इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को प्रदेश के सभी जिलों में स्थित बाल सुधार गृहों की दशा सुधारने के ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है। और कहा है कि बालिग होने के बाद किसी बच्चे को सुधार गृह में न रहने दिया जाए अन्यथा ये बच्चों के हित में नहीं होगा।
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कोर्ट ने पूछा है कि सुधारगृहों में बच्चों की शिक्षा व अन्य सुविधाओं के लिए क्या कदम उठाये है। किशोर न्यायपालक संरक्षण एक्ट का कड़ाई से पालन किया जाए। कोर्ट ने गृह सचिव से हलफनामा मांगा है कि कानून के विपरीत कितने बच्चे सुधारगृहों में रह रहे हैं। साथ ही किचन व क्राकरी की फोटोग्राफ दाखिल करे।
यह आदेश न्यायमूर्ति अरूण टंडन तथा न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खण्डपीठ ने 2011 में सुधार गृहों की निगरानी कमेटी के अध्यक्ष न्यायाधीश की रिपोर्ट पर कायम जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने न्यायाधीश की रिपोर्ट की प्रति गृह सचिव को उपलब्ध कराने को भी कहा है ताकि वे ठोस कदम उठा सके।
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न्यायमूर्ति की रिपोर्ट में सुधार गृहों की दुर्दशा का हृदय विदारक चित्रण किया गया है और राज्य सरकार को सुधारात्मक ठोस कदम उठाने का सुझाव दिया है। कोर्ट ने 2011 में कायम याचिका पर छह साल बाद राज्य सरकार की तरफ से हलफनामा दाखिल करने पर भी तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने मुख्य सचिव से हलफनामा मांगा था। सरकार की तरफ से बताया गया कि सभी बाल सुधार बाल पुलिस यूनिट का गठन किया गया है।
लखनऊ में राज्य, मण्डल व जिले स्तर पर कमेटी गठित की गयी है। कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में सुधार गृहों की हालात का जवाब नहीं दिया गया है। क्योंकि जज की रिपोर्ट सरकार के पास नहीं थी, इसलिए गृहों के हालात पर उठाये गये सवालों का जवाब नहीं आ सके। कोर्ट ने सुधारात्मक कदम उठाकर विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।
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