Ukraine Crisis: अब खत्म हो यूक्रेन-संकट

Ukraine crisis: जब यूक्रेन पर रूस का हमला शुरु हुआ था तो ऐसा लग रहा था कि दो-तीन दिन में ही झेलेंस्की-सरकार धराशायी हो जाएगी और यूक्रेन पर रूस का कब्जा हो जाएगा ।

Written By :  Dr. Ved Pratap Vaidik
Published By :  Monika
Update:2022-03-13 08:04 IST

यूक्रेन-संकट (photo : social media )

Russia Ukraine War: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के इस दावे का यूक्रेन ने खंडन कर दिया है कि रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) वार्ता में कुछ प्रगति हुई है। इधर तुर्की में रूस और यूक्रेन के विदेश मंत्रियों के बीच पिछले तीन दिनों से बराबर संवाद चल रहा है। जब यूक्रेन पर रूस का हमला शुरु हुआ था तो ऐसा लग रहा था कि दो-तीन दिन में ही झेलेंस्की-सरकार धराशायी हो जाएगी और यूक्रेन पर रूस का कब्जा हो जाएगा । लेकिन दो हफ्तों के बावजूद यूक्रेन ने अभी तक घुटने नहीं टेके हैं। उसके सैनिक और सामान्य नागरिक रूसी फौजियों का मुकाबला कर रहे हैं। इस बीच सैकड़ों रूसी सैनिक मारे गए हैं और उसके दर्जनों वायुयान तथा अस्त्र-शस्त्र मार गिराए गए हैं।

यूक्रेनी लोग भी मर रहे हैं और कई भवन भी धराशायी हो गए हैं। यूक्रेन का इतना विध्वंस हुआ है कि उससे पार पाने में उसे कई वर्ष लगेंगे। अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्र उसकी क्षति-पूर्ति के लिए करोड़ों-अरबों डॉलर दे रहे हैं। रूसी जनता को भी समझ में नहीं आ रहा है कि इस हमले को पुतिन इतना लंबा क्यों खींच रहे हैं? जब झेलेंस्की ने नाटो से अपने मोहभंग की घोषणा कर दी है और यह भी कह दिया है कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा तो फिर अब बचा क्या है? पुतिन अब भी क्यों अड़े हुए हैं? शायद वे चाहते हैं कि नाटो के महासचिव खुद यह घोषणा करें कि यूक्रेन को वे नाटो में शामिल नहीं करेंगे। इस झगड़े की जड़ नाटो ही है।

नाटो के सदस्य कर रहे यूक्रेन की मदद 

नाटो के सदस्य यूक्रेन की मदद कर रहे हैं, यह तो अच्छी बात है लेकिन वे अपनी नाक नीची नहीं होना देना चाहते हैं। उन्हें डर है कि यदि नाटो ने अपने कूटनीतिक हथियार डाल दिए तो उसका असर उन राष्ट्रों पर काफी गहरा पड़ेगा, जो पूर्वी यूरोप और सोवियत संघ के हिस्सा थे। लेकिन अमेरिका और नाटो अब भी संकोच करेंगे तो यह हमला और इसका प्रतिशोध लंबा खिंच जाएगा, जिसका बुरा असर सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। यूरोपीय राष्ट्रों को अभी तक रूसी गैस और तेल मिलता जा रहा है। उसके बंद होते ही उनकी अर्थव्यवस्था लंगड़ाने लगेगी। एशियाई और अफ्रीकी राष्ट्र भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। जहां तक रूस का सवाल है, उसकी भी दाल पतली हो जाएगी। पुतिन के खिलाफ रूस के शहरों में प्रदर्शन होने शुरु हो गए हैं। प्रचारतंत्र पर तरह-तरह के प्रतिबंध लग गए हैं। पुतिन ने यूक्रेन में युद्धरत आठ कमांडरों को बर्खास्त कर दिया है। पुतिन को यह समझ में आ गया है कि यूक्रेन पर रूसी कब्जा बहुत मंहगा पड़ेगा। कीव में थोपी गई कठपुतली सरकार ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगी। खुद पुतिन की लोकप्रियता को रूस में धक्का लगेगा। यूक्रेन में होनेवाली फजीहत का असर मध्य एशिया के गणतंत्रों के साथ रूस के संबंधों पर भी पड़ेगा। यूक्रेनी संकट के समारोप का यह बिल्कुल सही समय है। रूसी और अमेरिकी खेमों, दोनों को अब यह सबक सीखना होगा कि एक फर्जी मुद्दे को लेकर इतना खतरनाक खेल खेलना उचित नहीं है।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)

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