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बिहार चुनावः नेट और वीडियो का होगा जलवा, साइबर योद्धा जंग में
बिहार का चुनावी परिदृश्य ऐसा है जहां सोशल मीडिया पर सबसे अधिक मजबूत भारतीय जनता पार्टी और सरकार में होने की वजह से जनता दल यू दिखाई दे रही है।
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार लोकतंत्र और चुनावी समर का बदला हुआ रूप देखने को मिलेगा। चुनाव प्रचार में घर-घर जाकर समर्थन जुटाने वाले कार्यकर्ताओं को इस बार नेताओं की ओर से भाव भी नहीं मिलेगा। बल्कि उन कार्यकर्ताओं और समर्थकों की आवभगत बढ़ जाएगी जो सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों से नेता की जय-जयकार के नारे लगा सकेंगे। चुनाव के दौरान बिहार में झंडी, पर्ची, बिल्ला व स्टीकर के बजाय इंटरनेट डाटा की खपत बढ़ जाएगी। वीडियो संदेश तैयार करने वाली कंपनियों को कारोबार मिलेगा। लेकिन पोस्टर छापने वाले इस दौरान खाली हाथ ही रहेंगे।
वर्चुअल प्रचार और सोशल मीडिया से लड़ा जाएगा चुनाव
कोरोना महामारी की वजह से चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों को वर्चुअल प्रचार तक ही सीमित कर दिया है। ऐसे में चुनाव मैदान में उन राजनीतिक दलों के हौसले बुलंद हैं जिनकी आईटी टीम पहले से ही मजबूत है और जो सोशल मीडिया पर चुनाव के दांव-पेंच आजमाते रहे हैं।
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बिहार चुनाव (फाइल फोटो)
राजनीतिक दलों में उन कार्यकर्ताओं की अहमियत बढ़ने वाली है जो साइबर योद्धा के तौर पर खुद को साबित कर चुके हैं और नेता के समर्थन में सोशल मीडिया पर अभियान चलाने का कौशल रखते हैं। इसके विपरीत इस बार चुनाव में उन कार्यकर्ताओं से उम्मीदवार दूर ही रहना पसंद करेंगे जो प्रचार के दौरान प्रत्याशी की गाड़ियों में सवार होकर मतदाताओं के गांव-घर पहुंचकर चुनावी बयार बनाने में सहायता करते थे।
सोशल मीडिया पर भाजपा–जदयू दिखते हैं मजबूत, राजद के युवा कार्यकर्ता भी हैं सक्रिय
बिहार चुनाव (फाइल फोटो)
बिहार का चुनावी परिदृश्य ऐसा है जहां सोशल मीडिया पर सबसे अधिक मजबूत भारतीय जनता पार्टी और सरकार में होने की वजह से जनता दल यू दिखाई दे रही है। भाजपा का आईटी सेल इस कदर सक्रिय है कि लोकसभा के पिछले दो चुनाव और विधानसभा के पिछले चुनाव में कई ऐसे चुनावी अभियान चर्चा में आए जिनकी शुरुआत सोशल मीडिया पर हुई।
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राजद नेता तेजस्वी यादव के सरकार में मंत्री रहने के दौरान उनके बारे में भाजपा का सोशल मीडिया सबसे अधिक सक्रिय रहा। कई ऐसे सवाल जो आज भी राजद और उसके नेताओं का पीछा नहीं छोड रहे हैं वे सर्वाधिक बार सोशल मीडिया पर ही पूछे गए हैं। दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल में तेजस्वी युग शुरू होने के बाद सोशल मीडिया पर पार्टी की सक्रियता बढ़ती देखी गई है। तेजस्वी यादव भी सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सक्रिय दिखते हैं और कई बार सरकार से तीखे सवाल वह सोशल मीडिया के जरिये ही करते हैं।
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लोजपा नेता चिराग पासवान भी सोशल मीडिया पर बिहार के लोगों के साथ जुडे़ हुए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या पारंपरिक तरीके से चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों और नेताओं को इस चुनाव में सोशल मीडिया पर सक्रिय न रहने का खामियाजा भुगतना पडेगा क्योंकि चुनाव आयोग ने तो खेल का मैदान ही बदल दिया है।
चुनाव आयोग ने किया प्रचार के तरीकों में बदलाव
बिहार चुनाव (फाइल फोटो)
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राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक आलोक कुमार का कहना है कि चुनाव आयोग ने महामारी को ध्यान में रखकर चुनाव प्रचार नियमों में बदलाव किया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि गांव–देहात का कोई अति सामान्य व्यक्ति जो इंटरनेट या सोशल मीडिया की बारीकियों को नहीं समझता लेकिन लोगों के सुख- दुख का साझीदार है, निर्वाचित होने का पात्र है, क्या वह प्रत्याशी बनने पर अपना चुनाव चिहन समय से मतदाताओं को बताने में कामयाब रह सकेगा।
रिपोर्ट- अखिलेश तिवारी