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बिहार : मुश्किल में गठबंधन, बीच मझधार में फंसे नितीश, बीजेपी भी दोराहे पर

केंद्र सरकार बोले या बोले, लेकिन बिहार के राजनीतिक हालात पर उसकी सीधी नजर है। जदयू-राजद के बीच महागठबंधन की खिचड़ी को पकने के लिए छोड़ दिया गया है। राष्ट्रपति के

tiwarishalini
Published on: 14 July 2017 11:21 AM GMT
बिहार : मुश्किल में गठबंधन, बीच मझधार में फंसे नितीश, बीजेपी भी दोराहे पर
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पटना: केंद्र सरकार बोले या बोले, लेकिन बिहार के राजनीतिक हालात पर उसकी सीधी नजर है। जदयू-राजद के बीच महागठबंधन की खिचड़ी को पकने के लिए छोड़ दिया गया है। राष्ट्रपति के लगभग एक तरफा चुनाव में राजद के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को जदयू की ओर से मिला समर्थन उतना बड़ा मुद्दा नहीं था, जितना बनते हुए आम जनता ने देखा। अब यह मुद्दा थोड़ा अलग हट गया है। बात आगे बढ़ गई है।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव की उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर संकट मंडरा रहा है। उप मुख्यमंत्री तेजस्वी का विकेट गिरा तो स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप का भी रहना मुश्किल होगा। यानी, राजद अध्यक्ष का ‘घर’ सरकार से दूर हो जाएगा।

ऐसे हालात में राजद अध्यक्ष अपने परिवार से बाहर का कोई उप मुख्यमंत्री बिहार सरकार को दें, इसकी उम्मीद कम है। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ पार्टी प्रवक्ता भी इस स्टैंड को स्पष्ट कर चुके हैं कि तेजस्वी को पद से हटाने की बात स्वीकार नहीं की जाएगी। दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव का नाम लिए बगैर यह साफ कह ही दिया है कि उनके मुख्यमंत्रित्व काल में जब भी किसी पर भ्रष्टाचार या गलत आचरण का आरोप लगा तो उसे सरकार से बाहर होना पड़ा। पहले आयकर और फिर सीबीआई की पूछताछ के बाद सामने आई स्थितियों के कारण उम्मीद जताई जा रही थी कि 11 जुलाई की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सब कुछ साफ कर देंगे।

इस बैठक के बाद भी नीतीश ने सीधे-सीधे नहीं कहते हुए सिर्फ संकेत दिए कि तेजस्वी यादव को खुद कुर्सी छोड़ देनी चाहिए। सूत्र बताते हैं कि नीतीश ने अपनी बैठक में राजद को राष्ट्रपति चुनाव तक निर्णय कर लेने का समय दिया है।

इस देरी के पीछे ज्यादा बड़ा राजनीतिक संकट

दरअसल, बिहार में राजनीतिक संकट बाहर से जितना दिख रहा है, उससे ज्यादा अंदरूनी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टाचार को लेकर जीरो-टॉलरेंस की बात बार-बार दुहराते रहे हैं। ऐसे में उनके लिए ताजा राजनीतिक परिस्थितियों में राजद अध्यक्ष लालू परिवार के साथ टिके रहना लगभग नामुमकिन है। वैसे महागठबंधन बनाए जाते समय से यह बात लग रही थी, लेकिन शुरुआत में वह लालू का साथ देते नजर आ रहे थे। इस साथ के चक्कर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सख्त जुबानी हमले में नीतीश के बोल लालू से कम नहीं सुनाई दिए। ऐसी स्थितियों में भाजपा भी नीतीश पर लगातार हमलावर रुख बनाए हुए थी।

इस साल अप्रैल के अंत से बदली स्थितियों में एक तरफ भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने लालू प्रसाद के परिवार की बेनामी संपत्तियों को सामने लाना शुरू किया तो दूसरी तरफ भाजपा ने नीतीश कुमार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह लालू प्रसाद के बेटों को सत्ता से बाहर करें। मई और जून में मिट्टी-मॉल से निकल कर बात रेल मंत्री रहते हुए लालू प्रसाद द्वारा अॢजत संपत्तियों से लेकर मंत्रीपद या नौकरी दिलाने के नाम पर दूसरों की जमीन-फ्लैट को अपने परिवार के नाम कराने तक पहुंच गई। लालू प्रसाद ने इसे भाजपा की चाल कहा और जांच की चुनौती दी तो नीतीश ने भी गड़बड़ी की जांच से दूध का दूध, पानी का पानी कह दिया।

