स्लॉटर हाउस बंद होने से मुश्किल में लेदर इंडस्ट्री, शू निर्यातको को विश्व मार्केट से बाहर होने का खतरा
यूपी में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद प्रदेश में कई स्लॉटर हाउस बंद हो गए। चमड़ा उद्योग कच्चे माल के लिए पूरी तरह से स्लॉटर हाउस पर ही निर्भर करता है।
आगरा: यूपी में योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद प्रदेश में कई स्लॉटर हाउस बंद हो गए। चमड़ा उद्योग कच्चे माल के लिए पूरी तरह से स्लॉटर हाउस पर ही निर्भर करता है। अब हालात यह हो गए हैं कि स्लॉटर हाउस बंद होने से जहां मीट व्यापारी परेशान हैं। वहीँ अब इसका असर तेजी से लेदर बिजनेस पर भी दिखने लगा है। छोटे कारखानों पर रोजी रोटी का संकट मंडराने लगा है। बड़े शू निर्यातक भी रॉ मटेरियल में वृद्धि होने के कारण विश्व मार्केट में चल रही प्रतिस्पर्धा से बाहर होने की बात कह रहे हैं।
शू बिजनेस के देश के प्रमुख केंद्र आगरा में ही एक तिहाई कारोबार गिरा है। रॉ मटेरियल नहीं आने से ज्यादातर टेनरियों के शटर डाउन हो गए। अगर अकेले आगरा की बात करें, तो जहां आगरा से 2007-08 में 1250 करोड़ रुपए का निर्यात हुआ था तो 2015-16 में ये बढ़कर 3 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया। इस कारोबार में लगभग 70 हजार कुशल कर्मचारी और 2 लाख अकुशल कर्मचारी जुड़े हुए हैं। निर्यात के साथ-साथ लगभग 2.5 हजार करोड़ रुपए का सालाना घरेलु बाजार भी आगरा के लेदर व्यवसाय से जुड़ा है।
देश के प्रमुख शू निर्यातक नजीर अहमद ने बताया कि स्लॉटर हाउस लेदर इंडस्ट्री का मुख्य आधार है। स्लॉटर हाउस के बंद होने की वजह से लेदर इंडस्ट्रीज भी चपेट में आ रही है। किसी विदेशी कंपनी की सप्लाई तय समय में नहीं पहुंचती तो यह व्यापारिक अनुबंध शर्तों का उल्लंघन माना जाता है। खरीद करने वाली कंपनी के पास अनुबंध खत्म करने का अधिकार होता है। कई विदेशी कंपनियां अन्य देशों से माल खरीदते हैं। अगर पच्चीस फीसदी ऑर्डर भी किसी दूसरे देश के पास चला गया तो लेदर इंडस्ट्री चरमरा जाएगा। उन्होंने बताया कि अभी तक लगभग रॉ मैटेरियल्स पर 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है जिस तरह से लेदर की कमी है मार्केट में आने वाले दिनो में और वृद्धि संभावित है।
चमड़ा कारीगर इमरान ने बताया कि टेनरियों से चमड़ा न मिल पाने की वजह से जूते की अपर सिलाई का काम बंद हो गया है। पहले एक कारखाने से इतना काम मिल जाता था कि गुजर-बसर चल जाता था। अब तीन-तीन कारखानों में एक के बराबर काम नहीं है। आधी-अधूरी दिहाड़ी मिलती है। जोड़कर रखे पैसों से काम चला रहा हूं, आगे की बाद में देखेंगे। सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
हींग की मंडी में चमड़े का काम करने वाले इरफान ने बताया कि लेदर इंडस्ट्री में 40 प्रतिशत चमड़ा बड़े, लाइसेंस प्राप्त स्लॉटर हाउस से आता है 40 प्रतिशत छोटे स्लॉटर हाउस और ग्रामीण इलाकों से आता हैं। शेष 20 प्रतिशत उन जानवरों से प्राप्त होता है जिनकी मौत उम्र या किसी बिमारी के कारण हो गई है। यूपी में ज़्यादातर भैंस के चमड़े का काम होता है। उनके अनुसार यूरोप के देशों में भैंस के चमड़े की अच्छी मांग कम दाम की वजह से है। वहीँ एक अन्य दूकानदार संजीव अरोरा का कहना था कि कच्चे माल के लिए चमड़ा उद्योग पूरी तरह से स्लॉटर हाउस पर ही निर्भर है। अगर स्लॉटर हाउस नहीं खुले तो लेदर इंडस्ट्री पूरी तरह से ठप हो जाएगा और लोगों के सामने भूख से मारने की नौबत आ जाएगी।