई और चौड़ाई लगभग चार फुट होती है। इन गड्ढों को नालियों व नलियों द्वारा छत की नालियों और टोंटियों से जोड़ दिया जाता है, जिससे वर्षा का जल सीधे इन गड्ढों में पहुंच सके और दूसरे गड्ढे को ऐसे ही कच्चा रखा जाता है।
इसके जल से खेतों की सिंचाई की जाती है। घरों की छत से जमा किए गए पानी को तुरंत ही प्रयोग में लाया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसी खास विधि से वर्षा जल को इकट्ठा करने की यह प्रक्रिया उन स्थानों के लिए काफी कारगर होती है जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम 200 मिमी वर्षा होती है।
आज विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भंडारण का आकलन 214 बिलियन घन मी (बीसीएम) के रूप में किया गया है जिसमें से 160 बीसीएम की पुनः प्राप्ति जल संचयन की तकनीक से हो सकती है। इसलिए इस प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है।
सीखना चाहिए तमिलनाडु से
यदि पानी का संरक्षण एक दिन शहरी नागरिकों के लिए अहम मुद्दा बनता है तो निश्चित ही इसमें तमिलनाडु का नाम सबसे आगे होगा। तमिलनाडु में ठेकेदारों और भवन निर्माताओं के लिए नए मकानों की छत पर वर्षा के जल संरक्षण के लिए इंतज़ाम करना अनिवार्य है।
पिछले कुछ सालों से गंभीर सूखे से जूझने के बाद तमिलनाडु सरकार इस मामले में काफी संवेदनशील और प्रयत्नशील हो गयी है। उसने राज्य में यह आदेश जारी कर दिया है जिसके तहत सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर वर्षा जल संरक्षण संयत्रों (वजस) का लगाना अनिवार्य हो गया है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सरकारी भवन भी इस दायरे में शामिल हैं।
पूरे राज्य में इस बात को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया है तथा नौकरशाहों को वर्षा जल संरक्षण संयंत्रो को प्राथमिकता बनाने के लिए कहा गया है। साथ ही उन्हें यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि नियत तिथि तक इस आदेश का पालन नहीं किया जाता तो सरकार द्वारा उन्हें दी गई सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी, साथ ही दंड स्वरूप नौकरशाहों के पैसे से ही इन संयंत्रो को चालू करवाया जाएगा। इन सख्त नियमों के चलते यह राज्य में वर्षा जल संचलन के मामले में एक मिसाल बन गया है।
दो दशक से नहीं दिया पानी का बिल !
बेंगलुरु निवासी एआर शिवकुमार का परिवार बीते दो दशको से पेयजल से लेकर पानी की अपनी सारी जरूरतें पेयजल से पूरी करता है। इसके लिए कर्नाटक स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टैक्नोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक शिवकुमार ने दो दशक से भी ज्यादा समय से अपने घर की छत पर जल संचयन संयत्र लगा कर वर्षा जल संचयन के माध्यम से सालाना 2.3 लाख लीटर पानी एकत्र कर लेते हैं।
इसे उनके पूरे परिवार की रोजाना 400 लीटर पानी की जरूरत आसानी से पूरी हो जाती है। यही कारण है कि उन्होने 22 साल से पानी के बिल का भुगतान नहीं किया है क्योंकि एआर शिवकुमार पानी के कनेक्शन के बिना ही अपना काम चला रहे हैं। शिवकुमार जी का कहना है कि उनके परिवार में पानी का इस्तेमाल पूरी सावधानी से किया जाता है।
रसोईघर के सिंक से और वॉशिंग मशीन से पानी इकट्ठा कर उसका शोधन कर उस पानी का इस्तेमाल शौचालय के फ्लश में किया जाता है। दाल-चावल व सब्जियों को धोकर उस पानी से पौधे व लॉन को सींचते हैं। शिवकुमार ने कहा कि यह उनके परिवार का सामूहिक प्रयास है। जल संरक्षण हम सभी की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गया है।
यूं रोकें पानी की बर्बादी
- अपने मकान या इमारत की छत पर स्वयं वा सामूहिक रूप से वर्षा जल हार्वेस्टिंग संयत्र लगवाएं या जल संरक्षण की अन्य व्यवस्था करें तथा अन्य लोगों को भी प्रेरित करें। इस संचयित जल को विभिन्न घरेलू कामों में प्रयोग में लाया जा सकता है।
- हर दिन एक ऐसा काम करने का प्रयास करें जिससे जल बचाया जा सके। फिक्र न करें अगर यह कम है, हर बूँद की कीमत है। आपका एक कदम बदलाव ला सकता है।
- पानी उतना ही प्रयोग करें जितना ज़रूरत हो, जैसे कि दाढ़ी बनाते या ब्रश करते वक्त नल बंद कर दें।
- कोशिश करें कि आपके घर के अंदर व बाहर कहीं से पानी का रिसाव नहीं हो रहा हो।
- सब्ज़ी, दाल, चावल को धोने में प्रयुक्त पानी फेंके नहीं। इसे पेड़ों को पानी देने के काम में लाया जा सकता है।
- अपनी गाड़ी धोते वक्त पाइप की जगह बाल्टी का प्रयोग करें।
- अपने शौचालय में लो-फ्लश या ड्यूअल फ्लश जैसे फ्लश उपकरण लगवा कर आप पानी बचा सकते हैं।
- नहाते वक्त शॉवर की जगह बाल्टी व मग का इस्तेमाल करें।
- अगर वाशिंग मशीन का प्रयोग करना ही है तो मशीन फुल लोड पर चलायें।
- दिन के सबसे ठंडे समय यानि प्रातः या सांयकाल अपने बगीचे में पानी डालें।