इलाहाबाद: उच्च न्यायालय ने विद्युत उत्पादन कम्पनियों की याचिका पर रिजर्व बैंक आफ इंडिया के 23 फरवरी 2018 को जारी सर्कुलर पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है और केन्द्र सरकार की हाई पावर कमेटी को कम्पनियों की खस्ता हालत व बैंकों के एनपीए के खतरे पर विचार कर दो माह में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कम्पनियों को आईबीसी ऐक्ट की धारा 7 व बी.आर ऐक्ट की धारा 35ए के तहत कार्यवाही करने की छूट दी है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की खण्डपीठ ने प्रयागराज पावर जनरेशन कम्पनी सहित कम्पनी एसोसिएशन की याचिकाओं पर दिया है। आरबीआई ने सर्कुलर जारी कर 200 करोड़ से अधिक बैंक लोन बकाये वाली कम्पनियों को बैंकों से 180 दिन में रिस्ट्रक्चरिंग करने की छूट दी थी और कहा था कि 27 अगस्त को 180 दिन की अवधि पूरी होनी थी। 28 अगस्त से कम्पनियों को दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही की जायेगी। विद्युत कम्पनियों पर 14 हजार करोड़ का बैंक लोन बकाया है। कम्पनियों का कहना है कि रेलवे व एनटीपीसी से विद्युत मूल्य का भुगतान नहीं हो रहा है। इसलिए वे बैंक लोन की अदायगी नहीं कर पा रहे हैं और केन्द्र सरकार की कमेटी इस स्थिति से उबारने की संसदीय कमेटी विचार कर रही है। तब तक सर्कुलर पर रोक लगायी जाय। रिजर्व बैंक की तरफ से सर्कुलर पर रोक लगाने का विरोध किया गया और कहा गया कि धारा 35ए के तहत कार्यवाही से इन्हें 60 दिन का अतिरिक्त समय मिल जायेगा। प्रदेश में एक अनपरा व दो इलाहाबाद में पावर उत्पादन कम्पनियां हैं। बैंक लोन अदायगी न होने से बैंकों की हालत खस्ता हो रही है। देश की अर्थ व्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा। फिलहाल कोर्ट ने सर्कुलर पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है।
कोर्ट की अन्य खबरें:
देवरिया शेल्टर होम: सुनवाई पांच सितम्बर को, सरकार से जानकारी तलब
इलाहाबाद: उच्च न्यायालय ने देवरिया शेल्टर होम मामले में राज्य सरकार के अवर अधिवक्ता से जानकारी मांगी है कि क्यों न जिला जजों को आदेश दिया जाय कि वे तीन जजों की कमेटी गठित कर जो जिले की सभी शेल्टर होमों का माह में एक बार निरीक्षण कर रिपोर्ट पेश करे। कमेटी में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव भी शामिल रहेंगे। साथ ही क्यों न हर शेल्टर होम में सीसीटीवी कैमरे लगाये जाय और जो संस्था अपने खर्चे पर कैमरे से निगरानी न करे उसका लाइसेंस निरस्त कर सरकारी अनुदान रोकने की कार्यवाही की जाय। कोर्ट ने इन बिन्दुओं पर सरकार का पक्ष मांगा है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की खण्डपीठ ने दिया है। कोर्ट के निर्देश पर एक संस्था में रखी गयी चार पीड़िताओं से मुलाकात करने वाली एनजीओ की सदस्याएं हाजिर हुई और उन्होंने सफाई दी कि कोर्ट के आदेश की उन्हें जानकारी नहीं थी तथा शेल्टर होम के किसी कर्मचारी ने उन्हें लड़कियों से मिलने से रोका नहीं। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि 05 सितम्बर को भी इन्हें तलब किया है। राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने जिलाधिकारी व जिला प्रोबेशन अधिकारी का स्पष्टीकरण हलफनामा दाखिल किया। महानिबंधक ने मनोचिकित्सक की रिपोर्ट पेश की। कोर्ट इस संबंध में विस्तृत आदेश जारी करेगी। मामले की सुनवाई 05 सितम्बर को होगी।
अधीनस्थ न्यायालयों में जजों की कमी पर आयोग के सचिव तलब
