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भारत-आसियान सम्मेलन आज से, 'लुक ईस्ट' को 'एक्ट ईस्ट' करने पर जोर
भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए 10 आसियान देशों के नेता भारत पहुंच रहे हैं। राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत करने व उनके साथ बैठकें करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी विश्व आर्थिक मंच के सालाना शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद दावोस
नई दिल्ली: इस बार गणतंत्र दिवस समारोह में आसियान देशों के प्रमुख शिरकत करने दिल्ली पहुंचे हैं। बुधवार को लगभग सभी देशों के प्रमुख यहां पहुंच चुके हैं। आसियान-भारत वार्ता की शिखर बैठक आज (25 जनवरी) शुरू होगी। आज ही सभी देशों के प्रमुख राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मुलाकात करेंगे। पीएम नरेंद्र मोदी सभी 10 नेताओं के अलावा म्यांमार की आंग सान सू की से भी मुलाकात करेंगे।
बता दें, कि यह अवसर कई मामलों में खास है। इस वर्ष यानि साल 2018 में आसियान अपने 51 वर्ष पूरे कर रहा है और इसी वर्ष आसियान के साथ भारत की साझेदारी के 26 वर्ष भी पूरे हो जाएंगे। इस दौरान आतंकवाद के विरोध, सुरक्षा और संपर्क बढ़ाने पर उनका जोर होगा। बता दें आसियान के सदस्य देशों में लाओस, कंबोडिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।
इस वक्त भारत 'लुक ईस्ट' नीति को 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी में बदलना चाहता है। इस पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इरादा है कि लुक ईस्ट को अब एक्ट ईस्ट नीति में बदलना होगा।
भारत की वर्तमान विदेश नीति आज जितना मज़बूत है उतना कभी नहीं थी। यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत आधार देने में यह सरकार सफल रही है। कूटनीति के अगले चरण में भारत सरकार पूर्वी एशियाई देश में पहल करते हुए लुक ईस्ट नीति को एक्ट ईस्ट नीति में तब्दील करना चाहती है।
लुक ईस्ट नीति का उद्देश्य आसियान देशों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिये खास मुहिम चलाना है। गौरतलब है कि आसियान देशों का महत्त्व भारत के लिये सिर्फ भू-राजनीतिक वजहों से ही नहीं है बल्कि जिस रफ्तार से भारत आर्थिक प्रगति करना चाहता है, उसके लिहाज़ से आसियान देश भारत के विकास में अहम भूमिका निभा सकते हैं। खास तौर पर तब, जब भारत अपने निर्यात के लिये नए बाज़ारों की तलाश में है।
क्या है भारत की एक्ट ईस्ट नीति?
- दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामरिक संबंधों को विस्तार देने के लिए भारत ने 1991 में नरसिंह राव सरकार के समय यह लुक ईस्ट नीति बनाई थी।
- इसका उद्देश्य भारत को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करना तो था ही साथ ही चीन के प्रभाव को संतुलित करना भी था।
- बाद में इस नीति को भारत की विदेश नीति के परिप्रेक्ष्यों में एक नई दिशा और नए अवसरों के रूप में देखा गया और वाजपेयी सरकार तथा मनमोहन सरकार ने भी इसे अपने कार्यकाल में लागू किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे थोड़े परिवर्तन के साथ एक्ट ईस्ट नीति कर दिया।
वस्तुतः यह नीति शीत युद्ध की समाप्ति के बाद उभरे नए वैश्विक और क्षेत्रीय संदर्भों में शक्ति संतुलन का लक्ष्य लिये थी। इसके साथ ही इससे भारत की नई आर्थिक नीतियों के साथ विदेश नीति के समन्वय की अवधारणा भी मुखरित होती थी।यह नए रिश्ते बनाने की शुरुआत नहीं थी बल्कि रिश्तों को पुनर्जीवित करने की कोशिश थी। भारत को इस नीति से लाभ हुआ है और वह इस नीति के चलते अपने संबंध इन पूर्वी देशों से मजबूत करने में सफल रहा है
वर्ष 2012 में तत्कालीन मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री डी॰ पुरंदेश्वरी ने सरकार की पूर्व की ओर देखो नीति से पूर्वी बंदरगाहों से व्यापार को प्रोत्साहन मिलने की बात की पुष्टि की। उन्होंने कहा इससे भारत का पूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया से व्यापार बढ़ा है और विश्व के समुद्री मार्ग के जरिये होने वाले व्यापार में देश के पूर्वी तट को महत्वपूर्ण स्थान मिला है।
भारत की इस नीति का समर्थन करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भी कहा कि उनका देश भारत की ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति का सक्रिय रूप से समर्थन करना चाहता है और ओबामा प्रशासन ने शुरुआत से ही एशिया-प्रशांत क्षेत्र को महत्व दिया है।
हाल ही में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि परिधान, कृषि उपकरण, औषधि और वाहन जैसे क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों के लिये कंबोडिया, लाओस और म्यांमार जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में विनिर्माण इकाईयाँ स्थापित करने के काफी अवसर हैं। जिससे कि भारत के ‘एक्ट ईस्ट नीति’ को बल मिलेगा।
भारत विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, उसे अपने उत्पाद बेचने के लिये नये बाज़ारों की तलाश है वहीं इन देशों में विनिर्माण की सम्भावनाएँ भी पर्याप्त हैं।
भारत-आसियान संबंधों को लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है कि केवल दो चीजें भारत और आसियान को जोड़ती हैं, एक बौद्ध धर्म और दूसरा रामायण और इन विशेष संबंधों को दोनों क्षेत्रों के युवाओं के बीच प्रचारित-प्रसारित करने की जरूरत है।