अयोध्या के आंचल में पुष्पित हुए हैं कई धर्म
आम तौर पर मान्यता रही है कि अयोध्या केवल हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। पर ऐसा नहीं है। यदी हम इस नगर की ऐतिहासिक मत्व पर नजर डालें तो पता चलता है कि यह हमेशा से ही सर्व धर्म संपन्न रहा है।
दुर्गेश पार्थ सारथी
आम तौर पर मान्यता रही है कि अयोध्या केवल हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है। पर ऐसा नहीं है। यदी हम इस नगर की ऐतिहासिक मत्व पर नजर डालें तो पता चलता है कि यह हमेशा से ही सर्व धर्म संपन्न रहा है। यहां यदि हिन्दू धर्म को पनपने का मौका मिला है तो जैन, बौद्ध, ईसाई, मुस्लिम और सिख धर्म को भी पुष्पित और पल्लवित होने का पूरा मौका समय-समय पर मिलता रहा है।
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आर्यवर्त की राजधानी थी अयोध्या
अयोध्या के वैभव और विकास के पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार ट्रायवर लिखते हैं कि 'ग्रेटस्टेट्स' की सभ्यता हमसे कम से कम ३००० हजार साल पहले की है। किन्तु, उससे भी आगे हम रामायण के नायक राजा राम को देखते हैं और उन्हीं की राजधानी अयोध्या थी। मेजर डी: ग्राहम पोल अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि 'आर्यवर्त उस समय सभ्य सुक्षिक्षित था, जब हमारे पूर्वज पेड़ों की छाल व पत्ते पहने जंगलों में घूमा करते थे और उसी कार्यवर्त की राजधानी थी अयोध्या।'
इतिहासकारों की नजर में अयोध्या
मुस्लिम इतिहासकार एवं विद्वान मोहसिन सफी लिखते हैं कि- 'हम भारत को पर्शियन धर्म का सच्चा स्रोत मानते हैं। वे लिखते हैं- हमारे धर्म का एक बहुत बड़ा तीर्थ अयोध्या में है, जिसे लोग 'खुद मक्का' कहते हैं। ''इतिहासकार जॉर्ज स्टरजन के अनुसार'' चेल्डियंस बेबी लिलन और कोल्बिन ने अपना धर्म और सभ्यता भारत में ग्रहण की।' आगे चल कर आपने यह भी सिद्ध किया प्रचीन इंग्लैंड के ड्रोइस बौद्ध धर्मवलंबी थे। बौद्ध धर्म नील नदी तक पहुंचा था।
जबकि, चीनी यात्री फाहियान अपने यात्रा विवरण में लिखता है कि संसार में जितने भी धर्म है, उनके सबसे अधिक लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं, जिनका आदि जन्म स्थान अयोध्या है। वह आगे लिखता है कि महात्मा बुद्ध ने यहां पर बैठ कर 16 सालों तक तप किया था। यहां स्थित बौद्ध कुंड (दतुअन कुंड) इसका प्रमाण है।
इसी तरह महाराजा हर्षवर्धन के समय में भारत आने वाला चीनी यात्री ह्वेनसांग भी इसकी पुष्टि करते हुए लिखता है कि बौद्ध कुंड के पास बने बौद्ध विहार में हजारों बौद्ध भिक्षु रहते हैं। इसके अलावा कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि अयोध्या जैन धर्म की भी जन्म स्थली रही है। जैन धर्म पांच तीर्थकर आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमंतनाथ और अनंतनाथ इसी धरती पर पैदा हुए थे।
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अध्योध्या से थोड़ी दूर पर बसी श्रावस्ती के एक हिस्से मेहर में स्थित विश्वनाथ मंदिर (संभव नाथ मंदिर) के एक ध्वंस जिसमें जैनियों के तीसरे तीर्थंकर भगवान संभव नाथ का जन्म हुआ था। उस दौर में कौशल गणराज्य अर्थात अयोध्या की राजधानी श्रावस्ती का गौरव माना जाता था। इसकी पुष्टि ह्वेनसांग व फाहियान के अलावा पुरातत्ववेत्ता स्वंय कनिंघम भी करता है।
सिख धर्म को भी पल्लवित होने की मिली है प्रेरणा
अयोध्या में स्थित हेमकुंड नाम गुरुद्वारा जो कभी ब्रह्मतीर्थ के नाम से प्रचलित था, प्रमाणित करता है कि यहां से सिख धर्म को भी विकसित व पल्लवित होन की प्रेरणा मिलती रही है। बताया जाता है कि श्री गुरु नानक देव जी यहां काफी समय तक रहे । सिखों के १०वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी भी यहां आए थे। उन्होंने बाबा वैष्णवदास व सूर्यवंशी क्षत्रियों से मिल कर मुगलों से युद्ध लड़ा था। इसका उल्लेख स्वयं औरंगजेब अपनी पुस्तक 'आलमगीर नामा' में करता है।
मुगलों ने भी कायम रखा था अयोध्या का वैभव
ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि कभी मुगल बादशाहों द्वारा जारी किया गया माफीनामा आज भी दंतधावन कुंड के पास अचारी जी मंदिर में अवस्थित है। जिसमें यह घोषणा की गई है कि २१२ एक भूमि 'ठाकुर' के भोग, राग और आरती के लिए प्रदान कर रहे हैं। इस माफीनामे को अंग्रेजों ने भी मान्यता दी थी। लेकिन, इसमें एक शर्म लगा दी थी कि यदि अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में मंदिर के पुजारी और कार्यकर्ता शामिल होते हैं तो यह जमीन उनसे जब्त कर ली जाएगी। बताया जाता है हनुमानगढ़ी का मंदिर मुस्लिम नवाब के वजीर मनसूर अली टिकैयतराय की देख-रेख में बनवाया गया था, जिसका सारा खर्च सरकारी खजाने से उठाया गया था।
वाजिदअली शाह ने दिया हमलावर अमीरअली का सर कलम करने का आदेश
बताया जाता हे कि जब हमलावर अमीर अली ने अयोध्या के मंदिरों को जमींदोज करने के लिए अपने नापक इरादों के साथ अयोध्या की ओर कूच किया तो अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने अयोध्या के कोतवाल के नाम फरमान जारी किया। इसमें उन्होंने लिख था कि यदि अमीर अली अपने नापाक मंसूबों के साथ अयोध्या पहुंचे तो फौरन उसका सर कलम कर दिया जाए।
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सात बार उजड़ी है अयोध्या
अयोध्या नगरी के बारे में कहा जाता है कि यह सात बार उजड़ती और बसती रही है। वहीं यह भी माना जाता है इसको बसाने व जीर्णोद्धार करवने में लगभग हर धर्म के लोगों का कहीं न कहीं कुछ योगदान अवश्य रहा है। और एक बार फिर सभी धर्मों के लोगों के सहयोग के राजा राम की अयोध्या फिर से 'बसने' जा रही है।