दारुल उलूम के बैंकर से शादी ना करने वाले फतवे पर बोले मुस्लिम- ये गलत है
यूपी में अभी तीन तलाक की आंधी थमी भी नहीं थी कि देवबन्द से दो फतवे और जारी कर दिए गए है। एक फतवे में महिलाओं के चुस्त, टाइट व चमकीला बुर्खा पहनने पर रोक लगाई गई तो दूसरे फतवे में बैंक में काम करने वाले मुस्लिम युवाओं की शादी पर रोक लगा दी गई है। शामली में मुस्लिम समाज के लोगों ने एक फतवे को सही तो दूसरे को नाजायज ठहराया है।
शामली: यूपी में अभी तीन तलाक की आंधी थमी भी नहीं थी कि देवबन्द से दो फतवे और जारी कर दिए गए है। एक फतवे में महिलाओं के चुस्त, टाइट व चमकीला बुर्का पहनने पर रोक लगाई गई तो दूसरे फतवे में बैंक में काम करने वाले मुस्लिम युवाओं की शादी पर रोक लगा दी गई है। शामली में मुस्लिम समाज के लोगों ने एक फतवे को सही तो दूसरे को नाजायज ठहराया है।
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- दरअसल जनपद सहारनपुर के देवबन्द में बने मुस्लिम दारुल उलूम मदरसे ने मुस्लिम महिलाओं और युवाओं पर दो फतवे जारी किए है।
- एक फतवे में मुस्लिम महिलाओं के बुर्के के पहनावे को लेकर कुछ रोक लगाए गए हैं। तो दूसरे फतवे में जो मुस्लिम युवा बैंक में नौकरी करते है उनको भी नाजायज बताया है।
- पहले फतवे के अनुसार जो महिलाएं टाइट, चमकदार व चुस्त बुर्का पहनती है वह शरीयत के खिलाफ हैं। क्योंकि चुस्त व टाइट बुर्के में महिलाओं का बदन दिखना आकर्षण का केंद्र बताया गया है। इस फतवे को सभी ने सही भी बताया है।
- मगर देवबन्द से जारी दूसरे फतवे को शामली के मस्लिम लोगों ने साफ नकारते हुए बैंक कर्मी के यहाँ अपनी बेटी की शादी करना जायज बताया है।
क्या कहती है मुस्लिम जनता?
- मुस्लिम युवको के बैंक में नौकरी करने पर उनके परिवार में शादी ना करने वाले फतवे पर ज़हीर (काल्पनिक नाम) का कहना है कि यह सरासर गलत है। वैसे ही नौकरी तलाशने के चक्कर मे मुसलमान बर्बाद हो रहा है, मुसलमान को नौकरी नही मिल रही है और जिस मुस्लिम युवक की बैंक में नौकरी है, उसकी तो शादी और भी जल्दी हो जाएगी। ब्याज की बात दूसरी है। ब्याज तो बैंक से दुनिया ले रही है। 90 प्रतिशत मुस्लिम लोगों के बैंक में खाते है। और बैंक कर्मी के परिवार में शादी ना करने का जो फतवा जारी हुआ है वह बिल्कुल गलत है। हम इस फतवे के पक्ष में नही है।
- मुस्लिम बैंक कर्मी के यहां शादी ना करने वाले फतवे को नक्कारते हुए मुस्लिम महिला ज़रीना (काल्पनिक नाम) ने तो अपनी बेटी की शादी बैंक कर्मी से ही करने की बात कही है। उनका कहना है कि एक तो गरीब मुसलमानों को नौकरी नही मिलती, उनके बच्चे बेकार है। पढ़ लिख कर भी। और अगर किसी वजह से उनको नौकरी मिल भी गयी तो उनसे शादी क्यों ना करे। यह फतवा गलत है, हम इस फतवे को नही मानते है। अगर ऐसे फतवे को भी सही मानेगे तो कहाँ जाएंगे हम।