लॉकडाउन का ऐसा कहर, गई रोजी, रोटी का पड़ा अकाल, भूख से जंग
जिलापूर्ति अधिकारी संतोष विक्रम शाही ने बताया कि आधार कार्ड से कोटेदार द्वारा राशन देने की कोई प्रक्रिया नहीं है। ऐसे लोग तुरंत अपना राशन कार्ड बनवा लें औऱ तीन-चार दिन के अंदर मशीन में उनका डेटा अपलोड होते ही उन्हें कोटे से राशन भी मिलने लगेगा। तब तक की स्थिति में ऐसे लोगों को सरकार की तरफ से तहसील स्तर पर राशन की किट दी जा रही है। जिससे उनकी मदद हो सके।
बाराबंकीः कोरोना वायरस को लेकर हुए लॉकडाउन में मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई है। सरकार और प्रशासन भले ही लोगों तक मदद पहुंचाने की बात कर रहा है, लेकिन बाराबंकी में तमाम ऐसे परिवार हैं जिन तक अब भी मदद नहीं पहुंच सकी है। ऐसी ही कई परिवारों का मामला नगर पंचायत फतेहपुर के कस्बे से सामने आया है। यहां के निवासी कई परिवारों को दो जून की रोटी के लिए परेशान होना पड़ रहा है। इन परिवारों को न ही कोई सरकारी सहायता मुहैया हुई और न ही कोटे का राशन मिला।
नहीं है राशन कार्ड, कोटे का राशन भी नहीं मिला
मजबूरी में यह परिवार किसी तरह से मांग-मांगकर परिवार और बच्चों का पेट भर रहे हैं। यहां तक कि इन पीड़ित परिवारों में किसी भी सदस्य के नाम से राशन कार्ड भी नहीं है। जिसके कारण कोटे का राशन भी नहीं मिला। परिवार के भरण पोषण का जरिया मजदूरी है जो लॉकडाउन की वजह से बंद है।
ऐसे में परिवार के सदस्यों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजार करना मुश्किल हो गया है। यह परिवार सरकार से सहायता की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन इनके पास मदद के लिए कोई नहीं पहुंच रहा।
मामला फतेहपुर कस्बे से सटे गांवों का
यहां एक नहीं कई परिवार लॉकडाउन के चलते भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। करोना संकट में लॉकडाउन का समय बढ़ने के साथ ही गरीबों के बीच भोजन संकट की समस्या गंभीर होती जा रही है। ऐसे में कई परिवारों के सामने भोजन संकट उत्पन्न हो गया है। जो सरकारी मदद नहीं मिलने से स्थानीय लोगों की मदद के मोहताज बने हुए हैं।
गरीब परिवारों का कहना है कि कोरोना वैश्विक महामारी से लॉक्डाउन के पहले चरण में 21 दिनों तक तो घरों में बचे-खुचे राशन से घर का चूल्हा जैसे-तैसे जला लेकिन अब लॉकडाउन के दूसरे चरण में गुजारा कैसे हो यह समझ में नहीं आ रहा। हम गरीबों के घर में अब चूल्हा जलाने के लिए अनाज नहीं बचा है। जिसके चलते अब हम लग भूखे ही सोने को मजबूर हैं।
112 से भी मदद नहीं मिली
हलीमानगर के निवासी साबिर ने बताया कि जबसे लॉकडाउन शुरू हुआ है, तबसे एक पैसे का काम नहीं हो पा रहा है। बड़ी मुश्किलों से हम अपने बच्चों और परिवार को पाल रहे हैं। साबिर के मुताबिक तीन दिन के बाद गांव के ही मेराज ने राशन दिया तब जाकर आज घर में चूल्हा जला है। साबिर ने कहा कि मेरी पत्नी की मौत हो चुकी है।
किसी तरह मदद से एक छोटी कोठरी बनी है। साबिर ने कहा कि हम बहुत गरीब है और न तो उसके पास राशन कार्ड है और न ही कोई सुविधा। लेकिन जब पता चला कि आधार दिखाकर कंट्रोल से राशन मिल जाएगा, तो हम वहां गए थे। लेकिन वहां से हमको खाली हाथ ही लौटना पड़ा। साबिर ने कहा कि हमने 112 नंबर पर फोन करके मदद मांगी, लेकिन यहां कोई नहीं आया।
आधार कार्ड दिखाकर भी राशन नहीं मिला
घर के खाली बर्तनों को दिखाकर गांव की ही महिला चांदबीवी ने बताया कि किसी तरह लोगों से मांग-मांगकर खाने का इंतजाम करते हैं। लेकिन अब वो भी खत्म हो रहा है। महिला ने बताया कि उनके पास राशन कार्ड तो नहीं लेकिन आधार कार्ड है। लेकिन आधार कार्ड दिखाकर कंट्रोल पर राशन नहीं मिल रहा। उसने बताया कि वह बहुत गरीब है और किसी और की जमीन पर रहकर गुजर-बसरकर रही है।