इलाहाबाद: हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पूर्णपीठ अधीनस्थ न्यायालयों में मूलभूत सुविधाओं की कमी व खाली पदों को भरने की चिंता को लेकर बैठी। कोर्ट ने लोक सेवा आयाग के सचिव को भर्ती प्रक्रिया पूरी करने के हलफनामे के साथ 12 सितम्बर को हाजिर होने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा मई 18 में भर्ती प्रस्ताव भेजा गया किन्तु अभी तक विज्ञापन तक नहीं निकाला। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट की भर्ती की जिम्मेदारी मांगी थी किन्तु सरकार ने इंकार कर दिया। सैकड़ों पद खाली है। जिसके भरने में देरी से न्याय व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित नहीं हो पा रही है। कोर्ट ने कहाकि दो साल पहले राज्य सरकार ने 600 नयी अदालतों की स्वीकृति की। भवन आदि निर्माण, जमीन उपलब्ध न कराने से सारी कार्यवाही पेपर पर ही रह गयी। कोर्ट ने मुख्य सचिव से मूलभुत सुविधाएं मुहैया कराने की चरणबद्ध योजना की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि कोर्ट फीस के तौर पर उसे कितने रूपये मिल रहे हैं और उसके एवज में वह कितना खर्च न्यायपालिका के विकास पर खर्च कर रही है।
मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोसले, न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की पूर्णपीठ ने कहा कि कई बार बैठकें व अनुरोध के बावजूद कोर्ट के लिए जमीन नहीं उपलब्ध करायी जा सकी और कोर्टाें की संख्या बढ़ी किनतु जजों के बैठने व निवास की व्यवस्था नहीं की जा सकी। कोर्ट ने कहा कि 104 ग्राम न्यायालयों में से 4 ही चालू हो सकी है। 2012 में अमेठी जिला बना। जिला जज के लिए कोर्ट व आवास नहीं बन सका है। संभल जिले में हेड क्वार्टर के लिए 50 एकड़ जमीन नहीं मिल सकी है। हाईकोर्ट की 30 नयी अदालतें दिसम्बर 17 में पूरी होनी थी, अभी भी सीपीडब्ल्ूडी निर्माण पूरा नहीं कर सकी है। कोर्ट ने कहा जब तक अदालत मजबूत नहीं होगी प्रदेश की कानून व्यवस्था को सुदृढ़ नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने मुख्य सचिव से हलफनामा मांगा है और कहा है कि वित्त लोक निर्माण विभाग के एक सचिव कोर्ट में मौजूद रहे। कोर्ट को बताये कि कोर्टों का निर्माण कब तक पूरा होगा।
शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी की हत्या की सीबीआई जांच की मांग
इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने बागपत जिला जेल में शार्प शूटर प्रेम कुमार उर्फ मुन्ना बजरंगी की हत्या की सीबीआई जांच की मांग में दाखिल याचिका पर राज्य सरकार से 17 सितम्बर तक जवाब मांगा है। साथ ही पूछा है कि विवेचना की क्या प्रगति है।
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति डी.के.सिंह की खण्डपीठ ने मुन्ना बजरंगी की पत्नी जौनपुर निवासी सीमा सिंह की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता ओ.पी.सिंह ने बहस की। मालूम हो कि पूर्व विधायक लोकेश दीक्षित ने 25 सितम्बर 17 को रंगदारी की मांग करने का आरोप लगाते हुए बागपत में प्राथमिकी दर्ज करायी। जिस मामले में सीजेएम बागपत ने 13 जून 18 को बजरंगी को झांसी जेल से बागपत जेल लाने का आदेश दिया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने मुन्ना बरजंगी को झांसी जेल से अन्य जगह न शिफ्ट न करने को कहा था। बागपत जेल में ही बंदी सुनील राठी ने फायर कर हत्या कर दी। याची का कहना है कि राजनैतिक साजिश के तहत उसके पति की हत्या