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Mental Health in Children: क्या आप भी करते हैं अपने बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार?छीन रहा बच्चों का सुकून
Mental Health in Children: अगर बच्चों का बचपन आज बोझिल और तनाव से भरा रहेगा, तो कल का समाज कमजोर और असंतुलित बन जाएगा।
Mental Health in Children (Social media)
Mental Health in Children: आज के समय में बच्चों खासकर टीनएजर्स के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। छोटी-छोटी बातों पर बच्चे तनाव में आ जाते हैं, उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा है और वे धीरे-धीरे खुद में सिमटते जा रहे हैं। इस स्थिति को नजरअंदाज करना किसी भी पैरेंट्स या शिक्षक के लिए बड़ी भूल साबित हो सकती है।
क्यों तनाव में हैं बच्चे?
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जब हमारी कल्पनाएं और वास्तविकता में फर्क होता है, तो दिमाग पर बोझ बढ़ता है। यही बच्चों के साथ भी हो रहा है। माता-पिता अपने अधूरे सपनों को बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं। स्कूल खत्म होते ही ट्यूशन, हॉबी क्लास, स्पोर्ट्स कोचिंग आदी... बच्चों के पास सांस लेने तक का समय नहीं बचता। उनका दिमाग लगातार एक्टिव रहने से थक जाता है और फिर एक दिन बर्न आउट हो जाता है।
हर बच्चे का विकास अलग होता है
हर बच्चा अलग होता है और उसका मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास भी अलग तरीके से होता है। यह जरूरी नहीं कि एक बच्चा 10 साल की उम्र में जो कुछ कर ले, वही दूसरा बच्चा भी कर पाए, लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली और सामाजिक सोच बच्चों पर एक समान दबाव डालती है, जिससे उनका आत्मविश्वास धीरे-धीरे टूटने लगता है।
गुमसुम रहना और गुस्सा करना
तनाव में रहने वाला बच्चा या तो एकदम शांत और गुमसुम हो जाता है, या फिर हर बात पर गुस्सा करने लगता है। ये दोनों ही संकेत बताते हैं कि बच्चा अंदर से टूट रहा है। ऐसे में माता-पिता और शिक्षकों को सतर्क रहने की जरूरत है।
सोशल मीडिया और मोबाइल का नशा
आजकल बच्चों के हाथ में मोबाइल बहुत जल्दी आ जाता है। सोशल मीडिया पर दिखने वाला दिखावटी जीवन बच्चों को भ्रमित करता है। वे सोचते हैं कि उनकी जिंदगी बाकी लोगों की जितनी परफेक्ट क्यों नहीं है। यह सोच उन्हें तनाव और डिप्रेशन की ओर ले जाती है।
लड़कों की भावनाओं को नजरअंदाज करना
समाज में लड़कों से उम्मीद की जाती है कि वह कभी रोएं नहीं, कमजोर न दिखें। ऐसे में लड़के अपने दर्द और डर को दबा देते हैं। धीरे-धीरे ये दबे हुए भावनाएं उन्हें अंदर से कमजोर बना देती हैं। वे रूखे हो जाते हैं और भावनाओं से कट जाते हैं।
क्या कर सकते हैं माता-पिता?
आजकल बच्चे पढ़ाई, कॉम्पीटिशन और सोशल मीडिया के दबाव में तनाव का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सिर्फ आदेश न दें, बल्कि प्यार से बात करें और उन्हें सुनें। लड़का हो या लड़की, अगर बच्चा रोता है, तो उसकी भावनाओं को समझें और उसके दर्द को महसूस करें। बच्चों को हर समय पढ़ाई में मत झोंकें। उन्हें खेलने, आराम करने और कुछ नया सीखने का समय दें। इससे उनकी सोचने और कुछ बनने की क्षमता बढ़ेगी। मोबाइल और सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर समय सीमा तय करें, ताकि उनका दिमाग संतुलित रहे। सबसे जरूरी बात कभी भी बच्चों की तुलना किसी और से न करें। हर बच्चा अनोखा होता है और अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता है। उन्हें जैसा हैं, वैसे ही अपनाएं तभी वह खुश और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे।
अगर बच्चों का बचपन आज बोझिल और तनाव से भरा रहेगा, तो कल का समाज कमजोर और असंतुलित बन जाएगा। बचपन वह समय होता है जब बच्चे हंसते हैं, खेलते हैं, सीखते हैं और अपने सपनों को आकार देते हैं, लेकिन जब उन पर पढ़ाई, ट्यूशन और तुलना का बोझ डाल दिया जाता है, तो वे खुश रहना भूल जाते हैं।
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