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प्रणब मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में जाने से कांग्रेस नेता सकते में
नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी लंबे समय तक देश की राजनीति में कांग्रेसी विचारधारा का प्रमुख चेहरा रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय से ही उनकी गिनती कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में होती रही है और यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि जाने से कांग्रेस के नेता सकते में हैं।
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मुखर्जी नागपुर में सात जून को होने वाले तृतीय वर्ष शिक्षा वर्ग समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगे। पूर्व राष्ट्रपति न सिर्फ स्वयंसेवकों की पासिंग आउट का अहम हिस्सा होंगे बल्कि स्वयंसेवकों के बीच अपने विचार भी रखेंगे। मंच पर उनके साथ सरसंघचालक मोहन भागवत समेत संघ के अन्य वरिष्ठï नेता भी होंगे।
प्रणब संबंधी सवाल पर कतराने लगे एंटनी
मुखर्जी के इस कार्यक्रम में जाने पर सहमति जताने से कांग्रेस के भीतर हर कोई सकते में है। इन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी मां सोनिया गांधी का इलाज कराने के लिए उनके साथ अमेरिका गए हुए हैं। राहुल व सोनिया की नामौजूदगी में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं।
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पूर्व रक्षा मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। पूरे देश में चर्चा का विषय बने इस मुद्दे पर पूछे गए सवाल से बचते हुए उन्होंने कहा कि मुझे इस कार्यक्रम की जानकारी नहीं है।
शिंदे बोले- प्रणब ही दे सकते हैं जवाब
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि वह बुद्धिजीवी हैं और देश के राष्ट्रपति रहे हैं। वह सेक्युलर विचार के हैं। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि उनकी सोच में किसी भी तरह का कोई बर्ताव आया होगा, वह अब भी वैसे ही रहेंगे जैसे पहले थे। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति के नागपुर दौरे के बारे में सवाल का सही जवाब खुद पूर्व राष्ट्रपति ही दे सकते हैं। उन्हें बुलाया गया है।
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वे वहां जाएंगे या नहीं, यह सब उन्ही से पूछा जाना चाहिए। अन्य कांग्रेस नेताओं ने इस सवाल पर कहा कि आप हमसे क्यों पूछ रहे हैं, पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से इस बारे में पूछें। एक अन्य कांग्रेस नेता ने कहा कि मुखर्जी ने कांग्रेस के 2010 बुराड़ी सेशन में राजनीतिक प्रस्ताव रखकर तत्कालीन यूपीए सरकार से कहा था कि वह संघ, उससे जुड़े अन्य संगठनों व आतंकवाद के बीच संपर्क की जांच करे। अब वे उसी संघ के कार्यक्रम में जा रहे हैं।
संघ को प्रणब के दबाव में आने की उम्मीद नहीं
वैसे यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या संघ को कांग्रेस के भीतर या बाहर से प्रणब मुखर्जी पर संघ के कार्यक्रम में शरीक ना होने के दबाव बनाए जाने का अंदेशा है? वैसे इस सवाल के जवाब में संघ से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि प्रणब मुखर्जी एक वरिष्ठ और विचारवान व्यक्ति हैं।
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ऐसा व्यक्ति काफी सोच समझकर ही कोई कदम उठाता है। इसलिए ऐसा नहीं लगता कि उन पर किसी तरह का दबाव असर दिखाएगा। संघ से जुड़े सूत्र का यह भी कहना है कि यह बात भी काबिलेगौर है कि मुखर्जी मौजूदा समय में देश की राजनीति में सक्रिय भी नहीं हैं।
मुखर्जी व भागवत की पहले भी हो चुकी है मुलाकात
वैसे जानकारों का कहना है कि अपने पूरे जीवनकाल में कांग्रेसी रहने वाले प्रणब मुखर्जी की पहले भी संघ प्रमुख भागवत से मुलाकात हो चुकी है। संघ मुख्यालय में सूत्रों का कहना है कि मुखर्जी ने भागवत से राष्ट्रपति भवन छोडऩे से पहले चार बार मुलाकात की है। दोनों के बीच पहली मुलाकात मुखर्जी के राष्ट्रपति रहने के दौरान हुई थी। इसके बाद दो बार राष्ट्रपति भवन छोडऩे के बाद दोनों की मुलाकात हो चुकी है।
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जानकार बताते हैं कि महाराष्ट्र से ताल्लुक रखने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने प्रणब मुखर्जी और मोहन भागवत की मुलाकात कराई थी। यह भी उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति के तौर पर अपने कार्यकाल के आखिरी महीनों में प्रणब और पीएम नरेंद्र मोदी के संबंध मधुर रहे थे। दोनों के रिश्ते इतने अच्छे थे कि मोदी ने प्रणब दा को पिता समान व्यक्तित्व भी कहा था।
तीसरे साल की ट्रेनिंग के बाद बनते हैं प्रचारक
मुखर्जी जिस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए नागपुर जाने वाले है वह संघ के तृतीय वर्ष का पाठ्यक्रम पूरा करने पर आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न इलाकों से आए करीब 600 स्वयंसेवक मुखर्जी के विचारों को सुनेंगे। दरअसल संघ गर्मी के सीजन में पूरे देश में ट्रेनिंग कैंप आयोजित करता है। संघ की ट्रेनिंग तीन साल की होती है।
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दो साल की ट्रेनिंग तो देश में विभिन्न स्थानों पर आयोजित होती है मगर तीसरे साल यानी फाइनल ईयर की ट्रेनिंग नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में ही होती है। इसके साथ ही यह भी नियम है कि पहले व दूसरे साल के कैंप में सफलतापूर्वक हिस्सा लेने वाले ही तीसरे व अंतिम साल के आयोजन में हिस्सा ले सकते हैं। तीसरे साल की ट्रेनिंग के बाद ही संघ प्रचारक की उपाधि मिलती है और संघ का काम करने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता है।
दूसरे विचारों वाले लोगों को बुलाने की परंपरा
संघ से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अन्य विचारों वाले लोगों को बुलाने की यह परंपरा गोलवलकर के समय से रही है। गुरु गोलवलकर दूसरों के विचारों या विरोधी विचारों के साथ चर्चा करना बेहतर मानते थे। संघ के सूत्रों की मानें तो संघ का मानना है कि भिन्न मत का होना या विरोधी विचारधारा होना शत्रुता नहीं है। पहले भी विभिन्न मौकों पर अलग विचारों वाले नेताओं व विचारकों को संघ के कार्यक्रम में बुलाया जा चुका है।
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रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के नेता और दलित नेता दादासाहेब रामकृष्ण सूर्यभान गवई, वामपंथी विचारों वाले कृष्णा अय्यर और वरिष्ठ पत्रकार और आप के नेता आशुतोष आदि इनमें शामिल हैं। दलित नेता गवई ने खुद संघ के कार्यक्रम में आने की इच्छा जताई थी। संघ के धुर विरोधी और वामपंथी विचारक कृष्णा अय्यर ने तमाम विरोधों के बावजूद तत्कालीन सरसंघचालक से भेंट की थी। 2007 में पूर्व एयर चीफ मार्शल ए.वाई.टिपनिस को संघ के कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था।