राम लला के ‘मित्र’ देवकी नंदन

सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया है। इसका क्रेडिट राम लला के ‘सखा’ देवकी नंदन अग्रवाल को दिया जाना चाहिए।

Update:2019-11-09 12:37 IST

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया है। इसका क्रेडिट राम लला के ‘सखा’ देवकी नंदन अग्रवाल को दिया जाना चाहिए। देवकी नंदन अग्रवाल एक सीनियर वकील थे और बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज बने। उन्हें भगवान राम का अनन्य भक्त माना जाता था। देवकी नंदन इलाहाबाद के कटरा मोहल्ले में रहते थे। उनका बचपन फैजाबाद में बीता था जहां उनके पिता इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल थे। देवकी नंदन की मां भगवान राम की भक्त थीं। अग्रवाल परिवार वैष्णव था। बताया जाता है कि देवकी नंदन की मां राम सखी उनसे कहा करती थीं कि वो एक दिन भगवान राम के ‘सखा’ बनेंगे।

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रिटायर होने के बाद देवकी नंदन अग्रवाल फैजाबाद चले गए

1983 में रिटायर होने के बाद देवकी नंदन अग्रवाल फैजाबाद चले गए। वहां उन्होंने विवादित भूमि को राम लला की संपत्ति साबित करने के लिए साक्ष्य जुटाने शुरू किए जिसमें राजस्व अभिलेख शामिल थे। उन्होंने 1 जुलाई 1989 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका दाखिल कर अपने को राम लला का ‘सखा’ नियुक्त करने की मांग की। सीपीसी (कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर)का आदेश 32 एक स्थापित देवता को व्यक्ति मानता है। यानि भारतीय कानून में देवता या एक प्रतिमा को व्यक्ति माना जाता है। चूंकि कोर्ट की निगाह में स्थापित देवता सदैव एक नाबालिग होता है सो कोर्ट ने देवकी नंदन को याचिका दाखिल करने वाले दिन ही ‘सखा’ नियुक्त कर दिया।

बतौर राम सखा, देवकी नंदन ने राम जन्म भूमि और आस्थान जन्मभूमि की ओर से सिविल सूट नंबर ५ दाखिल किया जिसमें राम लला को वादी नंबर १ बनाया गया था।

देवकी नंदन अग्रवाल ने जीवन पर्यंत राम लला के मित्र के तौर कार्य किया। 2002 में उनके निधन के बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर टी.पी.वर्मा को अगला ‘सखा’ नियुक्त किया गया। 2008 में वर्मा ने ‘सखा’ स्टेटस से सेवानिृत्त होने का आग्रह हाईकोर्ट और फिर सुप्रीमकोर्ट से किया लेकिन दोनों जगह उनकी दरख्वास्त खारिज कर दी गई। बाद में वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की जिसके बाद कोर्ट ने त्रिलोकी नाथ पांडे को ‘सखा’ नियुक्त किया।

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बलिया निवासी पांडे ने 2010 में बतौर ‘सखा’ काम करना शुरू किया। बचपन में ही वह संघ से जुड़ गए थे। बाद में आरएसएस के प्रचारक बने। आगे चलकर वह विश्व हिंदू परिषद के लिए काम करने लगे। 1992 में वो कारसेवकपुरम में रहने चले गए। 75 साल के त्रिलोकी नाथ पांडे ने टीचर का प्रशिक्षण तो लिया परंतु नौकरी नहीं की। वह किसान परिवार से हैं। दूसरे सखा विश्व विद्यालय के रिटायर टीचर थे।

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