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आसान नहीं है यूपी में चौकोना मुकाबला बनाने की कांग्रेस की कोशिश
नई दिल्लीः शनिवार से कांग्रेस की यूपी में तीन दिन की बस यात्रा के बहाने छह माह बाद होने वाले चुनाव के लिए जनसंपर्क अभियान की औपचारिक शुरुआत एक तरह से खुद को सियासी भीड़ में तलाशने की एक गंभीर कोशिश दूसरे राज्यों में किए गए प्रयोगों के आधार पर तैयार की गई है। हालांकि यूपी में 27 साल से सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस को देश के इस सबसे बड़े प्रदेश में अपने लिए नई जमीन तलाशना मुमकिन हो पाएगा, इस पर अभी भी कई सवाल हैं। ‘27 साल यूपी बेहाल’ का कांग्रेस का नारा जाहिर तौर पर सपा, बीएसपी और बीजेपी के बीच मौजूदा त्रिकोण लड़ाई को चौकोर बनाने की कोशिश है, लेकिन वोट प्रतिशत के हिसाब से ढाई दशक में कांग्रेस जिस तरह से बाकी पार्टियों से बुरी तरह पिछड़ती रही है, उससे कांग्रेस को महज किसी बड़े चमत्कार का ही सहारा है।
आजाद पर इसलिए भरोसा
यूपी में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का कांग्रेस का मिशन बीते वर्षों में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में पार्टी को सत्ता में वापस लाने के कांग्रेस के सफल प्रयोगों की तर्ज पर किया गया है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में लंबे दौर तक सत्ता से बाहर रही कांग्रेस की सत्ता में वापसी के मिशन के कर्णधार पार्टी महासचिव गुलाम नबी आजाद ही थे। यूपी की राजनीति के रग को बखूबी समझने वाले आजाद ने यहां के लिए भी बस यात्रा का मिशन तैयार किया। कर्नाटक में जब एसएम कृष्णा सीएम बने और आंध्र में बुरी तरह जनाधार खो चुकी कांग्रेस ने वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में धमाकेदार सत्ता वापसी बसों के जनसंपर्क अभियान से शुरू की थी। उस अनुभव को सफल बताते हुए कांग्रेस की यूपी रणनीति से जुड़े एक नेता का दावा है कि बस से सफर और जनसंपर्क इसलिए ज्यादा मुफीद माना जाता है कि एक बस में सभी प्रमुख नेता सवार हो सकते हैं और सड़क मार्गों और गांवों को जोड़ने वाले क्षेत्रों में बसों के जरिए आम लोगों से संवाद बनाना सरल होता है।
जनता की नब्ज टटोल रही कांग्रेस
कांग्रेस यूपी में अभी करीब तीन दर्जन से ज्यादा बस यात्राएं करेगी। उसके सभी नेता जनता से सीधे संपर्क बनाने की कोशिश के तहत सामूहिक तौर पर जनता से सीधे संवाद बनाने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस के भीतर ही यह सवाल उठाने वालों की कमी नहीं, जो मानते हैं कि परंपरागत जनाधार यानी उच्च जातियों में ब्राह्मण और मुसलिम जनाधार को वापस लाने की कोशिशें अभी पूरी तरह खयाली पुलाव की बातें हैं। इसलिए कि इतने साल से कांग्रेस का पूरा जनाधार खिसककर दूसरी पार्टियों में जा चुका है। जनता को जगाने और दोबारा अपनी प्रांसगिकता साबित करने की इस शुरुआत के जरिए कांग्रेस अभी जनता की नब्ज टटोलने के शुरुआती चरण में है। हालांकि, गुलाम नबी आजाद ने पिछले महीने ईद से पहले पश्चिमी यूपी के बुलंदशहर का दौरा करके ईद मिलन कार्यक्रम में शिरकत के बाद ये फीडबैक लिया कि अगर कांग्रेस एकजुटता के साथ मैदान में उतरती है, तो सपा-बीएसपी और बीजेपी के खांचों में फंसे लोग बेहतर विकल्प के लिए कांग्रेस की ओर रुख करने में ज्यादा वक्त नहीं लगाएंगे।
बीएसपी-सपा के वोटबैंक में सेंध की कोशिश
बीजेपी की तरह कांग्रेस की भी पूरी कोशिश है कि वह किसी तरह बीएसपी-सपा के वोटबैंक को 20 प्रतिशत से नीचे लाने में कामयाबी हासिल कर ले। हाल के तीन-चार विधानसभा चुनावों में वोटों का आंकड़ा बताता है कि कई खानों में वोट बैंक बंटने के बाद 25 प्रतिशत के आसपास वोट हासिल करने वाली पार्टी भी यूपी में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और सत्ता की स्वाभाविक दावेदार बनकर सामने आ गई। राजनीतिक प्रेक्षकों का भी यही आकलन है कि राज्य में मौजूदा सियासी गणित के हिसाब से इस बार बीजेपी और बीएसपी की भी ज्यादा कोशिश इसी रणनीति में लगी है कि सपा के खिलाफ सत्ता विरोधी रूझान का उन्हें ही फायदा पहुंचे। जाहिर है कि सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के लिए सबसे बड़े दल के तौर पर उभरने का तमगा भी एक तरह की लॉटरी साबित होगा।
फोटोः कांग्रेस की बस में सवार शीला दीक्षित और गुलाम नबी आजाद