आर्थिक आरक्षण संविधान सम्मत: संविधान विशेषज्ञ

प्रस्तावना में सामाजिक प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता का जिक्र है। प्रतिष्ठा में आर्थिक पहलू भी शामिल है। आर्थिक स्थिति से समाज में व्यक्ति का स्टेटस तय होता है। कहा कि अनुच्छेद 46 में शैक्षिक आर्थिक विकास के लिए राज्य का वैधानिक दायित्व बताया गया है।

Update:2019-01-11 21:03 IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संविधान विशेषज्ञ एएन त्रिपाठी ने केंद्र सरकार के आर्थिक आधार पर आरक्षण के संशोधन कानून को संविधान सम्मत करार देते हुए कहा है कि संविधान के मूल ड्राफ्ट में नागरिकों के कमजोर वर्ग का जिक्र या बाद में 1951 में संविधान संशोधन कर सामाजिक व शैक्षिक जोड़ा गया किंतु आर्थिक शब्द नहीं रखा।

ये भी पढ़ें— पुलिस विभाग में विवेचना के लिए अलग से फंड पर सरकार ने दी सहमति, शासनादेश हाईकोर्ट में किया दाखिल

केंद्र सरकार का आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संविधान की मूल भावना के अनुरूप है। श्री त्रिपाठी ने कहा कि संविधान संशोधन कर आर्थिक आधार जोड़ना अन्य पिछड़ा वर्ग के उपबंध का सुधार करना है। सुप्रीम कोर्ट के 13 न्यायाधीशों के केशवानंद भारती केस के फैसले में साफ कहा गया है कि संविधान की प्रस्तावना मूलभूत ढांचा है।

ये भी पढ़ें— हाईकोर्ट ने पूछा- न्यायालयों के फुल प्रूफ सुरक्षा के इंतजाम कब तक होंगे?

प्रस्तावना में सामाजिक प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता का जिक्र है। प्रतिष्ठा में आर्थिक पहलू भी शामिल है। आर्थिक स्थिति से समाज में व्यक्ति का स्टेटस तय होता है। कहा कि अनुच्छेद 46 में शैक्षिक आर्थिक विकास के लिए राज्य का वैधानिक दायित्व बताया गया है। इसलिए आर्थिक विकास का कानून नीति निर्देशक तत्व सिद्धांतों के तहत राज्य का दायित्व है।

ये भी पढ़ें— कोर्ट ने इलाज के अभाव में हो रही मौतों पर राज्य सरकार से मांगा जवाब

Tags:    

Similar News