करायी गयी है। मुन्ना बजरंगी पर गाजीपुर के बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का भी आरोप था। असलहे जेल में कैसे आये। जेल ने ही प्राथमिकी दर्ज करायी है और पुलिस या मजिस्ट्रेटी जांच से निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं है। इसलिए हत्या की सीबीआई जांच करायी जाए। कोर्ट ने विवेचना की स्थिति के ब्यौरे के साथ हलफनामा दाखिल करने का समय दिया है। सीबीआई के अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश भी कोर्ट में मौजूद थे। सुनवाई 17 सितम्बर को होगी।
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ याचिका खारिज
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री बसपा नेत्री मायावती के गांव बादलपुर की अधिग्रहीत जमीन पर अवैध निर्माण घपले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि 2006 की घटना को लेकर इतने वर्षाें बाद याचिका दाखिल करना सही नहीं माना जा सकता। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी.भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने संदीप भाटी सामाजिक कार्यकर्ता की याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि मायावती की जमीन करतार सिंह ने खरीदी और अवैध रूप से निर्माण करा लिया। गौतमबुद्ध नगर के बादलपुर गांव की जमीन का भी अधिग्रहण हुआ था। बाद में कृषि भूमि की नवैइत बदलवाकर जमीन बेच दी गयी। नोएडा के एडीएम की अदालत में अपील भी की थी जिसे क्षेत्राधिकारी नहीं था। अपील खारिज हो गयी। नोएडा का कहना था कि प्रश्नगत भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया था। याचिका में सुश्री मायावती को भी पक्षकार बनाया गया था। कोर्ट ने देरी से याचिका दाखिल होने तथा आरोपों का ठोस आधार न होने के कारण खारिज कर दिया है।
यूपी बोर्ड कर्मचारी के सेवानिवृत्ति लाभ देने का निर्देश
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी बोर्ड के अवकाश प्राप्त कर्मचारी प्रेम नारायण मिश्र को सेवानिवृत्ति परिलाभ और पेंशन का भुगतान करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि कर्मचारी को लाभ नहीं दिया जाता है तो यूपी बोर्ड के कर्मचारी अपना स्पष्टीकरण दें। पेे्रम नारायण मिश्र की याचिका पर न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र सुनवाई कर रहे हैं। याची यूपी बोर्ड में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर था। 31 अक्टूबर 1986 को उसकी सेवा समाप्त कर दी गयी। उसे लेबर कोर्ट में चुनौती दी गयी। लेबर कोर्ट याची की सेवानिवृत्ति मानते हुए उसे बहाल करने का निर्देश दिया। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया। इसके बाद याची ने पुनः याचिका दाखिल तृतीय श्रेणी कर्मचारी के पद पर प्रोन्नति की मांग की। हाईकोर्ट ने याची को 27 अप्रैल 09 से जूनियर क्लर्क मानते हुए वरिष्ठता का काम देने का निर्देश दिया। इस आदेश के खिलाफ विशेष अपील दाखिल की गयी। इस दौरान याची रिटायर हो गया। विभाग ने उसकी पेंशन और सेवानिवृत्ति परिलाभ रोक दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब लेबर कोर्ट का आदेश सुप्रीम कोर्ट से तय हो चुका है तो याची की सेवा 1983 से नियमित जानी जायेगी। स्पेशल अपील पर अभी कोई आदेश नहीं हुआ है। याची को सेवानिवृत्ति लाभ देने का निर्देश दिया है।
कचहरी ब्लास्ट केस में आरोपियों को उम्र कैद, लगा लंबा जुर्माना
