केजीएमयू में जांच शुल्क बढ़ाने पर हाईकोर्ट सख्त, तलब किया फंड का पूरा ब्योरा
याची का कहना था कि केजीएमयू में पैथालॉजिकल टेस्ट के शुल्क पिछले दो वर्षों में 33 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक बढा दिए गए हैं। क्वीन मेरी और डेंटल विभाग का आलम तो यह है कि यहां के तमाम टेस्ट के शुल्क बाहर के बराबर हो चुके हैं।
लखनऊ: हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और केजीएमयू प्रशासन से विभिन्न संसाधनों से मिलने वाले फंड का ब्योरा तलब किया है। कोर्ट ने सरकार को यह भी बताने के आदेश दिए हैं कि केजीएमयू को कौन से वित्तीय संसाधन प्रदान किये गये हैं। कोर्ट ने केजीएमयू की ओर से की गई फंड की अतिरिक्त मांग की भी जानकारी मांगी है। यह आदेश जस्टिस एपी साही और जस्टिस संजय हरकौली की खंडपीठ ने लोक न्यायार्थ संस्था के महासचिव विवेक मनीषी शुक्ला की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर दिए।
बढ़ गया है शुल्क
-याची का कहना था कि केजीएमयू में पैथालॉजिकल टेस्ट के शुल्क पिछले दो वर्षों में 33 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक बढा दिए गए हैं।
-क्वीन मेरी और डेंटल विभाग का आलम तो यह है कि यहां के तमाम टेस्ट के शुल्क बाहर के बराबर हो चुके हैं।
-इन शुल्कों का बोझ गरीब मरीजों और उनके तीमारदारों पर पड़ रहा है, जिस पर राज्यपाल ने भी केजीएमयू के कुलपति को पत्र लिखा था।
-याची के अनुसार अन्य सरकारी अस्पतालों में लगभग डेढ सौ टेस्ट निःशुल्क हैं, लेकिन केजीएमयू में ऐसा नहीं है।
-याचिका में केजीएमयू में वसूले जाने वाले 50 रुपये के पंजीकरण शुल्क को भी चुनौती दी गई है।
-याचिका पर सुनवाई के दौरान केजीएमयू के वकील ने कहा कि कई बार उन्हें अपने फंड की खुद व्यवस्था करनी होती है, जिसके लिए ये शुल्क वसूले जाते हैं।
कोर्ट ने मांगा ब्योरा
-सुनवाई के दौरान केजीएमयू द्वारा फंड की व्यवस्था के लिए 70 करोड़ का लोन लिए जाने की बात भी सामने आई।
-इस पर न्यायालय ने राज्य सरकार व केजीएमयू को उपरोक्त जानकारी हलफनामे के जरिए दो सप्ताह में न्यायालय को देने के आदेश दिए।
-मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी।