सरकारी वकीलों की सूची रिव्यू करने के लिए सरकार को मिला अंतिम मौका 

Update:2017-08-08 20:36 IST

लखनऊ: योगी सरकार के लिए फजीहत बनी गत 7 जुलाई को जारी 201 सरकारी वकीलों की सूची पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकार को इस सूची को रिव्यू करने के लिए 28 अगस्त तक अंतिम मौका दिया है। कोर्ट ने कहा आगे मौका नही दिया जायेगा।

कोर्ट ने 28 जुलाई को ही इस सूची को कानून की नजर में न टिकने वाली करार दिया था, परंतु सूची को खारिज करने से अपने को रोक लिया था क्योंकि रातों रात सरकारी वकीलों की नयी सूची जारी करना संभव नहीं था, और इससे न्यायिक कामकाज ठप पड़ जाता।

कोर्ट ने इसी बात के मद्देनजर सरकार को स्वयं सूची को रिव्यू करने का आदेश दिया था, जिस पर महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने कोर्ट को सूची 8 अगस्त तक रिव्यू करने का भरेासा दिया था। सूची से भाजपा व संघ के लोग भी नाराज बताये जा रहें है, क्योंकि इसमें पिछली सपा सरकार के चार दर्जन से अधिक सरकारी वकीलों केा फिर से जगह दे दी गयी थी और अपनी विचारधारा से जुड़े तमाम वरिष्ठ वकीलों की उपेक्षा की गयी थी।

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पूर्व आदेश के अनुपालन में जब मंगलवार को न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति डीएस त्रिपाठी की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से हाजिर महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह व मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश पांडे से पूछा तो उन्होंने कहा कि सूची पर रिव्यू का काम चल रहा है और रिव्यू पूरा करने के लिये थेाड़ा वक्त और लगेगा लिहाजा सरकार को दो हफ्ते का और समय दे दिया जाये।

इस पर याची की ओर से पेश वरिष्ठ वकील बुलबुल गोदियाल ने जोरदार विरेाध किया और कहा कि कोर्ट पहले ही पूरी सूची केा अवैध करार दे चुकी है। तो ऐसे में उस सूची से नियुक्ति पाये सरकारी वकीलों से अनवरत काम लेने का कोई कानूनी औचित्य नहीं है। इस पर पीठ ने भी संज्ञान लिया और कहा कि अब आगे और समय नही दिया जायेगा।

बताते चलें कि येागी सरकार ने चार माह की कवायद के बाद 201 सरकारी वकीलों की सूची जारी की थी। जिस पर तत्काल विरोध प्रारम्भ हो गया। सूची में भाजपा व संघ के जुड़े वकीलों की घेार उपेक्षा पर नाराजगी सामने आयी थी । यही नही सूची में हाई कोर्ट में वकालत ना करने वाले कई वकीलों को भी स्थान देकर सरकारी वकील बना दिया गया था।

इसी बीच स्थानीय अधिवक्ता महेंद्र सिंह पवार की ओर से एक जनहित याचिका दाखिल कर दी गयी। इस पर कोर्ट ने सरकार से नियुक्ति से संबधित रिकार्ड तलब कर लिया तो पाया कि सूची केा न तो विधि मंत्री ने अप्रूव किया था और न ही महाधिवक्ता ने। जबकि एलआर मैनुअल के तहत ऐसा आवश्यक था। इस पर न्यायालय ने सूची को कानून की नजर में न टिकने वाली करार देते हुए कहा था कि यह न्यायिक पुनर्विलोकन की परीक्षा में पास नहीं हो सकती है।

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न्यायालय ने सरकार को छूट दी थी, कि वह वह चाहे तो नई सूची भी जारी कर सकती है। न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी भी की थी कि सरकारी वकील को जनता की गाढ़ी कमाई से पैसा दिया जाता है, और सरकारी वकील की नियुक्ति मात्र किसी प्रभावशाली व्यक्ति की संस्तुति पर नहीं की जा सकती है और न ही यह किसी प्रकार रेवड़ियां है जो कि जैसे चाहे बांट दी जाये।

उधर सूत्रों के मुताबिक यह भी जानकारी मिली है, कि 7 जुलाई की इस सूची के जरिये जिन अधिवक्ताओं को सरकारी वकील के तौर पर नियुक्त किया गया था, उन्हें फिलहाल भुगतान नहीं दिया जा रहा।

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