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आलोक वर्मा की मुसीबतें बढ़ी, 36 करोड़ रुपये की रिश्वतखोरी का लगा एक और आरोप
आलोक वर्मा पर हरियाणा भूमि अधिग्रहण मामले में जांच बंद करने के लिए 36 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा है। किसानों की तरफ से वकील जसबीर सिंह मलिक ने इस मामले को उठाया है।
नई दिल्ली: सीबीआई घूसकांड मामले में आरोपों से घिरे निदेशक आलोक वर्मा की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। वह 36 करोड़ की रिश्वत के एक और मामले में फंस सकते हैं। उन पर हरियाणा भूमि अधिग्रहण मामले में जांच बंद करने के लिए 36 करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा है। किसानों की तरफ से वकील जसबीर सिंह मलिक ने इस मामले को उठाया है। उन्होंने इस मामले में अलोक वर्मा के खिलाफ कैबिनेट सचिव से की गई शिकायत का भी जिक्र किया है।
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ये है पूरा मामला
मामला गुड़गांव के 58 से 67 सेक्टर के बीच पड़ने वाले आठ गांव बादशाहपुर, बेहरामपुर, नागली उमारपुरा, तिगरा, उल्लावास, खादरपुर, घाटा और मडवास की 1400 एकड़ जमीन का है। हरियाणा सरकार ने रिहायशी और व्यवसायिक विकास के लिए 2009 में इन गावों की 1400 एकड़ जमीन के अधिग्रहण की धारा 4 की अधिसूचना निकाली। लेकिन 2010 में सिर्फ 800 एकड़ जमीन के लिए ही धारा 6 की अधिसूचना जारी हुई बाकी जमीन छोड़ दी गई।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक़ मई 2012 में अवार्ड सिर्फ 87 एकड़ जमीन का ही हुआ बाकी सारी जमीन छोड़ दी गई। इस पर जिन लोगों की जमीन अंतत: अधिग्रहित कर अवार्ड जारी किया गया उनमें से छह लोगों ने अधिग्रहण को हाईकोर्ट में चुनौती दी और हाईकोर्ट ने अधिग्रहण रद कर दिया था। जिसके खिलाफ हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट आयी थी।
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सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई के दौरान दौरान किसानों के वकील जसबीर सिंह मलिक ने आरोप लगाया था कि जिन लोगों ने बिल्डरों को जमीन दे दी है उनकी जमीनें अधिग्रहण से छोड़ दी गई हैं और याचिकाकर्ताओं ने बिल्डरों को जमीन नहीं दी थी इसलिए उनकी जमीन अधिग्रहित कर ली गई। कहा कि सरकार की बिल्डरों के साथ मिली भगत है। हालांकि सरकार ने आरोपों का खंडन किया था।
तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पूरा मामला देखने से लगता है कि सरकार ने शक्तियों का दुरुपयोग किया है। सरकार ने बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रावधानों का बेजा इस्तेमाल किया है। मामले की सीबीआइ जांच होनी चाहिए ताकि पता चल सके कि जो जमीन छोड़ी गई उसमें पैसे का लेनदेन तो नहीं हुआ। कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी और सरकार की अपील रद्द कर दी थी।
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