तालिबान से भारत को खतरा, इन मामलों में बुरी तरह फंसा, देश के लिए खड़ी हो सकती है ये मुसीबत

Afghanistan Taliban News In Hindi :भारत के लिए एक बड़ा खतरा सामरिक और रणनीतिक मोर्चे पर भी है। आशंका है कि पाकिस्तान कहीं तालिबान का इस्तेमाल कश्मीर में भारत के खिलाफ कर सकता है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Shivani
Update:2021-08-16 14:53 IST

तालिबानी नेता और भारत सरकार के मंत्री जयशंकर

Afghanistan Taliban News In Hindi : अफगानिस्तान में तालिबान का शासन भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आने वाला है। 1996 से 2001 के बीच जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था, तब भारत ने अफगानिस्तान से संबंध तोड़ लिए थे। ऐसे में भारत के लिए तालिबान को मान्यता देना बहुत मुश्किल होगा।

तालिबान से भारत को सामरिक खतरा

भारत के लिए एक बड़ा खतरा सामरिक और रणनीतिक मोर्चे पर भी है। आशंका है कि पाकिस्तान कहीं तालिबान का इस्तेमाल कश्मीर में भारत के खिलाफ कर सकता है। तालिबान अब कश्मीर के न तो बहुत दूर है और न उसे पीओके में कोई दिक्कत होगी। अब अल कायदा और आईएस भी तालिबान के साथ मिलकर बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। हालांकि तालिबान ने कहा है कि वो अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किसी और देश के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा लेकिन इस पर भरोसा करना बड़ी ग़लती होगी।

अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद पाकिस्तान लौटे लड़ाकों का इस्तेमाल भी पाकिस्तान कश्मीर में आतंक के लिए कर सकता है। पाकिस्तान ने तालिबान के जरिये इस राज्य में अशांति फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। कश्मीर में आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए गठित संगठन जैश-ए-मुहम्मद को तैयार करने में तालिबान ने मदद की थी। इसके सरगना मसूद अजहर ने लगातार तालिबान के साथ काम किया है। यही नहीं, भारत के खिलाफ काम करने वाले कई आतंकी संगठन अभी भी तालिबान के साथ मिलकर अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहे हैं। इनमें लश्कर, इस्लामिक स्टेट और अलकायदा शामिल हैं।


चीन, पाकिस्तान और तालिबान

चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश कर रखा है। एशिया के इस हिस्से में अफगानिस्तान की महत्वपूर्ण भौगोलिक पोजीशन है जिसका पूरा फायदा चीन उठाना चाहेगा। उधर पाकिस्तान अपना एजेंडा चलाने के लिए तालिबान को हमेशा से सपोर्ट देता रहा है। ऐसे में भारत को अब चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान, इन तीनों के गठजोड़ से मुकाबला करना पड़ेगा। उधर रूस भी तालिबान शासन से मिल कर रहेगा। ऐसे में भारत के लिए सिर्फ अमेरिका से उम्मीद है लेकिन अब चूंकि अमेरिका ने अफगानिस्तान से पल्ला झाड़ लिया है सो वह भारत की कितनी मदद करेगा, ये समझा जा सकता है।


अफगानिस्तान में भारत का निवेश

भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में 22 हजार करोड़ रुपए निवेश किए हैं। अफगानिस्तान के संसद भवन और शहतूत डैम समेत कुल 500 छोटी-बड़ी परियोजनाओं में भारत ने निवेश किया है। तालिबान ने भले ही भारत के निवेश और संसाधन निर्माण में उसकी सहायता को स्वीकारा है लेकिन साथ ही साथ तालिबान ने चीन को न्योता दिया है कि वह अफगानिस्तान की सूरत सँवारे। इसका मतलब भारत के निवेश पर तलवार के लटकने जैसा होगा।

भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान के देलारम तक की सड़क परियोजना पर भी काम कर रहा है। अगर अफगानिस्तान के रास्ते हमारा ईरान से संपर्क कट जाता है, तो चाबहार पोर्ट में निवेश हमारे किसी काम का नहीं रहेगा और मध्य यूरोप के साथ कारोबार की भारत सरकार की योजना पर भी पानी फिर सकता है।

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