सात समंदर पार भी दिखता है टेराकोटा हस्तशिल्प का जादू ,नेहरू ने भी की थी तारीफ

औरंगाबाद गांव की टेराकोटा हस्तशिल्प का नाम आते ही उसकी एक से बढ़कर एक सुंदर कलाकृतियों की तरफ सबका ध्यान चला ही जाता है। इन्हें बनाने वाले कई कुम्हारों को इसी कला की वजह से सात समंदर पार जाने का मौका भी मिल चुका है। इनके हाथों का जादू अब हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। इनमें से कुछ कुम्हारों को नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।

Update:2017-10-15 15:57 IST

गोरखपुर: औरंगाबाद गांव की टेराकोटा हस्तशिल्प का नाम आते ही उसकी एक से बढ़कर एक सुंदर कलाकृतियों की तरफ सबका ध्यान चला ही जाता है। इन्हें बनाने वाले कई कुम्हारों को इसी कला की वजह से सात समंदर पार जाने का मौका भी मिल चुका है। इनके हाथों का जादू अब हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। इनमें से कुछ कुम्हारों को नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर अवॉर्ड भी मिल चुके हैं।

गोरखपुर शहर से महज 15 किलोमीटर दूर औरंगाबाद अपने टेराकोटा हस्तशिल्प के लिए भारत मे ही नहीं विदेशों मे भी जाना जाता है। बता दें कि औरंगाबाद गांव मे 12 कुम्हारों का नाम बड़े ही इज्जत के साथ लिया जाता है। इसमें से कई कुम्हारों को अपने टेराकोटा हस्तशिल्प कला के लिए नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड भी मिल चुका है।

बनाने में लगता है समय

दीपावली पर्व पर टेराकोटा का बाजार तैयार है। यहां दीप, पंचदीप थाली दीप, स्टैंड दीप कलश जाली दीप दीपमालिका नारियल हाथी घोड़ा गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां बड़ी संख्या में बनकर तैयार हैं। टेराकोटा कार्य के लिए पहचान रखने वाला औरंगाबाद में दीपावली को लेकर उत्साह है। क्योंकि इसकी डिमांड बहुत अधिक है। दीपावली पर्व पर दिल्ली राजस्थान मध्य प्रदेश उड़ीसा मुंबई गुजरात वह अन्य राज्यों में टेराकोटा की मूर्तियां दीया की काफी डिमांड है। यही नहीं विदेशों में भी अच्छी खासी इसकी डिमांड है। ऑर्डर इतने मिलते हैं पर कि कुम्हार इसे पूरा भी नहीं कर पाते हैं, क्योंकि इसे बनाने में समय ज्यादा लगता है ।

बाजार में कुछ इस तरह है इन मूर्तियों की कीमत

कलश-20 से 80 रुपए दीप पूंजी 70 से ₹80, एक दीप ₹2, कोसा दीप 10से ₹15, नारियल दीप ₹25, लालटेन दीप ₹50 से ₹ 60, दीप मालिका 80 से 100 रुपए, 50 दीप स्टैंड ₹500, डेढ़ सौ दीप स्टैंड ₹650, पंचदीप ₹50, थाली दीप ₹50, हाथी घोड़ा ऊंट 60 से ₹200 और लक्ष्मी गणेश मूर्तियां ₹60 से ₹500 तक हैं।

नेहरू ने भी की थी तारीफ

1966 में जवाहरलाल नेहरु ने भी टेराकोटा की मूर्तियों की तारीफ की थी। मूर्तिकार खूब लाल ने बताया कि औरंगाबाद टेराकोटा का आकर्षण नेहरु को भी खींच लाया था 1966 में वह गोरखपुर आए और रिक्शा से औरंगाबाद गए थे। जहां टेराकोटा का काम शुरू करने वाले सुखराज से मिले और उनकी कृतियों की तारीफ की थी। इसके बाद सुखराज ने वहां के स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देना शुरू किया था। अब औरंगाबाद के घर घर में टेराकोटा की मूर्तियां बनाई जाती हैं।

शिवानंद को मिला था अवार्ड

मूर्तिकार भागवत के अनुसार, शिवानंद प्रजापति को 1981 में स्टेट अवार्ड मिला था। इसके बाद 8 फीट का राणा प्रताप का घोड़ा लेकर वह दिल्ली प्रदर्शनी में गए। उन्हें वहां अवार्ड तो नहीं मिला पाया लेकिन सरकार ने उनका घोड़ा खरीद लिया जो आज भी दिल्ली में पृथ्वी रोड पर स्थापित है।

बहुत बढ़ गई महंगाई

वहीं खूब लाल प्रजापति राधिका देवी भागवत वह ज्योति ने बताया कि इस वर्ष मिट्टी का दाम बहुत बढ़ गया है 4,500 रुपए टाली मिट्टी खरीदनी पड़ रहा है। ईंधन के दाम भी आसमान छू रहे हैं इसे विकसित करने के लिए इसका बड़ा बाज़ार निर्मित होना चाहिए जिला उद्योग केंद्र कुछ प्रयास कर रहा है लेकिन प्रयास और बड़े स्तर पर होना चाहिए

घाटे का सौदा नहीं है टेराकोटा

कुम्हारों ने बताया कि 1 ट्राली मिट्टी में एक डीसीएम सामान तैयार होते हैं और उनकी कीमत एक से डेढ़ लाख रुपए होती है। एक ट्राली मिट्टी को गढ़ने में 10 लोग काम करे तो एक माह लगता है इसे पकाने में अधिकतम 3 दिन लगता है और न्यूनतम जैसे दीया पकना है तो मात्र एक ही दिन काफी है

क्या कहते हैं मूर्तिकार गब्बू लाल

वहीं 68 साल के मूर्तिकार गबबू लाल प्रजापति का कहना है की मै जब 10 साल का था तभी से ये काम करता हूँ |ये टेराकोटा हस्तशिल्प का काम हाथ का है इसमे कोई साचे का काम नहीं है ये सारा काम दिमाग,हाथ,आँख का काम है |और उन्होने बताया की इस काम के लिए हमे 1983 मे नेशनल अवार्ड राष्टपति ज्ञानी जय सिंह के द्वारा दिया गया था |इस कार्य से उनके घर मे उनके भतीजे को सरकारी नौकरी भी मिल चुकी है |

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