Lucknow : 'संदूक' ने आजीवन दिलाया सम्मान और बेटे खोजते रहे चाबी, पिता ने चिट्ठी में दिया ये संदेश

Lucknow : अमुक आर्टिस्ट ग्रुप की ओर से नाटक ‘संदूक और खंडहरों का साम्राज्य’ का प्रभावी मंचन हुआ। मंचन उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की वाल्मीकि सभागार में शनिवार को हुआ।

Newstrack :  Network
Update:2024-11-30 20:35 IST

Lucknow : अमुक आर्टिस्ट ग्रुप की ओर से नाटक ‘संदूक और खंडहरों का साम्राज्य’ का प्रभावी मंचन हुआ। मंचन उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की वाल्मीकि सभागार में शनिवार को हुआ। नाटक का लेखन, परिकल्पना एवं निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल मिश्र 'गुरुजी' का था। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार मेजर संजय कृष्ण, विशिष्ट वरिष्ठ नाटककार सुशील कुमार सिंह थे। वरिष्ठ पत्रकार राजवीर रतन ने नाटककार सुशील कुमार सिंह को और अनिल मिश्र 'गुरुजी' ने मेजर संजय कृष्ण को सम्मानित कर उनका स्वागत किया। नाट्य प्रस्तुति संस्था के रंगाचार्य डॉ. विश्वनाथ मिश्र स्मृति सम्मान : 2024 से मेजर संजय कृष्ण और सुशील कुमार सिंह ने रंगकर्मी ज्योति पांडेय को सम्मानित किया गया। पार्श्व में भी प्रभावी भूमिका निभा रहे कलाकारों में नाटक में प्रभावी संगीत निर्देशन के लिए युवा संगीत निर्देशक विशाल गुप्ता की अतिथियों ने प्रशंसा की।

नाटक की शुरुआत लेखक प्रमथनाथ विषी की लोक कथा ‘संदूक’ से होती है। संदूक कहानी के बहाने प्रचलित देशज परंपराएं और लोक संस्कृति को कलाकारों ने बखूबी चित्रित किया। संदूक खजाना, संस्कार, सम्मान, मदद का साधन हो सकता है। लेकिन यहां कहानी में जिस व्यक्ति के पास संदूक होता है, उसे गांव के लोग बहुत धनी मानते हैं। ये संदूक कहां से आया, किससे और कब मिला, इस रहस्य को लेकर गांव वालों के अलग-अलग कयास होते हैं। ऐसे में जब भी कोई व्यक्ति कभी बाढ़, आकाल, डकैती पड़ने या अन्य किसी मुसीबत पर मदद मांगते हैं। तो रामबाबू मदद देने के लिए कल-परसों आने के लिए कह कर टाल देते हैं। लेकिन उनका कल-परसों कभी आता ही नहीं है। ऐसे में गांव के जरूरतमंद लोगों की मदद अक्सर कहीं न कहीं से हो जाती है। बात आई गई हो जाती है।


एक समय ऐसा आता है, जब रामबाबू की मौत हो जाती है। उनके चारों बेटे उनके पास आ जाते हैं। कमरे में रामबाबू का शव पड़ा होता है। लेकिन उनके चारों बेटे रामबाबू के संदूक की चाबी की खोजबीन में जुटे रहते हैं। गांव वाले रामबाबू के अंतिम संस्कार के लिए उनके बेटों से कहते हैं। तो चारों बेटे अपना-अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। ऐसे में गांव वाले मिलकर रामबाबू की अर्थी तैयार कर शमसान चले जाते हैं। अंतिम संस्कार के बाद जब पंडित जी लौटकर आते हैं, तो वह रामबाबू के बेटे को चाबी देते हुए कहते हैं कि यह चाबी रामबाबू के जनेऊ में मिली है। बेटे आनन-फानन में संदूक खोलते हैं, तो देखते हैं कि वह खाली होता है। उस बड़े संदूक में सिर्फ एक चिट्ठी रखी होती है। जिस पर लिखा होता है। बेटा मैंने संदूक की बदौलत आजीवन सम्मान बनाए रखा। तुम्हें भी इसी तरह विश्वास और सम्मान को बनाए रखना है।

‘खंडहरों का साम्राज्य’ नाटक का मंचन

विभिन्न देशों में सम्राज्यवादी नीतियों को लेकर विध्वंस जारी है। ऐसे में खंडहरों का साम्राज्य कहानी में एक रानी ‘अशांति’ का साम्राज्य खंडहरों का साम्राज्य होता है। वह अपने खंडहर में कीढ़े, मानव कंकाल, लाशों का ढेर के बीच, भूख से मरते लोगों के बीच राज करती है। युद्ध करती है। अशांति देवी कहती है कि जब मैं रोटी दूंगी, तो तुम तुरंत मर जाओगे। इसलिए कुछ ज्यादा जिओ जिंदगी का आनंद लो। वो मानव विभीषिकाओं से खेलती है। उसके राजवैद्य- हिंसक जी, मां महामातिक, राक्षसी-दानवी आदि सत्ता के मंत्रिमंडल में पदासीन होते हैं।

अंशाति देवी की सबसे बड़ी कमजोरी शांति की छाया पड़ते ही वह मरने लगती है। एक बार उसे शांति रोग हो जाता है, राजवैद्य उसका इलाज करने आते हैं। राजवैद्य अशांति देवी को उनके स्वास्थ्य के खराब होने का कारण शांति की छाया पड़ना बताते हैं। ऐसे में राजवैद्य को बंधक बना लेती है, और शांति को पकड़ कर लाने का हुक्म जारी करती है। वह अपने साम्राज्य को आबाद करने के लिए शांति पकड़कर अपने राज्य को अमर बनना चाहती है। सैनिक जंजीरों से जकड़कर शांति को उसके सामने पेश करते हैं। अशांति देवी जैसे ही शांति को मारने आगे बढ़ती है, पिघलने लगती है, मृत होने लगती है। चारों ओर खेत-खलिहान, पेड़-पौधे हरे-भरे होने लगते हैं।


इन्होंने निभाई अहम भूमिका

अरशद अली, शोभित राजपूत, राहुल प्रताप सिंह, मनोज तिवारी, मृत्युंजय प्रकाश, लता बाजपेई, अभिषेक शर्मा, अभिषेक पाल, शिखा श्रीवास्तव, अमर नाथ विश्वकर्मा, कृष्ण कुमार पांडेय, पूनम विश्वकर्मा, कशिश सिंह, आकृति, संतोषी, आकृति, छवि श्रीवास्तव, अनामिका सिंह ने प्रभावी अभिनय किया। लाइट डायरेक्शन सुरेन्द्र तिवारी, म्यूजिक डायरेक्शन विशाल गुप्ता, मेकअप दिनेश अवस्थी, संजय त्रिपाठी 'गोपाल', छायांकन अनुराग शुक्ला 'शिवा', कॉस्ट्यूम अनामिका/लता, मंच प्रबन्धन मंच व्यवस्थापक अनामिका/पूनम/शिखा, अंशुमान दीक्षित/हैदर, मंच सहयोगी रामचरन/अभय शुक्ला, प्रस्तुति नियंत्रक दानिश अली/कमलजीत सिंह, मंच संचालन आमिर मुख्तार, कथाकार प्रमथनाथ विषी एवं सुशील कुमार सिंह, रंग आलेख, परिकल्पना एवं निर्देशन अनिल मिश्रा 'गुरुजी' ने किया।

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