भाजपा इस हरी झंडी का इंतजार कर रही थी और सुशील मोदी ने अपने आरोपों की गठरी केंद्रीय एजेंसियों को उपलब्ध दस्तावेजों के साथ सौंप दी। आयकर और सीबीआई छापों में इस बात का जिक्र तो नहीं है, लेकिन जो कार्रवाई हुई वह उसी लाइन पर। इस पूरे घटनाक्रम में सुशील मोदी की अहम भूमिका नजर आई। काफी हद तक भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने लालू प्रसाद को परेशान करने में शुरुआती सफलता को देख उन्हें इसकी छूट भी दे दी थी। अब बात आगे बढ़ गई है तो अचानक सुशील मोदी अपेक्षाकृत शांत हैं

भाजपा ने जिस तेजी से लालू प्रसाद पर पिछले दो महीनों में हमला बोला और नीतीश कुमार को इस महागठबंधन पर पुनॢवचार के लिए मजबूर किया, उससे यह उम्मीद बंध रही थी कि राजद से दूरी दिखते ही भाजपा सरकार बनाने के लिए नीतीश के साथ हो लेगी। लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा है। राजद-जदयू महागठबंधन का सारा खेल बिगाडऩे के बाद भाजपा दूर से इस आग को ताप रही है।

बताया जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व ने अब कमान अपने हाथ में ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कई मौकों पर बहुत ज्यादा बोल गए नीतीश कुमार को विकल्पहीनता की स्थिति में देखने के लिए भाजपा का यह स्टैंड है। भाजपा के कई कद्दावर नेता फिलहाल सामने आकर कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन यह जरूर कह रहे कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चाह रहा है कि नीतीश ने चूंकि खुद पिछली बार भाजपा का साथ छोड़ा था, इसलिए वह मजबूरी की स्थिति में राजग में शामिल होने की पहल करें। ऐसा होता है तो भाजपा अपनी शर्तों पर उनके साथ खड़ी हो सकती है।

बदली परिस्थितियों के कारण मझधार में नीतीश

अगर आयकर-सीबीआई अपनी प्रक्रिया चालू रखे तो लालू परिवार का राजनीतिक कॅरियर वैसे ही खत्म हो जाएगा। उनके पास न मीसा को सामने लाने का विकल्प है और न ही दोनों बेटों तेजस्वी-तेज प्रताप को बनाए रखने का। ऐसे में लालू परिवार सरकार से बाहर किया जाता है तो महागठबंधन में टूट तय है। सबसे ज्यादा विधायक होने के बावजूद राजद सरकार गिराने की पहल नहीं करेगा, यह तय है।

सरकार गिरती है तो वह अंत इसके लिए नीतीश को दोषी दिखाने का प्रयास करेगा। नीतीश कुमार भी यह समझ रहे हैं क्योंकि अगर वह भाजपा का साथ नहीं लेकर चुनाव में उतरने की बात कहते हैं तो राजद उनपर धोखेबाज का ठप्पा लगाएगी। राजद भी नहीं और भाजपा भी नहीं तो जदयू के लिए वर्तमान सीटों का बचाना लगभग असंभव हो जाएगा। सीधे-सीधे भाजपा का दामन थामकर विधानसभा चुनाव में उतरने पर भी मुख्यमंत्री के रूप में उनका चेहरा सामने करना संभव नहीं होगा।

अगर नीतीश चुनाव की जगह सीधे भाजपा का दामन थामकर सरकार को चलाते रहना चाहेंगे, तब भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की स्थिति शायद ही बचे। राज्य को अस्थिरता से बचाने के नाम पर वह सरकार को कायम रखने की बात कह सकते हैं, साथ ही अपनी छवि कायम रखने के लिए नीतियों की बात कह मुख्यमंत्री की कुर्सी भी छोड़े तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कुल मिलाकर, इधर कुआं और उधर खाई के बीच फंसे दिख रहे हैं नीतीश। इन स्थितियों से एक ही हालत में उबरने की उम्मीद है और वह यह कि महागठबंधन सरकार कायम रखने के लिए परंपरा से हटते हुए राजद अध्यक्ष परिवार से बाहर किसी को राजद कोटे से उप मुख्यमंत्री बनने दें और अपने बेटों को पद छोडऩे कहें, हालांकि इसकी उम्मीद अब तक नहीं दिख रही है

भाजपा भी दोराहे पर, पकड़े क्या और छोड़े क्या?

