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INTERVIEW: अपने ही मंत्री को सवालों के घेरे में खड़ा कर गए BJP विधायक मुन्ना सिंह चौहान

निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के दावों को हवाई बताने के विपक्ष के सुर में बीजेपी विधायक भी सुर मिला रहे हैं। विधानसभा

tiwarishalini
Published on: 16 Jun 2017 5:00 PM IST
INTERVIEW: अपने ही मंत्री को सवालों के घेरे में खड़ा कर गए BJP विधायक मुन्ना सिंह चौहान
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देहरादून: निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के दावों को हवाई बताने के विपक्ष के सुर में बीजेपी विधायक भी सुर मिला रहे हैं। विधानसभा में कांग्रेस के साथ ही बीजेपी के विधायक और पार्टी प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने भी सवाल उठाए। स्कूली शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय चौहान के सवालों का जवाब नहीं दे पाए तो पार्टी हितों का ख्याल रखते हुए चौहान ने भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया।

स्कूली शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के पास वैसे तो पांच मंत्रालय और हैं, लेकिन पद संभालने के बाद से वे निजी स्कूलों पर लगाम कसने के अपने स्वघोषित अभियान की वजह से सुर्खियों में बने हुए हैं। हालांकि अब तक इस मामले में कुछ ठोस नहीं हो पाया है। अपना भारत/newstrack से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य मंत्री को घेरना नहीं बल्कि उन्हें अपनी बात कहने के लिए बेहतर मौका देना था।

प्रस्तुत है चौहान से बातचीत के प्रमुख अंश:

- आपने अपने ही मंत्री को घेर लिया। कुछ तो विपक्ष के लिए छोड़ दें?

देखिए कई बार ऐसा होता है कि हम मंत्री को अपनी बात करने के लिए मौका देते हैं ताकि वे अपनी बात कह सकें। संसदीय प्रक्रिया में मंत्री इसका बहुत समझदारी से इस्तेमाल कर सकते हैं। मैं चाहता था कि वह बताते कि हमने पब्लिक स्कूलों के जो बड़े ब्रांड हैं उनमें से अमुक-अमुक को नोटिस दिए हैं और अमुक-अमुक ने पैसे वापस कर दिए।

इससे उन्हें फायदा ही होता, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं थी। मैंने सवाल उठाने के साथ ही उनकी प्रशंसा भी की थी कि आप बहुत बढिय़ा काम कर रहे हैं और जिसके लिए आपकी तारीफ भी हो रही है। लेकिन अब समय आ गया है कि कुछ काम होता हुआ भी दिखे।

- तारीफ तो मिल ही रही है, लेकिन बड़े पब्लिक स्कूलों पर लगाम कसने की चुनौती भी बहुत बड़ी है। इस बारे में क्या कहेंगे?

वास्तव में यह चुनौती बहुत बड़ी है। उत्तर प्रदेश के जमाने में जब नित्यानंद स्वामी विधानपरिषद के सभापति थे तब उनकी अध्यक्षता में विधानपरिषद ने एक समिति गठित की जिसे पब्लिक स्कूलों के खिलाफ मिलने वाली शिकायतों पर कार्रवाई करनी थी। जब उस समिति के सदस्य आए तो देहरादून के बड़े स्कूलों ने उन्हें गेट के अंदर नहीं घुसने दिया और वह कुछ नहीं कर पाए। मेरा तो कहना यह है कि फैसला आप जो ले लें उसे लागू भी करना पड़ेगा।

- तो क्या स्कूली शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने इस चुनौती को हल्के में लिया है? क्या उनका यह दावा कभी सच भी हो सकता है कि दून स्कूल जैसे स्कूलों की फीस पर भी वह नियंत्रण कर लेंगे?

यह तो संभव ही नहीं है क्योंकि ये चीजें तो उन सुविधाओं के साथ भी जुड़ी हैं जो यह स्कूल देते हैं। अभी तो हम सिर्फ सीमित चीजों की ही बातें कर रहे हैं जैसे कि कॉशन मनी लौटा दें, रीएडमिशन के नाम पर जो हर साल फीस लेते हैं वह न लें, जिन्होंने ले ली है वह लौटा दें। इतना भी कर लें तो यह एक अच्छी शुरुआत मानी जाएगी।

इसके अलावा जो बड़ा खेल है वह किताबों, ड्रेस का है। फीस को छोडि़ए जो आदमी बच्चे का एडमिशन करवाने जाता है वह मन बनाकर जाता है कि उस स्कूल में उतनी फीस लगेगी। जिसकी हैसियत दून स्कूल की होगी वह वहां जाएगा, जिसकी गली-मोहल्ले के स्कूल की होगी वह वहां जाएगा। लेकिन बड़ी समस्या है कि यह स्कूल पूरा नेटवर्क चलाते हैं- कहते हैं कपड़े भी हमारे यहां से खरीदो, किताबें भी यहीं से लो। सौ रुपये की किताब पांच सौ में बेची जाती है।

- शिक्षा मंत्री तो यह भी कह रहे हैं कि इन स्कूलों में एनसीईआरटी की ही किताबें लागू होंगी ?

यह भी नहीं हो सकता क्योंकि आज राज्य में शिक्षा के चार बोर्ड काम कर रहे हैं। पहला राज्य का बोर्ड है, दूसरा सीबीएसई, तीसरा आईसीएसई और चौथा एक अंतर्राष्ट्रीय बोर्ड भी है। जब राज्य में चार बोर्ड हैं तो कॉमन सिलेबस कहां से आ जाएगा। देखिए सीधी बात यह है कि इसे लेकर बहुत उत्तेजित होने या बहुत उम्मीदें लगाने की जरुरत नहीं है। अगर हम रीएडमिशन फीस, कॉशनमनी और किताबों-ड्रेस की जबरन खरीद पर भी लगाम लगा पाते हैं तो दसियों हजार की अवैध वसूली पर लगाम लग जाएगी।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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