सुलतानपुर: अक्सर हमारे बीच में बरसों पहले कही हुई बात आजतक कही जाती है कि 'इरादा अगर मज़बूत है तो मंज़िल मिल ही जाती है'। 21वीं सदी में इस बात को अमलीजामा पहनाया है दोनों पैरों से अपाहिज इमरान कुरैशी ने। पैरों में ताकत न होते हुए भी उनके इरादों में वो ताकत है कि जिसके बलबूते इमरान स्वीमिंग से लेकर वॉलीबाल तक के खेल में प्राइज हासिल किया। यही नहीं हाथों का हुनर ये है कि पेंसिल उठा लिया तो जिसका कहें उसका स्क्रैच बनाकर रख देंगे। हैरत तो तब होती है जिस व्हीलचेयर से ये चलते हैं उसे कठपुतली बनाकर जैसा चाहते हैं वैसा नचाते हैं। इन्हीं सब खूबियों की बदौलत उन्हें अक्षय कुमार की फिल्म ‘हॉलिडे’ में काम करने का मौका मिला था।
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इतनी सब खूबियों के माहिर इमरान की दुःख भरी है कहानी
इतनी सब खूबियों के माहिर इमरान के पास्ट की स्टोरी रोंगटे खड़ी करने वाली है। आपको बता दें कि इमरान कुरैशी का जन्म सुल्तानपुर के ज्ञानीपुर निवासी शिफाअत उल्ला के घर में 28 जनवरी 1990 में हुआ था। घर वाले बताते हैं कि 2007 में जब वो क्लास 11 के स्टूडेंट थे उस वक़्त उनकी आँखों की रोशनी चली गई थी। काफी ट्रीटमेंट के बाद रोशनी वापस आई तो 2009 का साल उनके लिए बड़ी मुसीबत का साल बनकर आया। हुआ ये के उसके पैर एकाएक सुन्न होने लगे। घर वाले ट्रीटमेंट के लिए मुम्बई तक लेकर गए तो डॉक्टरों ने बताया कि उसकी बीमारी लाइलाज है और अब वो जिंदगी भर अपने पैरों के सहारे खड़ा नहीं हो पाएगा।
डाक्टरों की दी गई इन्फॉर्मेशन के बाद जहां पिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी, वहीं इमरान की आँखों से आंसू छलक उठे थे। फिर भी जिंदगी जीने के लिए परिजनों ने मुम्बई के पैराप्लेजिक फाउंडेशन द्वारा चलाए जा रहे पुनर्वास केंद्र में एडमिशन करा दिया। यहां उन्होंने हौसले को मज़बूत करते हुए जिंदगी के सपनों को साकार करने का परिश्रम शुरू कर दिया।
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हर परिस्थिति में जीती जा सकती है ज़िंदगी की जंग
देखते ही देखते इमरान व्हीलचेयर पर करतब दिखाने लगे। इसी करतब ने उसे हिंदी फिल्म हॉलिडे में पहुंचा दिया। यहां फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार के साथ फिल्म में काम कर उसने न सिर्फ सभी को चौंका दिया बल्कि ऐसे हर व्यक्ति को सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर हौसले मज़बूत हों तो जिंदगी की जंग हर परिस्थिति में जीती जा सकती है।
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2016 में पंजाब में मिला था गोल्ड मेडल अवार्ड
अब तो आलम ये है कि इमरान खुद को खेल के मैदान में एक शिखर तक ले जाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। 2016 पंजाब में हुई पैरा खेलो में भाग लेकर हाथों से तैराकी करते हुए उन्होंने गोल्ड मेडल हासिल किया था। यही नहीं इमरान की हाथों में कला ऐसी कि वो व्हीलचेयर पर बैठकर किसी का स्केच बना सकते हैं। इस कला में उन्होंने 2014 में गुजरात में आयोजित स्टेट लेबल कंपीटिशन में अवार्ड हासिल किया था।
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जानें क्या है इस इंसान की सोंच
बातचीत में इमरान ने बताया कि अब वो अपने जैसों को सेल्फ़ डिपेंड बनाने के लिए ट्रेनिंग कैम्प चलाना चाहते हैं। जिसमें वो दिव्यांगो को खुद उठने-बैठने और लाइफ की हर ज़रूरी चीज़ों के बारे में बताएंगे ताकि वो दूसरों पर निर्भर न रहें। उन्होंने बताया कि इसके लिए शहर में एक प्लेस देने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा था। इस बीच मुलाकात हुई शहर के फायज़ा हास्पिटल के प्रोपाइटर सर्जन डा. सादिक अली से। उन्होंने अपने हॉस्पिटल में उसे जगह दिया। जिसमें वो ट्रेनिंग कैम्प की शुरुआत करने ही जा रहा था कि उसके छोटे भाई को भी कुछ वैसी ही बीमारी ने शिकार बनाया। इमरान ने कहा कि इससे थोड़ा बजट फेल हुआ है, जिसे रिकवर करते ही वो अपनी सोंच को दिशा।
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