इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने प्रदेश के राजकीय इंटर कालेजों में लोक सेवा आयोग इलाहाबाद द्वारा 15 मार्च 2018 के विज्ञापन से, बायोलॉजी विषय समाप्त कर विज्ञान विषय में शामिल करने के विपरीत बायोलॉजी विषय की भर्ती के खिलाफ याचिका पर राज्य सरकार आयोग एवं माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड से जानकारी मांगी है। याचिका की सुनवाई 27 जुलाई को भी जारी रहेगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केशरवानी ने इलाहाबाद के विमल चन्द्र तिवारी व 17 अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता आर.के.ओझा एवं अधिवक्ता सत्येन्द्र चन्द्र त्रिपाठी ने बहस की। याची का कहना है कि आयोग की एल.टी.ग्रेड सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा 29 जुलाई 2018 को होने जा रही है। 15 मार्च 2018 के विज्ञापन में बायोलॉजी विषय की भर्ती भी शामिल है। याचियों ने बायोलॉजी विषय के लिए आवेदन दिया है। किन्तु सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 9 जुलाई 2018 के पत्र से चयन बोर्ड को सूचित किया है कि बायोलॉजी विषय समाप्त कर दिया गया है। अब केवल विज्ञान विषय है जिसमें भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान व जीव विज्ञान शामिल है। अलग से बायोलॉजी (जीव विज्ञान) विषय नहीं है। इसी आधार पर चयन बोर्ड ने 2016 की भर्ती को निरस्त कर दिया है। ऐसे में लोक सेवा आयोग द्वारा बायोलॉजी विषय की भर्ती का विज्ञापन निकालने का औचित्य नहीं हैं। याचिका में 29 जुलाई 2018 को होने वाली भर्ती परीक्षा निरस्त कर नये सिरे से विज्ञापन निकालने की मांग की गयी है। याची का कहना है कि जब तक विज्ञान विषय की योग्यता का निर्धारण नहीं कर लिया जाता तब तक भर्ती न की जाए। याचिका की सुनवाई 27 जुलाई को होगी।
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पैरामिलिट्री फोर्स भर्ती 2011 के चयन में अनियमितता को लेकर दाखिल याचिकाएं तय
इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने कर्मचारी चयन आयोग इलाहाबाद की 2011 की पैरामिलिट्री फोर्स भर्ती चयन में अनियमितता को लेकर दाखिल याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि कट आफ मार्क से अधिक अंक पाने वाले याचीगण आयोग को प्रत्यावेदन दे और आयोग यथाशीघ्र निर्णीत करे। हालांकि कोर्ट विस्तृत आदेश बाद में सुनायेगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र ने अजीत कुमार सिंह सहित चार सौ से अधिक याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता विजय गौतम, भारत सरकार के अपर सालीसिटर जनदल एस.पी.सिंह, सहायक सालीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश सभाजीत सिंह यादव आदि अधिवक्ताओं ने बहस की। याचियों का कहना था कि आयोग ने चयन में मनमानी की है। कम अंक पाने वालों को चयन कर लिया गया है और योग्य अभ्यर्थियों को चयन से बाहर रखा गया है। याचियों का कहना था कि भारी संख्या में पद खाली है और आयोग अभ्यर्थियों का चयन नहीं कर रहा है। जबकि आयोग का कहना था कि 2011 की भर्ती के पद खाली नहीं है। उसके बाद दो भर्तियां हो चुकी हैं। कोई भी कट आफ मार्क से अधिक अंक पाने वाला अभ्यर्थी बचा नहीं है। दोनों पक्षों की लम्बी सुनवाई के बाद कोर्ट ने यह आदेश दिया है। अगले माह में विस्तृत फैसला आयेगा।
क्रिश्चियन समाज की प्रार्थना रोकने पर जवाब तलब
इलाहाबाद: कौशाम्बी के बिरमेर और अहलादपुर गांवों में स्थानीय पुलिस द्वारा क्रिश्चियन समाज के लोगों को प्रार्थना करने से रोकने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जवाब तलब किया है।
कोर्ट ने कौशाम्बी के जिलाधिकारी, एसपी, एसडीएम चायल और एसएचओ से चैबीस घंटे में व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। याचिका पर 27 जुलाई को सुनवाई होगी। कौशाम्बी के रोशन लाल और कई अन्य लोगों की याचिका पर न्यायमूर्ति गोविंद माथुर की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही है। याची की अधिवक्ता स्वाती अग्रवाल का कहना था कि याचीगण बिरमेर और अहलादपुर गांव के रहने वाले हैं तथा क्रिश्चियन समुदाय के लोग हैं। गांव में उनका दिव्य ज्योति यीशु आश्रम के नाम से प्रार्थना स्थल है। विगत कई माह से स्थानीय पुलिस उनको वहां रविवार की प्रार्थना नहीं करने दे रही है। अधिवक्ता का कहना था कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने और प्रार्थना करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। याचीगण के मौलिक अधिकार का हनन किया जा रहा है। कोर्ट ने अधिकारियों से इस मामले में जवाब तलब किया है।
