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Fake News Kaise Pahchane: फेक न्यूज के जाल से बचें और युद्ध जैसे संवेदनशील स्थिति में आम नागरिकों की जिम्मेदारी निभाए

India Pakistan War Fake News: ऑपरेशन सिंदूर के बाद की परिस्थिति बेहद संवेदनशील और चुनौतीपूर्ण है। ऐसे समय में सोशल मीडिया पर फैली फेक न्यूज देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।

Shivani Jawanjal
Published on: 14 May 2025 2:32 PM IST
India Pakistan War Fake News How to Identify
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 India Pakistan War Fake News How to Identify

Fake News Kaise Pahchane: हाल ही में भारत द्वारा किए गए “ऑपरेशन सिंदूर” के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर पहुँच गया है। जवाब में पाकिस्तान द्वारा की गई नाकाम हमलों की श्रृंखला ने दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात उत्पन्न कर दिए हैं। इस संवेदनशील स्थिति में जहाँ सरकारें और सेनाएं जिम्मेदारी से काम ले रही हैं, वहीं सोशल मीडिया पर एक और 'युद्ध' चल रहा है - झूठी खबरों और अफवाहों का युद्ध।

फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म इन दिनों संवाद और सूचना का माध्यम कम, और अफवाहों का अड्डा ज़्यादा बनते जा रहे हैं। कभी युद्ध की काल्पनिक तिथियाँ वायरल की जा रही हैं, तो कभी फर्जी वीडियो या झूठे समाचारों के ज़रिए जनता को गुमराह किया जा रहा है। सेना की रणनीतियों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना, निर्दोष नागरिकों में भय फैलाना और सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न करना अब एक डिजिटल हथियार बन चुका है।

ऐसे हालात में, यह ज़रूरी हो जाता है कि हम एक जागरूक नागरिक के रूप में सोचें, तथ्यों की जांच करें और किसी भी खबर को साझा करने से पहले उसकी सच्चाई परखें। यह लेख, सोशल मीडिया पर फैल रही फेक न्यूज से बचाव के उपायों और इसके खतरनाक प्रभावों पर प्रकाश डालने का एक प्रयास है।

सूचना का माध्यम या अफवाहों का अड्डा?


सोशल मीडिया का उद्देश्य था - लोगों को जोड़ना, सूचनाओं को तेजी से साझा करना और लोकतांत्रिक संवाद को बढ़ावा देना। लेकिन संकट के समय, यही प्लेटफॉर्म अफवाहों और गलत सूचनाओं का सबसे बड़ा जरिया बन जाता है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अचानक ऐसी पोस्ट्स और वीडियो वायरल होने लगे जिनमें युद्ध की तिथियाँ, झूठे सैन्य मूवमेंट और बमबारी की मनगढ़ंत कहानियाँ पेश की गईं। इनका कोई आधिकारिक स्रोत नहीं होता, पर इनकी गति बुलेट ट्रेन जैसी होती है।

फेक न्यूज के गंभीर परिणाम

जनता में भय और घबराहट - दिल्ली, मुंबई, जम्मू जैसी जगहों पर बमबारी की झूठी खबरें फैलने से कई लोग घरों से बाहर निकलने में डरने लगे। स्कूलों में छुट्टियाँ होने लगीं और बाजारों में अफरातफरी मच गई।

सेना की रणनीति पर असर - फेक न्यूज में सैन्य गतिविधियों को उजागर करने के झूठे दावे न सिर्फ आम जनता को भ्रमित करते हैं, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों की गोपनीयता को भी खतरे में डालते हैं।

राष्ट्रीय एकता को नुकसान - जब एक देश संकट से गुजर रहा हो, तब फेक न्यूज समाज को बाँटने का काम करती है — लोग धर्म, जाति, क्षेत्र के आधार पर एक-दूसरे पर संदेह करने लगते हैं।

फेक न्यूज कैसे फैलती है?


भावनात्मक कंटेंट -“देश पर हमला!”, “सीमा पर युद्ध शुरू!”, “XYZ शहर पर मिसाइल अटैक!” जैसे हेडलाइंस लोगों के भावनाओं से खेलती हैं, जिससे वे बिना सोचे-समझे शेयर कर देते हैं।

एडिटेड वीडियो और फोटो - पुराने या किसी अन्य देश के वीडियो को भारत-पाक युद्ध से जोड़कर वायरल करना बहुत आम हो गया है। एडिटिंग टूल्स के कारण यह और खतरनाक होता जा रहा है।

बॉट्स और आईटी सेल्स - कुछ राजनीतिक या राष्ट्रविरोधी संगठन जानबूझकर अफवाहें फैलाने के लिए बॉट्स और आईटी सेल्स का इस्तेमाल करते हैं।

हम क्या कर सकते हैं? (नागरिक जिम्मेदारियाँ)

सूचना की जांच करें - किसी भी खबर को शेयर करने से पहले दो बार सोचें। क्या यह खबर सरकारी या भरोसेमंद मीडिया से आई है? अगर नहीं, तो उसे फैलाना बंद करें।

फैक्ट चेकिंग प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करें - Alt News, Boom Live, PIB Fact Check जैसे प्लेटफॉर्म से खबर की सच्चाई जानें।

समझदारी से बातचीत करें - परिवार, दोस्तों और सोशल मीडिया ग्रुप्स में अफवाहों का विरोध करें। झूठी खबरों को मजाक में भी स्वीकार न करें।

फेक न्यूज क्या है और यह इतनी खतरनाक क्यों है?