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पूरे कुनबे का राजनीतिक कॅरियर खत्म होता दिख रहा है तो इसमें अहम भूमिका भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी की है। सुमो ने ही पहले बिना खर्च मिट्टी ढुलाई का मामला सामने लाया था, जिससे बाद में बिहार के सबसे बड़े निर्माणाधीन मॉल के लालू परिवार के होने की बात खुली और उसके बाद से एक-एक कर दर्जनों ऐसी संपत्तियां सामने आईं।

जमीन, फ्लैट, नौकरी, मंत्री पद से लेकर धमकाते हुए संपत्ति हासिल करने तक का कई प्रमाण लाने वाले सुशील मोदी फिलहाल शांत कराए गए हैं। लालू परिवार पर आयकर-सीबीआई की दबिश से महागठबंधन के अस्तित्व की लड़ाई को दूर से देखने के साथ ही भाजपा के अंदर अब दो खेमा बनता दिख रहा है। एक खेमा सुमो को इस पूरे अभियान के लिए क्रेडिट देते हुए नीतीश के साथ सरकार की पहल का पक्षधर है।

इस पहल के पीछे यह मंशा भी है कि अगर नीतीश नैतिकता के आधार पर सरकार का मुखिया पद नहीं रखें तो सुमो को यह पद उनके अभियान के उपहार स्वरूप दिया जाए। भाजपा में कुछ नेताओं की यह मंशा जरूर है, लेकिन ज्यादातर वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बिगड़े बोल का प्रतिफल मिलना चाहिए।

इस मंशा के पीछे सुशील कुमार मोदी के कद को बढऩे से रोकना भी है, क्योंकि भाजपा के एक बड़े समूह का मानना है कि सुमो की नीतियों के कारण ही संगठन को विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार सीट बंटवारे से लेकर चुनावी सभा तक की प्रक्रिया में सुमो की नीतियों ने विधानसभा चुनाव में पार्टी का परफॉर्मेंस खराब किया, जबकि कुछ समय पहले लोकसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता मिली थी। दो तरह की सोच के बीच अब अगर नीतीश की महागठबंधन सरकार गिरती है तो भाजपा की ओर से सारा निर्णय केंद्रीय नेतृत्व के हाथों में होना तय है।

कांग्रेस हुई बेचारी, सरकार बचाना भारी

राजग के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के नीतीश कुमार के फैसले पर कांग्रेस ने कुछ समय पहले न केवल नाराजगी जताई थी, बल्कि महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री की कथनी-करनी पर भी कटाक्ष किया था। लेकिन, अब महागठबंधन सरकार पर संकट देख कांग्रेस की बोली अचानक बदली हुई है।

महागठबंधन में राजद के पास सबसे ज्यादा विधायक हैं और जदयू दूसरे नंबर पर। कांग्रेस के विधायक इतने ही हैं कि वह न सरकार गिरा सकती है और न बचा सकती है। इस स्थिति में अरसे बाद बिहार में सत्ता सुख भोग रही कांग्रेस हर हालत में सरकार बचाना चाह रही है। इसके लिए वह एक तरफ लालू प्रसाद को समझौते के लिए तैयार करने में लगी है तो दूसरी ओर नीतीश कुमार को एक बार फिर भाजपा-विरोधी शक्तियों का सिरमौर प्रचारित करने लगी है।

संजय सिंह (मुख्य प्रवक्ता, जदयू) के मुताबिक

‘‘महागठबंधन सरकार स्थिर है। स्थिरता पर कोई सवाल नहीं है। जहां तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सवाल है तो यह साफ बात मान लीजिए कि वह अपनी छवि से समझौता नहीं करने के लिए जाने जाते हैं। फैसला उन्हें करना है, जिनके कारण सरकार की छवि पर सवाल उठ रहा है। सारी बातें मुख्यमंत्री खुद बोल चुके हैं।’’

डॉ. प्रेम कुमार, नेता प्रतिपक्ष

‘‘मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नैतिकता की बात करते हैं तो उन्हें निर्णय लेने में देर नहीं करनी चाहिए। जनता जानना चाह रही है कि वह भ्रष्टाचार का साथ कब तक देना चाहते हैं। भाजपा की इसमें कोई भूमिका नहीं है। भाजपा सिर्फ यह देखना चाहती है कि राज्य अस्थिरता की ओर नहीं जाए। सरकार जनता का काम करे।’’

मनोज झा (प्रवक्ता, राजद) के मुताबिक

‘‘जो कुछ हो रहा है, वह राजनीतिक षडयंत्र है। लालू प्रसाद के पूरे परिवार को फंसाते हुए बिहार की महागठबंधन सरकार को अस्थिर करने का प्रयास किया जा रहा है। विपक्ष इसमें सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर रहा है। जनता सब देख रही है। महागठबंधन की सरकार स्थिर है और रहेगी, इसमें कोई शक नहीं है।’’

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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