शहीदी दिवस : 28 पॉइंट्स में जानिए परमवीर जोगिंदर की कहानी, दुश्मन देते हैं सम्मान

Update:2018-10-23 18:22 IST

लखनऊ : आज हम आपको सुना रहे हैं परमवीर जोगिंदर सिंह की कहानी। जिन्हें युद्धबंदी बनाने वाली चीन की सेना आज भी देती है सम्मान।

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1. 26 सितंबर 1921 को पंजाब के फरीदकोट जिले के मेहला कलां गांव में शेर सिंह और कृष्ण कौर के घर जोगिंदर का जन्म हुआ।

2. 28 सितंबर 1936 को जोगिंदर सिख रेजीमेंट में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए।

3. कुछ समय बाद उन्हें यूनिट का एजुकेशन इंस्ट्रक्टर बनाया गया।

4. देश उस समय गुलाम था ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लिए जोगिंदर बर्मा फ्रंट पर लड़े।

5. 1948 में कश्मीर पर कबीलाइयों ने जब हमला किया तो वो सिख रेजीमेंट का हिस्सा थे।

6. अगस्त 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। उसने अक्साई चिन और पूर्वी सीमा पर अपना दावा ठोक दिया। इसके बाद चीन ने थगला रिज पर कब्जा कर लिया।

7. उस समय के रक्षा मंत्री वी. के. कृष्ण मेनन ने पीएम जवाहरलाल नेहरू की सहमति से 22 सितंबर को आर्मी चीफ को आदेश दिए कि थगला रिज को चीन के कब्जे से मुक्त कराया जाए।

8. इसके बाद चीन ने 20 अक्टूबर को नमखा चू सेक्टर और लद्दाख समेत पूर्वी सीमा के अन्य इलाकों पर हमला बोल दिया। अगले 3 दिनों में उसने धोला-थगला से इंडिया को खदेड़ दिया।

9. चीन की असली मंशा तवांग पर कब्जा करने की थी इसके आसपास उसके सैनिकों ने अपने कदम जमा लिए।

10. चीन को तवांग पहुंचने से रोकने का काम मिला हमारी सिख बटालियन को।

11. यहां एक इलाका है ट्विन पीक्स जहां से एक किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में टॉन्गपेंग ला पर सिख बटालियन की डेल्टा कंपनी ने अपना बेस बनाया।

12. इसके कमांडर थे लेफ्टिनेंट हरीपाल कौशिक। उनकी डेल्टा कंपनी की 11वीं प्लाटून आईबी रिज पर तैनात थी। जिसके कमांडर थे सूबेदार जोगिंदर सिंह। इस पलटन को कवर करने के लिए 7वीं बंगाल माउंटेन बैटरी वहां मौजूद थी।

13. 20 अक्टूबर की अल सुबह असम राइफल्स की बमला आउटपोस्ट के एक जेसीओ ने देखा कि सीमा पार सैकड़ों चीनी सैनिक जमा हो गए हैं।

14. मामला संगीन था। जेसीओ ने सूचना जोगिंदर सिंह के पास पहुंचाई तो जोगिंदर ने हलवदार सुचा सिंह के नेतृत्व ने एक सेक्शन बमला पोस्ट भेजा। हालात की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने हेडक्वार्टर से ‘सेकेंड लाइन’ गोला-बारूद जल्द भेजने को कहा।

15. 23 अक्टूबर को भोर 4.30 बजे चीन के सैनिकों ने मोर्टार और एंटी-टैंक बंदूकों से बड़ा हमला कर दिया।

16. इसके बाद चीनी जवानों ने 6 बजे असम राइफल्स की पोस्ट पर हमला किया। सूर्योदय के साथ ही चीन की फ़ौज ने आईबी रिज पर हमला कर दिया।

17. कहा जाता है कि जोगिंदर को इस इलाके के बारे में अच्छे से जानकारी थी। उन्होंने आईबी रिज पर ऐसे बंकर बनवाए जो आसानी से दुश्मनों की नजर में नहीं आते।

18. उनकी टुकड़ी के पास केवल 4 दिन का राशन बचा था। जूते और कपड़े सर्दियों के लिहाज नहीं थे। लेकिन जोगिंदर और उनके साथियों की हिम्मत हिमालय से भी बड़ी थी।

19. सूबेदार जोगिंदर सिंह ने जहां मोर्चा संभाला था वो स्थान दुश्मनों से निपटने के लिए बहुत अच्छा था। क्योंकि चीन के सैनिक बमला की सीधी चढ़ाई चढ़ रहे थे। वहीं वो आईबी रिज पर बैठे थे।

20. अब थी इम्तेहान की घड़ी सिख पलटन के पास पुरानी एनफील्ड 303 राइफल्स थीं। गोलियां भी कम थीं। इसके लिए जोगिंदर ने अपने साथियों से कहा कि जब तक दुश्मन सैनिक रेंज में न आए गोली मत चलाई जाए।

21. जब हमला हुआ तो लगभग 200 चीनी सैनिक सामने थे। लेकिन जोगिंदर और उनके साथियों ने चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

22. जोगिंदर को पता था कि अब चीन और बड़ा हमला करेगा। इसके लिए उन्होंने टॉन्गपेंग ला के कमांड सेंटर से और गोला-बारूद भिजवाने के लिए कहा। लेकिन ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था। उम्मीद से पहले ही चीन के 200 सैनिकों ने हमला कर दिया।

23. दोनों ओर से ताबड़तोड़ गोलीबारी होने लगी। जोगिंदर को जांघ में गोली लगी। उन्होंने पट्टी बांधी और 2-इंच वाली मोर्टार ले कर चीनी सैनिकों पर टूट पड़े।

24. इसके बाद 200 चीनी सैनिक और सामने आ गए डेल्टा कंपनी के कमांडर लेफ्टिनेंट हरीपाल कौशिक ने जोगिंदर को रेडियो संदेश भेजा। जिसके जवाब में उन्होंने सिर्फ ‘जी साब’ कहा, ये उनके अंतिम शब्द थे।

25. जोगिंदर के पास गोला बारूद खत्म हो चुका था। कई साथी शहीद हो चुके थे कई बुरी तरह घायल थे। लेकिन उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी। जोश और हिम्मत में कोई कमी नहीं आई थी। उन्होंने अपनी-अपनी बंदूकों पर चाकू लगाकर दुश्मन सैनिकों पर हमला कर दिया। लेकिन उधर से चीनी सैनिक बढ़ने लगे। बुरी तरह घायल जोगिंदर को युद्धबंदी बना लिया गया।

26. कुछ देर बाद बंदी जोगिंदर सिंह शहीद हो गए।

27. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया।

28. जब चीनी को पता चला कि जोगिंदर को परमवीर चक्र मिला है तो उसने सैन्य सम्मान के साथ 17 मई 1963 को उनकी अस्थियां उनकी बटालियन को सौंप दीं।

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