फेक न्यूज वे जानबूझकर फैलाई गई झूठी या भ्रामक खबरें होती हैं, जिनका मकसद किसी राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देना, समाज में दहशत फैलाना, या लोगों को गलत दिशा में मोड़ना होता है। युद्ध या तनाव की स्थिति में जब देश की सुरक्षा, जनता की मनोदशा और सरकार की नीतियां दांव पर होती हैं, तब यह झूठी खबरें एक बड़ी चुनौती बन जाती हैं।

उदाहरण के लिए, ऑपरेशन सिंदूर के बाद सोशल मीडिया पर कई वायरल पोस्ट्स यह दावा कर रही थीं कि भारत और पाकिस्तान के बीच कल से युद्ध शुरू हो जाएगा, या कि किसी विशेष राज्य में हवाई हमला हुआ है – जबकि सरकार या सेना की ओर से ऐसी कोई पुष्टि नहीं की गई थी। इस तरह की अफवाहें सिर्फ भ्रम नहीं फैलातीं, बल्कि शांति और संयम बनाए रखने की प्रक्रिया को भी नुकसान पहुंचाती हैं।

फेक न्यूज फैलाने के सामान्य तरीकों को पहचानें


भ्रामक हेडलाइंस - सनसनीखेज शीर्षक जो लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं – जैसे "भारत पर मिसाइल दागी गई", या "पाकिस्तान ने दिल्ली पर हमला किया" – जबकि असल खबर में ऐसा कुछ नहीं होता।

पुरानी तस्वीरें या वीडियो - कई बार पुराने युद्ध, बाढ़, या आतंकी घटनाओं की तस्वीरें शेयर की जाती हैं और उन्हें ताजा घटनाओं से जोड़ दिया जाता है।

नकली न्यूज चैनल या वेबसाइट - फेक वेबसाइट्स और फर्जी मीडिया चैनल मूल न्यूज़ चैनलों की तरह दिखते हैं, लेकिन उनमें भ्रामक और असत्य खबरें होती हैं।

व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स - बिना स्रोत के लंबे संदेश जो लोगों में डर या गुस्सा फैलाते हैं, जैसे "सेना ने 200 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया" – जबकि आधिकारिक जानकारी नहीं होती।

फेक न्यूज से बचने के उपाय

सोर्स की जांच करें: कोई भी खबर पढ़ने के बाद यह जरूर जांचें कि यह किस वेबसाइट या मीडिया हाउस से आई है। किसी विश्वसनीय और मान्यता प्राप्त समाचार स्रोत का होना बहुत जरूरी है।

सरकारी और आधिकारिक स्रोतों पर भरोसा करें - रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, या सेना की आधिकारिक प्रेस विज्ञप्तियों और ट्विटर हैंडल्स से ही पुष्टि करें।

तथ्यों की पुष्टि करें (Fact-checking): इंटरनेट पर मौजूद विश्वसनीय फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट्स जैसे Alt News, BoomLive, Factly आदि का उपयोग करें।

भावनात्मक न हों - कोई खबर अगर आपको बहुत ज्यादा गुस्सा दिला रही है या डर पैदा कर रही है, तो ठहरें और सोचें – क्या यह खबर वास्तव में सही है या सिर्फ भावनाएं भड़काने का जरिया?

साझा करने से पहले सोचें - किसी भी खबर को आगे फॉरवर्ड करने से पहले उसकी सच्चाई की जांच जरूर करें। झूठी खबरों को साझा करना अपराध की श्रेणी में आता है।

संवेदनशीलता बनाए रखें - युद्ध या तनाव की स्थिति में जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमें संयम, धैर्य और राष्ट्रहित में सोचना चाहिए।

सरकार और समाज की भूमिका


संकट के समय सरकार की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह जनता को समय-समय पर स्पष्ट और सटीक जानकारी दे। नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस और विश्वसनीय अपडेट्स के माध्यम से लोगों के बीच भ्रम या अफवाह की स्थिति से बचा जा सकता है। इससे न केवल जनता में विश्वास बना रहता है, बल्कि अफवाह फैलाने वालों की गतिविधियों पर भी अंकुश लगता है।

मीडिया संस्थानों को भी अपनी भूमिका को गंभीरता से समझना चाहिए। उन्हें निष्पक्षता और जिम्मेदारी के साथ खबरों को प्रस्तुत करना चाहिए, न कि केवल टीआरपी की होड़ में डर और सनसनी फैलाना। इस तरह की रिपोर्टिंग, जो समाज में भय और अस्थिरता का माहौल बनाती है, अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रविरोधी गतिविधि मानी जा सकती है।

इसके साथ ही, सरकार को चाहिए कि वह युद्ध जैसी संवेदनशील परिस्थितियों में फेक न्यूज और अफवाहों पर काबू पाने के लिए एक प्रभावी डिजिटल निगरानी प्रणाली लागू करे। सोशल मीडिया कंपनियों को भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए , उन्हें संदिग्ध या भ्रामक पोस्ट्स को तुरंत हटाना चाहिए और फर्जी अकाउंट्स के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए।

डिजिटल युग में जानकारी के साथ विवेक और जिम्मेदारी का होना जितना ज़रूरी है, उतना ही यह देश की सुरक्षा और सामाजिक समरसता के लिए भी आवश्यक बन चुका है।

सामान्य नागरिक की भूमिका सबसे अहम

जब देश युद्ध जैसे हालात से गुजर रहा हो, तब नागरिकों की भूमिका सिर्फ "देखने" या "फॉरवर्ड" करने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। हमें जिम्मेदार नागरिक बनकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हम खुद झूठी खबरों का शिकार न बनें और दूसरों को भी इससे बचाएं। अपने आस-पास के लोगों को सही जानकारी दें, अफवाहों पर रोक लगाएं, और अगर कोई गलत सूचना फैला रहा हो तो उसे प्यार से समझाएं।

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