यमुना एक्सप्रेस वे अथारिटी की अधिगृहीत भूमि की यथास्थिति का निर्देश, जवाब तलब

Update:2018-08-24 20:30 IST

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के घनौरी गांव की सुनियोजित विकास के लिए यमुना एक्सप्रेस वे अथारिटी द्वारा नवम्बर 2010 में अधिगृहीत भूमि की यथास्थिति कायम रखने का निर्देश दिया है और राज्य सरकार व अथारिटी से याचिका पर एक माह में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल तथा न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव की खण्डपीठ ने सुभाष व अन्य किसानों की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता प्रेम कुमार चैरसिया ने बहस की। याची का कहना है कि अथारिटी के लिए अधिगृहीत भूमि का दो साल की अवधि बीत जाने के बाद भी मुआवजे का अवार्ड घोषित नहीं किया गया और न ही अथारिटी ने कब्जा लिया। भूमि अभी भी याचियों के कब्जे में है और उन्हें मुआवजे का भुगतान भी नहीं किया गया है। याचिका में अर्जेन्सी क्लाज में हुए अधिग्रहण को रद्द किये जाने की मांग की गयी है। कोर्ट ने अथारिटी द्वारा याचिका को दाखिल करने में हुई देरी के आधार पर पोषणीय न मानने के तर्क को जवाबी हलफनामे में आपत्ति करने की छूट दी है। अधिग्रहण कानून के अनुसार यदि अधिगृहीत भूमि का नियत अवधि के भीतर मुआवजा देकर कब्जा नहीं लिया गया तो अधिग्रहण स्वतः निष्प्रभावी माना जायेगा। कोर्ट ने याचिका में उठाये गये बिन्दुओं पर जवाब मांगा है।

कोर्ट की अन्‍य खबरें:

बैंकलोन घोटाले के आरोपी कंपनी निदेशक की याचिका खारिज

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की मेसर्स बिजियानी इंजीनियर्स लि.कंपनी के पूर्व निदेशकों के खिलाफ 46 करोड़ बैंक लोन की धोखाधड़ी के आरोप में गाजियाबाद की सीबीआई अदालत द्वारा आरोप निर्मित करने के आदेश की वैधता की चुनौती याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि यह नहीं कहा जा सकता कि याची के विरुद्ध अपराध नहीं बनता है। यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति डी.के.सिंह की खण्डपीठ ने पूर्व निदेशक यशवंत चतुर्वेदी की पुनरीक्षण याचिका पर दिया है। सीबीआई के अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश का कहना था कि कंपनी के डायरेक्टरों ने बैंकों से लोन लिया और दूसरी कंपनियों में शिफ्ट कर दिया। कंपनी की समापन प्रक्रिया के दौरान घोटाले के खुलासे की जांच कोर्ट ने सीबीआई को सौंपी। कंपनी की सम्पत्तियां बेचने के बाद 27 करोड़ 55 लाख की वसूली हो सकी। 46.04 करोड़ के लोन की सम्पत्ति कंपनी में नहीं पायी गयी। सीबीआई ने कंपनी के डायरेक्टरों सहित अन्य एक दर्जन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर जांच की और आरोप पत्र दाखिल किया। वित्तीय घपले व षडयंत्र के आरोप लगाये गये। सीबीआई कोर्ट ने चार्ज फ्रेम कर दिया है। कोर्ट ने आदेश को सही माना।

डिग्री कालेज के कार्यालय अधीक्षक पद पर प्रोन्नति प्रस्ताव पर निर्णय लेने का निर्देश

इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डा.राम मनोहर लोहिया पोस्ट ग्रेजुएट कालेज भैरों तालाब, वाराणसी में सहायक एकाउंटेंट पद पर कार्यरत प्यारे लाल का नाम कार्यालय अधीक्षक के पद पर प्रोन्नति के लिए प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कालेज प्रबंध समिति को आदेश दिया है कि वह याची का नाम चार हफ्ते के भीतर उच्च शिक्षा निदेशक को प्रेषित करें और निदेशक आठ हफ्ते में नियमानुसार आदेश पारित करे। कोर्ट ने कहा है कि शासनादेश 9 अगस्त 2000 व 26 दिसम्बर 2001 के तहत प्यारे लाल प्रोन्नति पाने के योग्य है और विपक्षी ईश्वर चन्द्र वर्मा इस पद पर प्रोन्नति की योग्यता नहीं रखते।

यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चन्द्रा ने प्यारेलाल व ईश्वर चन्द्र वर्मा की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। मालूम हो कि डिग्री कालेज महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी से संबद्ध है। कालेज के कार्यालय अधीक्षक अशोक कुमार सिंह मार्च 2011 को सेवानिवृत्त हुआ। खाली पद को भरने के लिए प्रबंध समिति ने ईश्वर चन्द्र वर्मा का नाम प्रोन्नति के लिए भेजा। वह पुस्तकालय लिपिक है। प्राचार्य ने प्यारे लाल का नाम भेजा जो सहायक एकाउंटेंट है। याची अधिवक्ता राजेश कुमार सिंह का कहना था कि शासनादेश व विश्वविद्यालय नियमानवली के अन्तर्गत प्यारे लाल ही कार्यालय अधीक्षक पद पर प्रोन्नति की योग्यता रखते हैं। प्रबंध समिति ने पुस्तकालय लिपिक का नाम भेजा है जो पद की अर्हता में शामिल नहीं है। नियमानुसार रूटीन गेे्रड क्लर्क या सहायक एकाउंटेंट की दस साल की सेवा अनुभव रखने वाले को कार्यालय अधीक्षक पद पर प्रोन्नति पाने का अधिकार है। डायरेक्टर ने ईश्वर चन्द्र का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। जिस पर दोनों ने हाईकोर्ट की शरण ली और प्रोन्नति पाने का दावा किया। कोर्ट ने प्यारेलाल को पद पर पाने के अर्ह माना और निदेशक को नियमानुसार निर्णय लेने का आदेश दिया है।

चण्डी मंदिर मामले में गिरफ्तारी पर रोक

इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हापुड़ के चण्डी मंदिर के प्रबंधकीय विवाद के चलते पुलिस रिपोर्ट पेश होने तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। अध्यक्ष चेतन प्रकाश अग्रवाल, सचिव अनिल कुमार अग्रवाल व कोषाध्यक्ष राजेन्द्र कुमार गर्ग की धोखाधड़ी षड्यंत्र कर मंदिर की लाखों की सम्पत्ति का गबन करने के आरोप में दर्ज प्राथमिकी के तहत पुलिस रिपोर्ट पेश होने तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है और याचियों को विवेचना में सहयोग करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति डी.के सिंह की खण्डपीठ ने चेतन प्रकाश व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याचिका का कहना था कि प्रबंधकीय विवाद के चलते पेशबन्दी में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है। लगाये गये आरोप निराधार व मनगढ़न्त है।

आपराधिक केस खत्म होने के बाद शस्त्र लाइसेंस निरस्त रखना गलत: हाईकोर्ट

इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि किसी आपराधिक केस के कारण शस्त्र लाइसेंस निरस्त किया गया हो तो केस में बरी होने के बाद लाइसेंस निरस्त करने का आदेश स्वतः अर्थहीन हो जायेगा। कोर्ट ने याची का शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने के आदेश के खिलाफ अपील खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया है और मण्डलायुक्त आजमगढ़ को एक माह के भीतर नियमानुसार नये सिरे से आदेश पारित करने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल ने रियाज अहमद की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता बी.डी निषाद ने बहस की। मालूम हो कि हत्या षड्यंत्र व विस्फोटक सामग्री रखने के आरोप में दर्ज आपराधिक केस के आधार पर जिलाधिकारी आजमगढ़ ने याची के शस्त्र का लाइसेंस निरस्त कर दिया। 17 अक्टूबर 2011 के शासनादेश से याची के खिलाफ कायम मुकदमा सरकार ने वापस ले लिया। जिलाधिकारी के आदेश के खिलाफ आयुक्त के समक्ष अपील दाखिल की गयी। सरकार द्वारा आपराधिक केस वापस लेने का साक्ष्य न देने के कारण अपील खारिज हो गयी। याचिका में शासनादेश लगाते हुए याची ने मांग की कि उसके खिलाफ कोई केस नहीं है। जिस केस पर लाइसेंस निरस्त हुआ था, वह केस सरकार ने वापस ले लिया है। ऐसे में शस्त्र लाइसेंस निरस्त करना उचित नहीं है। कोर्ट ने याचिका निर्देश के साथ निस्तारित कर दी है।

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