पेंशन के लिए भटक रहे कर्मचारियों को दो माह में भुगतान का निर्देश
इलाहाबाद: उच्च न्यायालय ने तेरह साल से पेंशन के लिए सरकारी कार्यालय का चक्कर लगा रहे सेवानिवृत्त कर्मचारी को बड़ी राहत दी है। साथ ही कोर्ट के आदेश की अनदेखी करने वाले अधिकारियों से ब्याज के भुगतान की भरपायी करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने मुरादाबाद के अपर निदेशक पेंशन एवं कोषागार के 17 मार्च 2016 को जारी आदेश पर एक माह में आदेश पारित कर उसके दो माह के भीतर नलकूप विभाग से सेवानिवष्त्त कर्मचारी को वेतनवष्द्धि देते हुए पेंशन आदि का आठ फीसदी ब्याज के साथ भुगतान करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि भुगतान में देरी होती है तो सरकार लापरवाह अधिकारियों से देरी से भुगतान पर दिये जाने वाले ब्याज की वसूली करे।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने नलकूप विभाग अमरोहा से सेवानिवृत्त कर्मचारी धर्मवीर सिंह की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याची 2005 में सेवानिवष्त्त हुआ, उसके खिलाफ कोई विभागीय जांच भी नहीं चल रही है। इसके बावजूद उसे वेतन वष्द्धि देकर पेंशन आदि सेवानिवष्त्त परिलाभों का भुगतान नहीं किया गया। हालांकि 2016 में अपर निदेशक पेंशन कोषागार ने याची के दावे को स्वीकार भी कर लिया है और भुगतान का विभाग को आदेश भी जारी कर दिया है। इसके बावजूद भुगतान नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा तो हलफनामे में याची के दावे को अस्वीकार कर दिया गया। जब कोर्ट ने अपर निदेशक के आदेश के बाबत पूंछा तो कहा कि सरकारी वकील ने गलती मानी और कहा कि पुराने रिकार्ड के आधार पर जवाबी हलफनामा दाखिल किया गया था। अब विभाग भुगतान करने जा रहा है। कोर्ट ने विभाग के रवैये को दुःखद बताया और कहा कि पेंशन दावे के लिए कर्मचारी को 13 सालों तक इंतजार करना पड़ा और हलफनामा भी मनमाने तौर पर दाखिल कर दावे को अस्वीकार कर दिया और फिर दावे को स्वीकार करने का आश्वासन दिया।
अस्थायी नियुक्ति सेवानिवृत्त अध्यापकों को पूल से बाहर करना सही नहीं: हाईकोर्ट
इलाहाबाद: उच्च न्यायालय ने गांधी स्मारक इंटर कालेज सुराजन नगर, जय नगर, मुरादाबाद की प्रबंध समिति द्वारा 26 अक्टूबर 2017 के शासनादेश के विपरीत सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का अनुमोदन करने से इंकार करने के आदेश को सही करार दिया है और कहा है कि प्रबंध समिति की अस्थायी रिक्ति को भरने के मिले अधिकार का हनन नहीं किया गया है। क्योंकि शासनादेश से 70 साल से कम आयु के सेवा निवृत्त अध्यापकों का पूल जिले स्तर पर तैयार किया गया है और वेबसाइट पर सूची उपलब्ध है। प्रबंध समिति इंटर ऐक्ट की धारा 16 (ई)(11) के तहत अस्थायी रिक्ति को 6 से 11 माह के लिए पूल से नियुक्ति करने का अधिकार है। पूल से बाहर से नियुक्ति शासनादेश के विपरीत होगी।
कोर्ट ने कहा है कि पूल बनने से रिक्त पद पर नियमित चयन होने तक प्रबंध समिति को योग्य व अनुभवी सेवा निवष्त्त अध्यापकों की नियुक्ति का अवसर प्राप्त है। इस व्यवस्था का छात्रों को गुणकारी शिक्षा प्राप्त होने में सहयोग मिल रहा है। कोर्ट ने कहा कि वित्तीय सहायता प्राप्त प्राइवेट कालेजों के अध्यापक व स्टाॅफ के वेतन पर सरकार भारी धन खर्च कर रही है। मानदेय पर सेवानिवष्त्त अध्यापक को नियुक्त करना अनुचित नहीं है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी केशरवानी ने गजराज सिंह व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची का कहना था कि जब शासनादेश लागू हुआ तब तक प्रबंध समिति ने भर्ती प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। अस्थायी नियुक्ति का प्रबंध समिति को वैधानिक अधिकार प्राप्त है। शासनादेश भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना और कहा कि दो अप्रैल 2018 को प्रबंध समिति ने नियुक्ति की, जब कि 5 अप्रैल 2018 को ही पूल बनकर तैयार हो चुका था। प्रबंध समिति पूल से नियुक्ति कर सकती थी। कोर्ट ने कहा शासनादेश पूर्णपीठ के फैसले के विपरीत नहीं है। 8 मई 2018 को अनुमोदन से इंकार का आदेश में अनियमितता नहीं है।