लखनऊ: विशेष जज बबिता रानी ने वर्ष 2007 में लखनऊ सिविल कोर्ट परिसर में हुए बम ब्लास्ट के मामले में अभियुक्त तारिक काजमी व मोहम्मद अख्तर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही इन दोनों अभियुक्तों पर पर अलग अलग पांच लाख 10-10 हजार का जुर्माना भी ठोंका है।
उन्होंने अपने फैसले में कहा है कि अभियुक्तों ने न सिर्फ न्यायपालिका पर हमला किया है। बल्कि भारत देश के विरुद्ध भी युद्ध करने की साजिश को अंजाम दिया है। जो गंभीर गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
सोमवार को यह दोनों अभियुक्त जेल से जरिए वीडियो कान्फ्रेसिंग अदालत में हाजिर थे। सजा के बिन्दू पर सुनवाई के दौरान अभियोजन की ओर से एटीएस के संयुक्त निदेशक सुभाष चंद्र सिंह व वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी अतुल कुमार ओझा ने अभियुक्तों के लिए फांसी की सजा की मांग की। जबकि बचाव पक्ष की ओर से वकील आरिफ अली व फुरकान खांन ने कम से कम सजा की मांग की। यह कहते हुए कि अभियुक्त करीब 11 साल से जेल में है।
बीते गुरुवार को जेल की विशेष अदालत में इन दोनों अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया था। इस मामले के एक अभियुक्त खालिद मुजाहिद की दौरान विचारण मौत हो चुकी है। एक अभियुक्त सज्जादुर्ररहमान डिस्चार्ज हो चुका है। जबकि आजमगढ़ निवासी एक अन्य अभियुक्त मो. आरिफ उर्फ अब्दुल कदिर फरार है।
सरकारी वकील प्रवीण श्रीवास्तव व एमके सिंह के मुताबिक अभियुक्तों के खिलाफ खिलाफ आईपीसी की धारा 115, 121, 120बी, 307 व विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3/4 /5/6 तथा विधि विरुद्व क्रिया कलाप निवारण अधिनियम की धारा16/18/20 के तहत आरोप पत्र दाखिल हुआ था। विचारण के दौरान अभियोजन की ओर से कुल 44 गवाह पेश किए गए थे। जबकि बचाव पक्ष की ओर से तीन गवाह पेश हुए।
यह है मामला
23 नवंबर, 2007 को लखनऊ कचहरी परिसर में हुए बम ब्लास्ट के इस मामले की एफआईआर प्रभारी निरीक्षक विजय कुमार मिश्रा ने थाना वजीरगंज में दर्ज कराई थी। जिसके मुताबिक उस रोज सिविल कोर्ट परिसर में बरगद के पेड़ के नीचे दोपहर एक बजकर 15 मिनट पर एक बम ब्लास्ट हुआ। जबकि परिसर के बाहर लेसा गेट के पास पार्किंग में एक साईकिल से जिंदा बम बरामद हुआ था।
विवेचना के बाद एटीएस के तत्कालीन डिप्टी एसपी राजेश कुमार श्रीवास्तव ने इस मामले में अलग अलग तारीखों पर चार आरोप पत्र दाखिल किए थे।
29 मार्च, 2006 को दाखिल पहले आरोप पत्र में कश्मीर निवासी सज्जादुर्ररहमान व तारिक कश्मीरी को आईपीसी की धारा 115, 120बी, 307 व विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3/4 /5/6 के तहत आरोपी बनाया गया।
30 मार्च, 2007 को दूसरे आरोप पत्र में आजमगढ़ निवासी मो. आरिफ उर्फ अब्दुल कदीर को विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा धारा 3/4 /5/6 में आरोपी बनाया गया।
20 अक्टूबर, 2008 को तीसरे आरोप पत्र में जौनपुर निवासी खालिद मुजाहिद, आजमगढ़ निवासी तारिक काजमी व कश्मीर के सज्जादुर्ररहमान तथा मो. अख्तर को आईपीसी की धारा 115, 120बी, 121, 122, 307 व विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा धारा 3/4 /5/6 के साथ ही विधि विरुद्ध क्रिया कलाप अधिनियम की धारा 16/18/20 के तहत आरोपी बनाया गया।
जबकि 18 दिसंबर, 2008 को चौथा आरोप पत्र आईपीसी की धारा 120बी व 307 की बढ़ोत्तरी के साथ अब्दुल कदीर के खिलाफ दाखिल की गई थी। विशेष अदालत ने इन सभी धाराओं में अभियुक्तों को दंडित किया है।