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Sawan vrat ke Niyam :सावन में क्या करें और क्या नहीं,जानते हैं इस मास के नियम, रहस्य और कारण
Sawan vrat ke Niyam :सावन का महीना कुछ दिनों में शुरु हो जायेगा, जानिए सावन के महीने में क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
Sawan Ke Niyam : सावन का महीना केवल बारिश या हरियाली के साथ आध्यात्मिक माह है । इस समय प्रकृति और परमात्मा के बीच निकटता बढ़ती है। सावन मास, में व्रत, पूजा और तपस्या के जरिये आत्मशुद्धि और पुण्य अर्जित करते हैं। लेकिन इसी मास में कुछ ऐसे नियम भी हैं, जिनका पालन करना न केवल धार्मिक दृष्टि से जरूरी है, बल्कि हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। सावन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, और यह भी कि इन नियमों के पीछे क्या धार्मिक महत्व हैं।
सावन में क्या नहीं करना चाहिएबाल और नाखून शरीर के प्राकृतिक अंग हैं और इन्हें काटना विकास को रोकने जैसा माना जाता है। सावन को ‘विकास और उन्नति’ का महीना माना जाता है, इसलिए यह परंपरा है कि इस मास में जो चीज़ें स्वाभाविक रूप से बढ़ती हैं, उन्हें नहीं काटना चाहिए।
यह मास तपस्या और संयम का होता है। प्याज-लहसुन को तामसिक खाद्य माना जाता है, जो मन को चंचल और क्रोधी बना सकता है। मांसाहार का त्याग इस समय शुद्ध आहार की ओर ले जाता है। सावन के दौरान बरसात से नमी और कीचड़ बढ़ जाती है, जिससे ज़मीन के भीतर उगने वाले प्याज और लहसुन में बैक्टीरिया पनप सकते हैं। मांसाहार के माध्यम से भी बरसाती बीमारियां तेजी से फैल सकती हैं।
शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा अर्धचंद्राकार की जाती है। ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग के पीछे विष्णुजी, ब्रह्माजी व नंदीजी का स्थान होता है, जिसे लांघना अनुचित होता है। यह परंपरा ध्यान, एकाग्रता और विनम्रता को बढ़ावा देती है। जब हम नियम से पूजा करते हैं तो उसका मानसिक प्रभाव और भी गहरा होता है।
पुराणों के अनुसार तुलसी माता का विवाह श्रीविष्णु से हुआ है, इसलिए तुलसी के पत्ते शिव पूजन में वर्जित हैं। केतकी पुष्प को भी एक बार भगवान शिव ने श्राप दिया था कि वह उनकी पूजा में स्वीकार्य नहीं होगा।
दूध व दही विशेत: शिव को चढ़ाने के लिए रखे जाते हैं, अतः इनका अति सेवन वर्जित माना गया है। कांसे के बर्तन में भोजन सावन में निषिद्ध बताया गया है क्योंकि इससे शरीर में पित्त दोष बढ़ सकता है।
यह नियम संयम का प्रतीक है। शरीर को सुख देने वाले कर्मों से दूर रहना व्रतधारियों के लिए अनुशंसित है। बारिश के मौसम में त्वचा अधिक संवेदनशील हो जाती है और तेल से फंगल इन्फेक्शन या चिपचिपाहट बढ़ सकती है।
सावन मन की शुद्धता का समय है। किसी के प्रति द्वेष, अपमान या कटु व्यवहार करने से उस साधना का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
सावन में क्या करना चाहिए
इस समय ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान और पूजन करना शिवभक्तों के लिए विशेष फलदायक माना गया है।सुबह का वातावरण शुद्ध होता है। ताजगी, सकारात्मकता और ध्यान की शक्ति अधिक होती है।
शिवपुराण में प्रतिदिन जल और पंचामृत से अभिषेक करने का विशेष फल बताया गया है।पंचामृत के घटकों जैसे दूध, शहद, घी आदि में रोग प्रतिरोधक गुण होते हैं, और जल शरीर व मन दोनों को शांत करता है।
बेलपत्र शिवजी को अति प्रिय है। इसमें तीन पत्तियां त्रिदेवों का प्रतीक मानी जाती हैं। बेलपत्र में औषधीय गुण होते हैं। यह वातावरण को शुद्ध करता है और त्वचा रोगों में लाभकारी है।
ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जाप मानसिक शांति, भय निवारण और आरोग्यता प्रदान करता है। नियमित जप से ध्यान केंद्रित होता है और चिंता घटती है।
धार्मिक दृष्टि से, उपवास संयम का अभ्यास है। यह इंद्रियों पर नियंत्रण के माध्यम से साधना को दृढ़ करता है।, व्रत करने से शरीर को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है। डाइजेशन को आराम मिलता है और इम्यून सिस्टम सशक्त होता है।
गरीबों को अन्न, वस्त्र, छाता, जल या दवा देना सबसे बड़ा पुण्य माना गया है। ऐसा करने से न केवल दूसरों को राहत मिलती है, बल्कि आत्मसंतोष भी प्राप्त होता है सावन संयम का समय है — केवल भोजन में ही नहीं, विचार और व्यवहार में भी। कटु वचन, झूठ, चुगली या अहंकार से बचना इस मास की मूल भावना है।
सावन का महीना केवल उपवास या जल चढ़ाने का समय नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम, स्वच्छता, सेवा, साधना और आत्मनिरीक्षण का काल है। जब हम धर्म और विज्ञान दोनों के दृष्टिकोण से इन नियमों का पालन करते हैं, तो यह महीना केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक और स्वास्थ्यवर्धक अनुभव बन जाता है।
नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है
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