वाराणसी: प्रसिद्ध चिंतक व साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ कवि ज्ञानेंद्रपति ने कहा कि गीतकार कवि का चित्त द्रवणशील होता है, जबकि मुक्त छंद के कवि का चित्त प्रसरणशील। मुक्त छंद और गीत में परस्पर विरोध नहीं है। मुक्त छंद में गीत भी समाहित होते हैं, मुक्तिबोध के काव्य में इसे देखा जा सकता है। गीत का प्राण तत्व वैयक्तिकता है और उसकी शक्ति संवेदना की शुद्धता में है। नवगीत युगबोध को धारण कर गीत विधा को समकालीन बनाता है।
कवि ज्ञानेंद्रपति गत दिनों साहित्यिक संघ, वाराणसी की ओर से अर्दली बाजार, वाराणसी स्थित राजकीय जिला पुस्तकालय के सभागार में नव गीतकार ओम धीरज पर केंद्रित पत्रिका अभिनव मीमांसा के अंक के लोकार्पण के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार साहित्य भूषण जितेन्द्र नाथ मिश्र ने कहा कि प्रशासन की तमाम जटिलताओं के बीच अपनी रागात्मक संवेदना एवं सर्जना को बनाएं रखना बड़ी उपलब्धि है। ओम धीरज के गीत आम आदमी की अनुभूतियों जैसे सहज,स्वाभाविक और मार्मिक बन पड़े है।
विशिष्ट अतिथि गजलकार कमलेश भट्ट कमल ने कहा कि लोगों के साथ सीधे एवं प्रत्यक्ष जुड़ाव के कारण ओम धीरज के गीतों की भाषा में एक खास प्रकार का आकर्षण पाया जाता है। ग्राम्य जीवन के शब्द, मुहावरा एवं कहावत ही नहीं अपितु रीतियों एवं परंपराओं का समावेश उनके गीतों की बनावट को विशिष्ट बना देता है। गोष्ठी के प्रारंभ में अपनी रचना प्रक्रिया के संदर्भ में ओम धीरज ने बताया कि प्रशासनिक सेवा के तमाम दायित्वों का ईमानदारी के साथ निर्वहन करते हुए वे आम आदमी से जुडऩे तथा उसके सुख-दुख में शामिल होने का प्रयास करते रहे। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें बहुत शांति मिलती है। अपर जिला जज सर्वेश कुमार पांडेय ने साहित्य के प्रति ओम धीरज के लगाव एवं समर्पण की सराहना की।
ओम धीरज ने अपने एक नवगीत का पाठ किया और अपनी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। अतिथियों का स्वागत नरेन्द्र नाथ मिश्र, संचालन डा.रामसुधार सिंह व धन्यवाद ज्ञापन हिमांशु उपाध्याय ने किया। इस मौके पर गजलकार कमलेश भट्ट कमल, सर्वेश कुमार पांडेय, प्रकाश उदय, पं हरिराम द्विवेदी,बाबूराम द्विवेदी, धर्मेन्द्र गुप्त साहिल, डा. उदय प्रकाश, नरोत्तम शिल्पी, शिवाजी, बैजनाथ प्रसाद, विवेक पांडेय, वेदप्रकाश पांडेय ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संयोजन डा.आरएस सिंह ने किया।