न कोई काम है न सरकारी मदद
गांव के ही मोहम्मद साबिर ने बताया कि लॉकडाउन के चलते हमारे पास कोई काम नहीं है। हम बहुत गरीब हैं। दूसरे की जमीन पर किसी तरह रह रहे हैं। लोगों से मांग-मांगकर खाने का इंतजाम कर रहे हैं। लेकिन अब उसमें भी दिक्कत आ रही है।
उसने बताया कि वह मजदूरी का काम करता था, लेकिन अब उसके पास कोई काम नहीं है। न ही कोई सरकारी मदद ही मिल रही है। मोहम्मद साबिर ने बताया कि उसके पास राशन कार्ड भी नहीं है, जिससे कंट्रोल में अनाज भी नहीं मिल रहा। कई बार हम लोग भूखे ही सो जाते हैं।
कई बार भूखे सो जाते हैं
वहीं दूसरे परिवार के मुख्तार ने बताया कि लॉकडाउन के बाद से उनपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। वह लोग किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं। मुख्तार के मुताबिक वह लकड़ी का काम करता था, लेकिन अब वो भी नहीं है। साथ ही राशन कार्ड न होने के चलते उसे कंट्रोल से अनाज भी नहीं मिलता। इसके अलावा जिला प्रशासन की भी कोई मदद नहीं मिल रही। मुख्तार की पत्नी शाहिदा ने बताया कि हम लोग बहुत परेशान हैं और कई बार तो हम लोग भूखे ही सो जाते हैं। मुख्तार की बेटी ने बताया कि पापा के पास पैसे नहीं बचे हैं। हम लोगों के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं है। हम लोग अक्सर भूखे ही सो जाते हैं।
खाने के लाले हैं, कैसे कराएं गर्भवती का इलाज
जितेंद्र सैनी ने बताया कि लॉकडाउन के चलते उनका परिवार काफी मुश्किल में है। कुछ राशन अपने ससुराल से लाए थे, वह भी अब खत्म हो रहा है। उनके पास राशन कार्ड नहीं है, तो आधार कार्ड लेकर गए थे। लेकिन कंट्रोल वाले ने आधार कार्ड पर राशन देने से मना कर दिया। जितेंद्र सैनी के मुताबिक उनके पास कोई सरकारी आदमी मदद के लिए नहीं आया। जिसके चलते हम लोग भूखे मरने को मजबूर हैं। वहीं जितेंद्र सैनी की पत्नी खुशबू ने बताया कि जो पैसा था हम लोगों के पास वो भी खत्म हो गया है और हम लोगों के खाने के लाले पड़ गए हैं। खुशबू के मुताबिक वह प्रेग्नेंट है और न तो उसका अल्ट्रासाउंड हो पा रहा और न ही कोई इलाज।
क्या कहते हैं जिलापूर्ति अधिकारी
वहीं लॉकडाउन के दौरान इन परिवारों की बदहाली पर बाराबंकी के जिला पूर्ति अधिकारी ने बताया कि 15 तारीख से जिले में नि:शुल्क अतिरिक्त चावल का वितरण सभी कार्डधारकों को पांच किग्रा यूनिट की दर से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि यह चावल जिले में कुल 647101 राशन कार्डधारकों को देना है। जिसमें से 20 अप्रैल तक 579551 कार्ड धारकों को नि:शुल्क चावल दिया जा चुका है। जो कुल कार्डधारकों का 90 फीसदी से ज्यादा है। जबकि अभी यह वितरण 26 तारीख तक जारी रहेगा। इसके अलावा 2152 ऐसे लोग हैं जिन्होंने अभी राशन कार्ड बनवाए हैं। उन्हें भी यह अतिरिक्त चावल की सुविधा मिलेगी।
तहसील पर दी जा रही है राशन किट
वहीं फतेहपुर के इन परिवारों को राशन न मिलने पर जिलापूर्ति अधिकारी संतोष विक्रम शाही ने बताया कि आधार कार्ड से कोटेदार द्वारा राशन देने की कोई प्रक्रिया नहीं है। ऐसे लोग तुरंत अपना राशन कार्ड बनवा लें औऱ तीन-चार दिन के अंदर मशीन में उनका डेटा अपलोड होते ही उन्हें कोटे से राशन भी मिलने लगेगा। तब तक की स्थिति में ऐसे लोगों को सरकार की तरफ से तहसील स्तर पर राशन की किट दी जा रही है। जिससे उनकी मदद हो सके।