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लोस चुनाव के पहले मोदी की गहरी चाल, गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण
लोकसभा चुनाव के ऐन पहले गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की चाल चलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ओर लंबे समय से अपने लिए भी आरक्षण की मांग करते आ रहे गरीब सवर्णों के सामने बड़ा चारा फेंका है, वही दूसरी ओर सवर्णों के लिए दस फीसदी आरक्षण की अलग से व्यवस्था करके पिछड़ी और दलित जातियों की राजनीति करने वाले नेताओं के मुंह बंद कर दिये हैं।
योगेश मिश्र
लखनऊ: लोकसभा चुनाव के ऐन पहले गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की चाल चलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ओर लंबे समय से अपने लिए भी आरक्षण की मांग करते आ रहे गरीब सवर्णों के सामने बड़ा चारा फेंका है, वही दूसरी ओर सवर्णों के लिए दस फीसदी आरक्षण की अलग से व्यवस्था करके पिछड़ी और दलित जातियों की राजनीति करने वाले नेताओं के मुंह बंद कर दिये हैं।
सियासी चैसर पर आरक्षण की इस चाल ने विपक्ष को हक्का-बक्का कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित एक्ट में संशोधन को लेकर भाजपा पर नाराजगी जताते आ रहे सवर्णों को इसी मास्टर स्ट्रोक से भगवामय करने की सधी हुई चाल चली है। संसद के इस सत्र के अंतिम दिन मंगलवार को इस बिल संविधान संशोधन के लिए रखे जाने की उम्मीद है।
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बीते लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था। पं. दीनदयाल उपाध्याय अन्त्योदय की बात करते थे। गरीब सवर्णों को आरक्षण देकर नरेंद्र मोदी ने भाजपा के ये दोनों मिशन पूरे कर दिखाये हैं। दूरदर्शन के एक ट्विट के मार्फत पब्लिक डोमेन में आये केंद्र सरकार के इस फैसले से एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा न केवल गर्मा गया है, बल्कि अगले लोकसभा चुनाव का मुख्य एजेंडा भी बन गया है। दूरदर्शन ने अपने ट्विट में कहा है कि ‘‘केंद्र सरकार की बड़ी घोषणा, आर्थिक रूप से पिछड़े अनारक्षित वर्गों के लिए दस फीसदी आरक्षण‘‘ पिछड़ों के लिए दस फीसदी आरक्षण मौजूदा 49.5 फीसदी आरक्षण से अलग दिया जाएगा। इसके लागू हो जाने के बाद देश में आरक्षण का कोटा 59.5 फीसदी हो जाएगा।
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हालांकि महाराष्ट्र सरकार पिछले दिनों 16 फीसदी मराठा रिजर्वेशन देकर राज्य में रिजर्वेशन का कोटा 68 फीसदी कर दिया है। गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत के निर्णय के मुताबिक 50 फीसदी से अधिक आरक्षण का कोटा नहीं हो सकता है। हालांकि तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण है। लेकिन इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ा था।
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हालांकि अलग अलग राज्यों में आरक्षण की स्थिति इस प्रकार है आंध्र प्रदेश - कुल 50 फीसदी (महिलाओं को 33.33 फीसदी अतिरिक्त), हरियाणा - कुल 70 फीसदी आरक्षण, तमिलनाडु - कुल 69 फीसदी, महाराष्ट्र - कुल 68 फीसदी, झारखंड - कुल 60 फीसदी, राजस्थान - कुल 54 फीसदी, कर्नाटक - कुल 50 फीसदी, केरल - कुल 50 फीसदी, उत्तर प्रदेश - कुल 50 फीसदी, बिहार - कुल 50 फीसदी, मध्य प्रदेश - कुल 50 फीसदी, पश्चिम बंगाल - कुल 35 फीसदी इसके अलावा पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम में अजा के लिए 80 फीसदी आरक्षण है।
गरीब सवर्णों के लिए दस फीसदी पढ़ाई और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए भी संविधान संशोधन अनिवार्य है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन होगा। जिसके लिए लोकसभा और राज्यसभा दोनों से मंजूरी लेनी पड़ेगी। नरेंद्र मोदी द्वारा चली गई एक ऐसी सधी हुई चाल है जिसके विरोध में खड़ा हो पाना सपा, बसपा, कांग्रेस समेत किसी भी दल के लिए संभव नहीं होगा। अलग से कोटा दिये जाने की वजह से किसी राजनेता के लिए अपनी दुकान चलाने का मौका नरेंद्र मोदी के इस एलान में है ही नहीं। दिलचस्प यह है कि सवर्णों में गरीबी का आधार ओबीसी के क्रीमीलेयर के बराबर रखा गया है।
अटल विहारी वाजपेयी के समय सवर्णों को आरक्षण देने की सुगबुगाहट तेज हुई थी। उस समय उन्होंने अपने सांसदों से अपने-अपने इलाके के ऐसे सवर्णों की पड़ताल करने को कहा था, जिनकी आर्थिक स्थिति ओबीसी और दलितों की तरह हो। भाजपा सांसद और उत्तर प्रदेश के पार्टी महेंद्र नाथ पांडेय ने भी अपने संसदीय क्षेत्र के कुछ लोगों की सूची तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी को सौंपी थी। इसी तरह अन्य सांसदों ने भी अपने-अपने इलाके का ब्यौरा पेश किया था। परंतु दुर्भाग्यवश अटल विहारी की सरकार चली गई। राजस्थान में आरक्षण के लिए सवर्णों ने लंबी लड़ाई लड़ी थी। हर चुनाव के ठीक पहले ओबीसी और दलितों की राजनीति करने वाले नेता भी गरीब सवर्णों के आरक्षण का जुमला छेड़ ही देते थे।
हालांकि अभी तक गरीब सवर्णों के लिए दस फीसदी आरक्षण का कोई सरकारी दस्तावेज न तो जारी हुआ है और न ही अधिकृत सरकारी प्रवक्ता ने कोई ऐसा एलान किया है। बावजूद इसके दूरदर्शन के ट्विट से जो भूचाल उठा है। उसने सियासी हवा बदल कर रख दी है। देखना है कि सरकार की ओर से इसका कब एलान होता है। और संसद में संविधान संशोधन के लिए कब रखा जाता है। यह तो समय बताएगा। लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा मुद्दा छेड़ दिया है।